Parivartini Ekadashi 2024: कब है परिवर्तिनी एकादशी व्रत? श्रीकृष्ण ने इसे श्रेष्ठ एकादशी क्यों कहा? जानें इसका महात्म्य, मंत्र, मुहूर्त एवं पूजा-विधि!

हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं. मान्यताओं के अनुसार इस दिन योगनिद्रा में लीन भगवान श्रीहरि करवट बदलते हैं, इसलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी दिन श्रीहरि ने वामन अवतार लिया था, और गणेशजी की विशेष पूजा होती है, इसलिए इसका विशेष महत्व बताया गया है. इस दिन एकादशी व्रत एवं श्रीहरि की विधि-विधान से पूजा की जाती है. ऐसा करने वालों पर श्रीहरि की कृपा बरसती है, उसके सारे कष्ट दूर होते हैं, और जीवन में सकारात्मकता, शुभता, शांति एवं समृद्धी आती है. इस वर्ष परिवर्तिनी एकादशी सितंबर 2024 को मनाया जाएगा. आइये जानते हैं परिवर्तिनी एकादशी का महत्व, मंत्र, मुहूर्त एवं पूजा-विधि आदि के बारे में

परिवर्तिनी एकादशी का महत्व

परिवर्तिनी एकादशी को श्रीवामन एकादशी एवं जयंती एकादशी भी कहते हैं. इस दिन यज्ञादि करने से दुश्मनों का नाश होता है, और वाजपेय यज्ञ के समान फल मिलता है. भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को इस व्रत का महात्मय बताते हुए कहा था कि जो मनुष्य इस एकादशी के दिन मेरी वामन रूप की भी पूजा करता है, उसके सभी पाप नष्ट होते हैं, तथा तीनों लोक से सुफल प्राप्त होते हैं.

परिवर्तिनी एकादशी की मूल तिथि एवं महत्व

भाद्रपद शुक्ल पक्ष एकादशी प्रारंभः 10.40 PM (13 सितंबर 2024, शुक्रवार)

भाद्रपद शुक्ल पक्ष एकादशी समाप्तः 08.41 PM (14 सितंबर 2024, शनिवार)

उदया तिथि के अनुसार 14 सितंबर को परिवर्तिनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा.

पूजा का शुभ मुहूर्तः 07.38 AM 09.11AM (14 सितंबर 2024, शनिवार)

पूजा की विधि

इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-ध्यान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. सूर्यदेव को जल अर्पित करें. भगवान श्रीहरि का ध्यान कर परिवर्तिनी एकादशी व्रत-पूजा का संकल्प लें. अपनी मनोकामनाएं व्यक्त करें. घर के मंदिर की सफाई करें, एक चौकी बिछाकर उस पर लाल वस्त्र बिछाएं. भगवान श्रीहरि एवं देवी लक्ष्मी की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें. धूप-दीप प्रज्वलित करें. भगवान पर गंगाजल छिड़ककर प्रतीकात्मक स्नान करायें. हाथ जोड़कर पहले भगवान गणेश तत्पश्चात श्रीहरि के निम्न मंत्र का जाप करते हुए पूजा प्रारंभ करें.

श्रीगणेश मंत्र

‘ॐ भूर्भुवः स्वः सिद्धिबुद्धिसहिताय गणपतये नमः’

श्री विष्णु मंत्र

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

गणेश जी को दूर्वा तथा विष्णु जी एवं देवी लक्ष्मी को तुलसी अर्पित करें. अब पुष्प, अक्षत, रोली, चंदन आदि चढ़ाएं. भोग में मिष्ठान एवं फल चढ़ाएं. विष्णुजी का सहस्त्रनाम का पाठ करें. अंत में गणेशजी, विष्णुजी एवं लक्ष्मी जी की आरती उतारें, और सभी को प्रसाद वितरित करें.