हिंदू धर्म शास्त्रों में भगवान विष्णु के प्रिय भक्तों में देवर्षि नारद का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है. नारद मुनि की गतिविधियों को देखते हुए उन्हें सृष्टि का प्रथम पत्रकार भी कहा जाता है.
भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र नारद मुनि की जयंती ज्येष्ठ मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा के दिन मनाई जाती है. हिन्दू धर्म में देवर्षि नारद को पूजनीय माना जाता है, क्योंकि भगवान विष्णु के तमाम भक्तों में उनका नाम सर्वप्रथम लिया जाता है. नारद मुनि की पहुंच अपनी दिव्य शक्ति से देवलोक समेत दानवों एवं मृत्युलोक सभी जगहों पर थी. इसलिए उनका सत्कार सभी लोकों में किया जाता था. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष नारद जयंती 17 मई 2022, मंगलवार के दिन मनाई जाएगी. नारद मुनि को ब्रह्मण्ड का प्रथम पत्रकार भी माना जाता है, आइये जानें नारद जी के संदर्भ में कुछ रोचक बातें..
क्यों कहा जाता है इन्हें ब्रह्माण्ड का प्रथम पत्रकार?
पौराणिक कथाओं के अनुसार देवर्षि नारद को एक सार्वभौमिक दिव्य दूत एवं देवताओं के बीच सूचना का प्राथमिक स्रोत माना जाता है. उन्हें वायु मार्ग से तीनों लोकों पृथ्वी, आकाश, पाताल एवं स्वर्ग लोकों की यात्रा करने की दिव्य शक्ति प्राप्त थी. जहां भी उन्हें कुछ सूचना मिलती, अपने इसी दिव्य शक्ति का इस्तेमाल कर नारायण-नारायण करते पूरे ब्रह्माण्ड में भ्रमण करते हैं. यद्यपि उनकी अधिकांश सामयिक जानकारियां परेशानी पैदा करती है, लेकिन अंततः उनकी हर खबर ब्रह्माण्ड की बेहतरी के लिए होता है. यही वजह है कि उन्हें सृष्टि का पहला पत्रकार माना जाता है.
नारद जयंती का महत्व!
भगवान विष्णु के प्रबल भक्त होने के कारण देवर्षि नारद हर समय भगवान विष्णु की साधना में लीन रहते हुए ‘नारायण नारायण’ जपते रहते हैं. शास्त्रों के अनुसार नारद जयंती पर्व पर देवर्षि नारद की पूजा-अनुष्ठान से जातक को सुख, समृद्धि, सौभाग्य एवं बुद्धि की प्राप्ति होती है. हिंदू धर्म शास्त्रों में नारद मुनि अपने प्रहसन के लिए भी बहुत लोकप्रिय बताये गये हैं. मान्यता है कि देवर्षि नारद ने ही भक्त प्रह्लाद, भक्त अम्बरीष और भक्त ध्रुव जैसे भक्तों को उपदेश देकर भक्ति-मार्ग में प्रवृत्त किया था.
नारद जयंती 17 मई मंगलवार 2022
प्रतिपदा तिथि प्रारंभः 09.43 AM (May 16, सोमवार 2022)
प्रतिपदा तिथि समाप्त 06:25 AM (May 17, मंगलवार 2022)
उदया तिथि 17 मई को होने से इसी दिन व्रत एवं पूजन कार्य सम्पन्न होंगे.
देवर्षि नारद की जन्म-कथा!
पौराणिक कथाओं के अनुसार नारदजी उपबर्हण नामक गंधर्व थे. एक दिन ब्रह्माजी ने उनके बुरे व्यवहार से क्रोधित हो उन्हें शूद्र योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया. कालांतर में वे शूद्रदासी पुत्र के रूप में पैदा हुए. बालपन से ही साधु-संतों की संगत से उनमें भक्तिभाव उत्पन्न हुआ. श्रीहरि की भक्ति करते हुए एक दिन उन्हें श्रीहरि के दर्शन हो गये. उन्होंने दुबारा श्रीहरि की दर्शन पाने की कोशिश की, मगर सफलता नहीं मिली. तभी उन्होंने एक अदृश्य आवाज सुना, -हे दासी-पुत्र इस जन्म में तुम्हें मेरा दर्शन नहीं होगा, अगले जन्म में तुम मेरे परमभक्त होगे. कई युगों पश्चात ब्रह्माजी के मन में सृष्टि निर्माण की इच्छा जागृत हुई. ब्रह्मा जी की इंद्रियों से मरीचि ऋषि के साथ नारदजी का प्राकट्य हुआ. तभी से उन्हें ब्रह्मा जी का मानस-पुत्र माना जाता है, जो बाद में श्रीहरि के प्रबल भक्त के रूप में लोकप्रिय हुए.