हथकरघे पर बुना गया प्रत्येक धागा भारत की कहानी और उसकी संस्कृति का एक हिस्सा बयां करता है, जो शक्ति, सौंदर्य, फैशन और परंपरा को दर्शाता है. पश्चिम बंगाल की जामदानी से, वाराणसी की रेशम साड़ियां, तेलंगाना की इकत तक, हथकरघा उद्योग देश के हर वर्ग की पहली पसंद रही है. इसने लाखों लोगों को पहचान, विरासत और जीविका कमाने का एक ज़रिया दिया है. राष्ट्रीय हथकरघा दिवस हमें याद दिलाता है कि हम सभी का कर्तव्य और जिम्मेदारी है कि हम उन कारीगरों की रक्षा, संवर्धन और समर्थन करें, जिनका कौशल भारत की वस्त्र विरासत का मुख्य आधार है. हथकरघा उद्योग एवं कारीगरों के साथ भारतीय वस्त्र उद्योग की लाइफ लाइन है. गौरतलब है कि हर वर्ष 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाया जाता है. आइये इस अवसर पर जानें इसके महत्व एवं इतिहास आदि के बारे में विस्तार से
राष्ट्रीय हथकरघा दिवस का महत्वः
राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के महत्व को निम्न बिंदुओं से समझा जा सकता है.
भारतीय बुनकरों का सम्मानः हथकरघा लाखों भारतीय परिवारों की आजीविका का एक महत्वपूर्ण साधन है. यह दिवस अर्थव्यवस्था, संस्कृति और फैशन में उनके योगदान का जश्न मनाने का अवसर देता है यह भी पढ़ें : Jhoolan Yatra 2025: झूलन-यात्रा कब, कहां और क्यों मनाया जाता है? जानें इसका महत्व एवं इसका 5 दिवसीय कार्यक्रम!
भारतीय वस्त्र विरासत को संरक्षणः उत्तर प्रदेश के बनारसी रेशम से लेकर तेलंगाना के पोचमपल्ली तक, भारत की हथकरघा विरासत सदियों पुरानी है. यह दिवस हमें भावी पीढ़ियों के लिए इन पारंपरिक बुनाई को संजोने और संरक्षित करने की याद दिलाता है.
स्वदेशी वस्तुओं को बढ़ावा: राष्ट्रीय हथकरघा दिवस सेलिब्रेट करने का आशय स्थानीय प्रोडक्ट को बाजार में लोकप्रिय बनाना है. स्वदेशी उद्योगों को समर्थन देते हुए बड़े पैमाने पर उत्पादित उत्पादों के बजाय हस्तनिर्मित, टिकाऊ उत्पादों को चुनने के लिए प्रोत्साहित करना है.
ग्रामीण कारीगरों को संबल: हथकरघा कारीगरों का एक बड़ा वर्ग ग्रामीण भारत से है, जिसमें महिलाओं की भी बड़ी भूमिका है. हथकरघा उद्योग इन बुनकरों को रोजगार, आजादी और पहचान प्रदान करता है, जिससे पूरे समुदाय और देशी उत्पादों का विकास होता है.
राष्ट्रीय हथकरघा दिवस की इतिहास
भारत सरकार ने 07 अगस्त 2015 को चेन्नई में राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाने की घोषणा की थी, इसके बाद से हर साल इसी तारीख को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाया जा रहा है. दरअसल 07 अगस्त 1905 को कलकत्ता (अब कोलकाता) टाउन हाल में ब्रिटिश काल के दौरान स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत थी, जिसमें भारतीय को विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार और ज्यादा से ज्यादा देशी वस्तुओं के इस्तेमाल करने के लिए कहा गया था, विशेष रूप से हथकरघा को नया जीवन देने की गुजारिश की गई थी. यह आंदोलन बहुत कारगर साबित हुआ था. इस दिन को सेलिब्रेट करते हुए हम अपने स्वतंत्रता सेनानियों के आत्मनिर्भरता के आह्वान तथा भारत के स्वतंत्रता संग्राम में खादी और हथकरघा की महत्वपूर्ण भूमिका को याद करते हैं.













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