Aja Ekadashi 2025: अजा एकादशी व्रत-पूजा करने के बाद ही राजा हरिश्चंद्र को उनका खोया राजपाट वापस मिला था! जानें इसकी महिमा, पूजा-विधि एवं व्रत कथा आदि!

हिंदू पंचांग के अनुसार साल में कुल 24 एकादशी होती है. 12 शुक्ल पक्ष की और 12 कृष्ण पक्ष की. अधिमास की स्थिति में यह संख्या बढ़ जाती है. हर एकादशी का अपना महत्व है.

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Aja Ekadashi 2025: हिंदू पंचांग के अनुसार साल में कुल 24 एकादशी होती है. 12 शुक्ल पक्ष की और 12 कृष्ण पक्ष की. अधिमास की स्थिति में यह संख्या बढ़ जाती है. हर एकादशी का अपना महत्व है. हम यहां भादो मास कृष्ण पक्ष की अजा एकादशी की बात करेंगे. कुछ स्थानों पर इसे अन्नदा एकादशी या कामिका एकादशी भी कहते हैं, जो सभी पापों एवं कष्टों का नाश करता है. इस वर्ष 19 अगस्त 2025, मंगलवार को अजा एकादशी का व्रत रखा जाएगा. चूंकि एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है, इसलिए अन्य एकादशियों की तरह अजा एकादशी को व्रत एवं भगवान विष्णु एवं देवी लक्ष्मी की पूजा  की जाती है.

यह व्रत एवं पूजा करवाले जातकों के सारे पाप नष्ट होते हैं, घर में सुख समृद्धि आती है, मोक्ष की प्राप्ति होती है. आइये जानते हैं, अजा एकादशी व्रत की महिमा, मंत्र, मूल तिथि, पूजा विधि एवं व्रत कथा के बारे में... ये भी पढ़े:Devshayani Ekadashi 2025: आज से चातुर्मास शुरू, देवशयनी एकादशी पर भूलकर भी न करें ये 5 गलतियां

अजा एकादशी व्रत की महिमा

अजा एकादशी में 'अजा' शब्द का अर्थ है 'जिसका जन्म न हो' या 'अजन्मा'. इसे प्रकृति या आदि शक्ति के रूप में भी देखा जाता है. अजा एकादशी का व्रत करने से भक्तों को अजन्मे बच्चे के समान पवित्रता प्राप्त होती है और उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं.  इस व्रत को करने से खोया हुआ सम्मान, यश और ऐश्वर्य पुनः प्राप्त होते हैं जैसे राजा से चांडाल बनें हरिश्चंद्र को इस व्रत से उनके सारे पापों से मुक्ति एवं खोया हुआ राज-पाट पुनः दिलाया था.

अजा एकादशी व्रत तिथि एवं मुहूर्त

भाद्रपद कृष्ण पक्ष एकादशी प्रारंभः 05.22 PM (18 अगस्त 2025, सोमवार) से

भाद्रपद कृष्ण पक्ष एकादशी समाप्तः 03.32 PM (19 अगस्त 2025, मंगलवार) तक

उदया तिथि के अनुसार अजा एकादशी का व्रत 19 अगस्त 2025 को रखा जाएगा.

पारण कालः 05.53 AM से 08.29AM (20 अगस्त 2025)

अजा एकादशी व्रत एवं पूजा के नियम

भादों मास कृष्ण पक्ष की इस एकादशी को सूर्योदय से पूर्व स्नान-ध्यान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. भगवान विष्णु एवं देवी लक्ष्मी का ध्यान कर हाथ में जल, पुष्प और अक्षत लेकर अजा एकादशी व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. घर के मंदिर के समक्ष एक चौकी रखकर इस पर लाल या पीला वस्त्र बिछाएं. इस पर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित कर उन पर गंगाजल छिड़ककर प्रतीकात्मक स्नान कराएं. अब धूप-दीप प्रज्वलित कर भगवान विष्णु के आह्वान मंत्र का जाप करते हुए पूजा प्रारंभ करें.

‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’

भगवान विष्णु एवं देवी लक्ष्मी को फूल-माला चढ़ाएं, चंदन अक्षत का तिलक लगाएं और तुलसी पत्र अर्पित करें. पंचामृत, फल और मिठाई का भोग लगाएं. अजा एकादशी व्रत कथा का पाठ करें. अब भगवान विष्णु की आरती उतारें. और लोगों को प्रसाद वितरित करें. अगले दिन भोर में स्नान कर व्रत का पारण करें.

अजा एकादशी व्रत की पौराणिक कथा

प्राचीनकाल में एक चक्रवर्ती राजा हरिश्चंद्र थे. उनके पास धन-धान्य अपार धन-संपदा थी, लेकिन एक बार कुछ कारणवश उनका पूरा राज्य नष्ट हो गया. उन्होंने अपनी पत्नी, पुत्र और परिवार को भी खो दिया. वह राजा हरिश्चंद्र से चांडाल बन गए. एक बार गौतम ऋषि गांव आए. हरिश्चंद्र ने उनका अभिवादन किया और उन्हें अपनी समस्या बताई. ऋषि ने हरिश्चंद्र की सारी बातें सुनीं और उन्हें भाद्रपद कृष्ण पक्ष को अजा एकादशी का व्रत करने की सलाह दी. ऋषि ने उनसे कहा कि इस व्रत को करने से सभी पाप नष्ट हो जाएंगे और तुम्हें अपनी खोई संपत्ति भी मिल जाएगी. ऋषि की सलाह मानकर हरिश्चंद्र ने भाद्रपद माह कृष्ण पक्ष की अजा एकादशी का व्रत रखा और भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा की. अजा एकादशी व्रत एवं पूजा के प्रभाव से हरिश्चंद्र के सारे पाप नष्ट हो गए. साथ ही अपना खोया हुआ राज्य हासिल कर लिया.

 

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