हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार पितृ पक्ष 16 दिनों का एक ऐसा उत्सव अनुष्ठान है, जो पूरी तरह दिवंगत पूर्वजों के लिए समर्पित होता है, इस पखवारे में तिथि अनुसार पितरों का श्राद्ध, तर्पण, पिण्डदान आदि कर्म किये जाते हैं. मान्यता है कि इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है, और वे प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं. इस वर्ष पितृ पक्ष आज यानी 7 सितंबर, 2025 से शुरू होकर 16 दिनों यानी आश्विन अमावस्या (21 सितंबर 2025) तक चलेगा. इस दरमियान तिथि के अनुसार तथा जिन्हें अपने पितरों की तिथि नहीं पता उन्हें दिवस विशेष पर श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण जैसे अनुष्ठान करना चाहिए. ध्यान रहे इस पखवारे श्राद्ध करनेवालों को मांसाहारी पदार्थों एवं नशे से दूर रहना आवश्यक है.
तिथि अनुसार श्राद्ध कर्म के नियम
पितृ पक्ष के इन 16 दिनों में सर्वप्रथम तिथि अनुसार पितरों का श्राद्ध करने का नियम है, तिथि अनुसार श्राद्ध कर्म करने से पितरों (पूर्वजों) की आत्मा को सही मायने में शांति और तृप्ति प्राप्त होती है. तिथि के अनुसार श्राद्ध करने के कुछ विशिष्ठ नियम हैं, जिनका हम यहां उल्लेख कर रहे हैं. यह भी पढ़े : Salat Al Khusuf (Lunar Eclipse Prayer): सलात अल कुसुफ़ क्या है? इस्लाम में चंद्र ग्रहण की नमाज़ कब एवं कैसे पढ़ें? जानें फर्क सूर्य एवं चंद्र ग्रहण में!
ऐसे करें तिथि का निर्धारण
* गरुड़ पुराण के अनुसार श्राद्ध कर्म उसी तिथि पर किया जाता है, जिस तिथि को पितर की मृत्यु हुई थी. इसे मृत्यु-तिथि (पक्ष तिथि) कहा जाता है. यह तिथि हिंदू पंचांग के अनुसार तय होती है, न कि अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार. उदाहरण के लिए पितर की मृत्यु हिंदू कैलेंडर के अनुसार नवमी के दिन हुई थी, तो श्राद्ध पखवाड़े की नवमी को पितर का श्राद्ध कर्म करना चाहिए
* यदि पितर की मूल मृत्यु तिथि याद नहीं है तो अमावस्या यानी सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है
* एकादशी तिथि (हिंदू पंचांग के ग्यारहवें दिन) के दिन श्राद्ध नहीं किया जाता है. यद्यपि कुछ मान्यताएं एकमत नहीं हैं.
* अगर किसी पितर की अकाल मृत्यु (किसी दुर्घटना में, सर्पदंश, आत्महत्या आदि मामले में) वाले पितर का श्राद्ध चतुर्दशी के दिन करने का नियम है.
श्राद्ध के मुख्य प्रकार
पितरों का श्राद्ध निम्नलिखित तीन वर्गों में किया जा सकता है
श्राद्ध का नाम कब करें किसके लिए
एकल श्राद्ध मृत्यु तिथि पर एक पितर का
सामूहिक श्राद्ध अमावस्या या महालय पर सभी पितरों का
त्रिपिण्डी श्राद्ध पितृ पक्ष में तीन पीढ़ियों के लिए
श्राद्ध कर्म करने के मुख्य नियम
तिथि अनुसारः मृत्यु तिथि पर ही श्राद्ध कर्म करना श्रेयस्कर होता है
* स्नानः जातक को स्नान-ध्यान कर शुद्ध और सादा वस्त्र पहनकर श्राद्ध कर्म करना चाहिए.
पिंडदानः इसके लिए चावल, तिल, जौ, दूध आदि से पिंड बनाए जाते हैं.
ब्राह्मण भोजः पितरों के नाम से ब्राह्मण को भोजन कराया जाता है, इसलिए ब्राह्मण को भोजन जरूर कराएं.
दान-दक्षिणाः श्राद्ध कर्म के पश्चात ब्राह्मण को वस्त्र, अन्न, दक्षिणा आदि का दान करें.
भक्ति भावः श्राद्ध कर्म के लिए भक्ति एवं आस्था का भाव आपमें अवश्य होना चाहिए, तभी श्राद्ध फलदायी होता है.













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