महामूर्ख से महापंडित बने कालीदास के बारे में कहा जाता है कि उनके गले में मां सरस्वती वास करती थीं. शास्त्रार्थ में कोई उन्हें परास्त नहीं कर सकता था. जितने भी विद्वान उनके सम्मुख आए, शास्त्रार्थ में परास्त होकर सभी ने उनकी विद्वता स्वीकारा. अब कालीदास जहां भी जाते उनका खूब मान-सम्मान होता. लेकिन अपार यश, प्रतिष्ठा और मान-सम्मान पाकर कालीदास को घमंड हो गया. अंततः कालीदास जी का घमंड तोड़ने माता सरस्वती को प्रकट होना पड़ा. कैसे आइए जानें...
कालीदास का प्रारंभिक जीवन मूर्खतापूर्ण हरकतों से भरा हुआ था. मगर समय का पहिया घूमता है और वह महामूर्ख कालीदास महापंडित कालीदास बन जाते हैं. अपने शास्त्रार्थ के दम पर उन्होंने दुनिया के सारे विद्वानों को परास्त किया. उन्हें दुनिया का सबसे विद्वान व्यक्ति मान लिया गया. तमाम मान-सम्मान पाकर कालीदास को मतिभ्रम हो गया कि उन्होंने सारी दुनिया को जीत लिया है. अब उन्हें कुछ पाना शेष नहीं रहा. एक दिन पड़ोसी देश से उन्हें शास्त्रार्थ के लिए बुलावा आया. कालीदास सम्राट विक्रमादित्य से अनुमति लेकर अपने घोड़े पर सवार होकर गंतव्य की ओर रवाना हुए.
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कालीदास ने उस वृद्ध महिला को बुलाकर कहा, -माँ, मैं बहुत प्यासा हूं पानी पिला दो. वृद्धा ने कहा, मैं आपको जानती नहीं, मैं भला पानी कैसे पिला दूं आपको. पहले अपना परिचय दो, तभी पानी पिला सकूंगी. कालीदास ने कहा, माँ मैं ‘मेहमान’ हूं. वृद्धा ने कहा. आप असत्य कह रहे हैं. आप ‘मेहमान’ कैसे हो सकते हैं. क्योंकि इस संसार में केवल दो ही ‘मेहमान’ हैं, एक धन और दूसरा यौवन, जो कभी टिककर नहीं रहते. पानी पीना है तो अपना सही परिचय दीजिए. इस पर कालीदास ने कहा, माँ मैं ‘सहनशील’ हूं, अब तो पानी पिला दो. वृद्धा ने कहा आप फिर असत्य बात कह रहे हैं. इस दुनिया में बस दो ही ‘सहनशील’ हैं, एक पृथ्वी जो बिना आह भरे पापी और पुण्यात्मा दोनों का बोझ सदियों से उठा रही है और दूसरा ये सारे वृक्ष, जो पत्थर खाने के बाद भी मीठे-मीठे फल ही देते हैं.
वृद्धा पर भड़क उठे कालिदास
कालीदास का प्यास के मारे बुरा हाल था. अब भी अगर उन्हें वृद्धा पानी नहीं पिलाती तो वे निश्चित रूप से अचेत होकर गिर पड़ते. वृद्धा ने एक बार फिर शांत स्वर में पूछा वत्स, तुमने अपना परिचय अभी भी नहीं दिया. बिना परिचय प्राप्त किए मैं किसी अनजान को पानी नहीं पिला सकती. यह सुनते ही कालीदास ने एकदम से भड़कते हुए कहा, ‘मैं हठी हूं. वृद्धा ने पुनः संयम दर्शाते हुए कहा, आप हठी भी नहीं हो सकते, क्योंकि हठी भी दो ही हैं पहला नख और दूसरा केश. इन्हें कितनी बार भी काटो, ये पुनः उग जाते हैं.’!
