Mangla Gauri Vrat 2024: श्रावण माह में मंगला गौरी व्रत क्यों रखा जाता है? जानें क्या है व्रत का महत्व, मंत्र, पूजा-विधि एवं व्रत-कथा!
सनातन धर्म में मंगलवार का दिन भगवान हनुमान जी को समर्पित है, लेकिन श्रावण माह में सोमवार को भगवान शिव की विशिष्ठ पूजा-अर्चना के साथ-साथ अगले दिन यानी मंगलवार को देवी मंगलागौरी की पूजा की परंपरा भी निभाई जाती है.
सनातन धर्म में मंगलवार का दिन भगवान हनुमान जी को समर्पित है, लेकिन श्रावण माह में सोमवार को भगवान शिव की विशिष्ठ पूजा-अर्चना के साथ-साथ अगले दिन यानी मंगलवार को देवी मंगलागौरी की पूजा की परंपरा भी निभाई जाती है. मंगला गौरी व्रत सुहागन स्त्रियां जहां पति के दीर्घायु एवं दांपत्य जीवन में खुशहाली के लिए व्रत-पूजा करती हैं, वहीं कुंवारी लड़कियां बेहतर जीवन साथी की कामना के साथ इस व्रत एवं पूजा में शामिल होती हैं. बता दें कि इस बार श्रावण मास में कुल चार मंगलवार होने के कारण इन चारों दिन देवी मंगला गौरी का व्रत रखा जायेगा. आइए जानते हैं, इस श्रावण के पहले मंगला गौरी व्रत के महत्व, मुहूर्त, मंत्र एवं पूजा-विधि आदि के बारे में...
मंगला गौरी व्रत का महत्व
हिंदू धर्म में मंगला गौरी व्रत का बड़ा धार्मिक महत्व है. श्रावण मास का मंगलवार का दिन माता गौरी को समर्पित है. इस दिन भक्त मां गौरी की व्रत एवं पूजा करते हैं. मान्यता है कि मंगला गौरी व्रत-पूजन करने से जातक की कुंडली में मौजूद मंगल-दोष से मुक्ति मिलती है. सौभाग्य से जुडे़ होने के कारण नवविवाहिताएं भी आदरपूर्वक एवं आत्मीयता से इस दिन शिव गौरी और हनुमान जी की पूजा उपासना करती हैं. इस व्रत से पति-पत्नी के बीच के रिश्ते मधुर होते हैं. इस व्रत से संतान-सुख की प्राप्ति होती है. इस श्रावण मास में 23 जुलाई, 30 जुलाई, 6 अगस्त एवं 13 अगस्त को मंगला गौरी का व्रत रखा जायेगा यह भी पढ़ें :Lokmanya Tilak Jayanti 2024: एक तरफ स्वतंत्रता आंदोलन, दूसरी ओर समाज कल्याण का संकल्प! जानें कैसा रहा तिलक का दोधारी तलवार पर सफर!
मंगला गौरी व्रत एवं पूजा-विधि
श्रावण मास की द्वितीया को सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें. स्वच्छ वस्त्र धारण कर माँ पार्वती का ध्यान कर व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. अब पूजा-स्थल पर देवी मंगला गौरी अर्थात माता पार्वती की तस्वीर रखें, प्रतिमा पर गंगाजल छिड़ककर प्रतीकात्मक स्नान कराएं. धूप-दीप प्रज्वलित करें. देवी गौरी को चुनरी अर्पित करते हुए निम्न मंत्र का जाप करें.
'कुंकुमागुरुलिप्तांगा सर्वाभरणभूषिताम्।
नीलकण्ठप्रियां गौरीं वन्देहं मंगलाह्वयाम्।।'
अब मां गौरी को रोली का तिलक लगायें, लाल फूलों का माला पहनाएं. लौंग, सुपारी, इलायची, पान, एवं सुहाग की वस्तुएं अर्पित करें. भोग में फल, मिठाई चढ़ाएं. गौरतलब है कि पूजा में अर्पित सभी वस्तुओं की संख्या 16 होती है, क्योंकि 16 की संख्या का संबंध सौभाग्य से जोड़ा जाता है. पूजा के अंत में देवी पार्वती की आरती उतारें.
मंगला गौरी व्रत कथा
प्राचीनकाल में एक व्यापारी धर्मपाल अपनी पत्नी के साथ रहता था. दोनों धार्मिक प्रवृत्ति के थे. एक दिन सपने में ईश्वर ने उन्हें दर्शन देकर पुत्र-प्राप्ति का आशीर्वाद दिया. दोनों बहुत खुश हुए, लेकिन कुछ ज्योतिषियों ने यह कहकर उन्हें दुखी कर दिया कि उनका बेटा जब 16 साल का होगा तब सर्प-दंश से उसकी मृत्यु हो जाएगी. समय पर उनका पुत्र हुआ. कुछ दिनों बाद माता-पिता ज्योतिष की बात भूल गये. उन्होंने अपने बेटे की शादी कर दी. बेटे की पत्नी विवाह के पूर्व से ही मंगला गौरी का व्रत रखती थी. उसके व्रत के प्रभाव से उसके पति की जान बच गयी. इसलिए मान्यता है कि मंगला गौरी व्रत से पति को दीर्घायु मिलती है.