जबहुआ था. मगर समय का पहिया घूमता है और वह महामूर्ख कालीदास महापंडित कालीदास बन जाते हैं. अपने शास्त्रार्थ के दम पर उन्होंने दुनिया के सारे विद्वानों को परास्त किया. उन्हें दुनिया का सबसे विद्वान व्यक्ति मान लिया गया. तमाम मान-सम्मान पाकर कालीदास को मतिभ्रम हो गया कि उन्होंने सारी दुनिया को जीत लिया है. अब उन्हें कुछ पाना शेष नहीं रहा. एक दिन पड़ोसी देश से उन्हें शास्त्रार्थ के लिए बुलावा आया. कालीदास सम्राट विक्रमादित्य से अनुमति लेकर अपने घोड़े पर सवार होकर गंतव्य की ओर रवाना हुए.
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कालीदास ने उस वृद्ध महिला को बुलाकर कहा, -माँ, मैं बहुत प्यासा हूं पानी पिला दो. वृद्धा ने कहा, मैं आपको जानती नहीं, मैं भला पानी कैसे पिला दूं आपको. पहले अपना परिचय दो, तभी पानी पिला सकूंगी. कालीदास ने कहा, माँ मैं ‘मेहमान’ हूं. वृद्धा ने कहा. आप असत्य कह रहे हैं. आप ‘मेहमान’ कैसे हो सकते हैं. क्योंकि इस संसार में केवल दो ही ‘मेहमान’ हैं, एक धन और दूसरा यौवन, जो कभी टिककर नहीं रहते. पानी पीना है तो अपना सही परिचय दीजिए. इस पर कालीदास ने कहा, माँ मैं ‘सहनशील’ हूं, अब तो पानी पिला दो. वृद्धा ने कहा आप फिर असत्य बात कह रहे हैं. इस दुनिया में बस दो ही ‘सहनशील’ हैं, एक पृथ्वी जो बिना आह भरे पापी और पुण्यात्मा दोनों का बोझ सदियों से उठा रही है और दूसरा ये सारे वृक्ष, जो पत्थर खाने के बाद भी मीठे-मीठे फल ही देते हैं.
वृद्धा पर भड़क उठे कालिदास
कालीदास का प्यास के मारे बुरा हाल था. अब भी अगर उन्हें वृद्धा पानी नहीं पिलाती तो वे निश्चित रूप से अचेत होकर गिर पड़ते. वृद्धा ने एक बार फिर शांत स्वर में पूछा वत्स, तुमने अपना परिचय अभी भी नहीं दिया. बिना परिचय प्राप्त किए मैं किसी अनजान को पानी नहीं पिला सकती. यह सुनते ही कालीदास ने एकदम से भड़कते हुए कहा, ‘मैं हठी हूं. वृद्धा ने पुनः संयम दर्शाते हुए कहा, आप हठी भी नहीं हो सकते, क्योंकि हठी भी दो ही हैं पहला नख और दूसरा केश. इन्हें कितनी बार भी काटो, ये पुनः उग जाते हैं.’!
जब कालीदास को अपनी भूल का अहसास हुआ
वृद्धा की यह दलील सुनकर कालीदास का संयम जवाब दे गया. वे वृद्धा के सामने लगभग गिरते हुए कहा, -माँ अगर अब भी आपने मुझे पानी नहीं पिलाया तो मेरी मृत्यु निश्चित है. इस पर एक खनखनाती सी आवाज आई, -उठो वत्स!
भूमि पर गिरे कालीदास ने एक बदली हुई आवाज से चौंककर ऊपर देखा तो अवॉक रह गए. उनके सामने श्वेत हंस पर बैठी हाथों में श्वेत वीणा लिए साक्षात माता सरस्वती खड़ी थीं. मां सरस्वती ने कहा, -ज्ञान शिक्षा से आता है न कि अहंकार से. शिक्षा के बल पर प्राप्त मान-सम्मान को तुम अपनी उपलब्धि समझने की भूल कर बैठे. तुम्हारे मन में अहंकार आ गया. विद्वान व्यक्ति कभी भी अपनी विद्वता पर घमंड नहीं करते.’ महाकवि कालीदास को अपनी भूल का अहसास हुआ. वह तुरंत माता सरस्वती के साष्टांग लेट गए. लेकिन तब तक सरस्वती अंतर्ध्यान हो चुकी थीं.