Karva Chauth 2019: पति के दीर्घायु के लिए सुहागिनें रखती हैं करवा चौथ का व्रत! जानें इसका महत्व, पूजा विधि, कथा एवं चंद्रमा निकलने का मुहूर्त!
करवा चौथ व्रत 2019, (फोटो क्रेडिट्स: YouTube)

Karva Chauth 2019: सुहागिनों द्वारा पति की दीर्घायु के लिए रखे जानेवाले तमाम व्रतों में करवा चौथ व्रत का महत्व सबसे ज्यादा माना जाता है. बहुत-सी जगहों पर पत्नी के साथ पति भी निर्जल व्रत रखते हैं. इसका मुख्य उद्देश्य एक दूसरे के प्रति प्यार और समर्पण होता है. रात्रि में चंद्रोदय होने पर चांद को अर्घ्य देने के पश्चात पति-पत्नी एक दूसरे का मुखड़ा देखते हैं और फिर भगवान शिव-पार्वती की पूजा-अर्चना कर व्रत का पारण करते हैं. इस व्रत का एक अहम पहलू यह भी है कि व्रत से पूर्व सास अपनी बहु को सरगी देती हैं. इसी सरगी को लेकर बहुएं व्रत प्रारंभ करती हैं. महिलाओं में इस व्रत को लेकर काफी उत्साह रहता है. आइए जानें करवाचौथ का महात्म्य, पूजा-विधान, पारंपरिक कथा और शुभ मुहूर्त...

करवा चौथ व्रत का विधि-विधान

हिंदू पंचांग के अनुसार करवा चौथ का व्रत कार्तिक कृष्णपक्ष की चतुर्थी के दिन मनाया जाता है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 17 अक्टूबर 2019 को गुरुवार के दिन करवा चौथ का महान पर्व पड़ रहा है. इसी दिन गणेश संकष्टि चतुर्थी भी होने के कारण इस व्रत का महत्व बढ़ जाता है. परंपराओं के अनुसार सूर्योदय से पूर्व (अमूमन चार बजे से पूर्व) सास अपनी बहू को सरगी (फल, मिठाई, सूखे मेवे, मठरी, सेवइयां, साड़ियां, वस्त्र इत्यादि) देते हुए उसे सदा सुहागन रहने का आशीर्वाद देती हैं. इसके बाद पूरे दिन सुहागन औरतें व्रत रखती हैं, मान्यता है कि इससे पति को दीर्घायु प्राप्त होती है और उनका दांपत्य जीवन सुखमय रहता है. महिलाओं में करवा चौथ के व्रत को लेकर काफी उत्साह रहता है, क्योंकि इस दिन वह अपने पति के लिए नए-नए वस्त्र, आभूषण पहनती हैं और सोलह श्रृंगार करती है.

करवा चौथ तिथिः

शुभ तिथि एवं पूजा 17 अक्टूबर 2019

करवा चौथ पूजा मुहूर्तः

17.50 मिनट से 18.58 बजे तक

करवा चौथ चंद्रोदयः 08.16 बजे

अर्घ्य का महात्म्य

करवा चौथ के दिन चौथ माता की पूरी विधि-विधान से अर्चना करने के पश्चात चंद्र को अर्घ्य का दान दिया जाता है. मान्यता है कि रात्रि में चंद्रमा की किरणें औषधीय गुणों से युक्त होती हैं. चंद्रमा को अर्घ्य देते समय पति-पत्नी को भी चंद्रदेव की मंगलदायक औषधीय गुणों की प्राप्ति होती है. इसलिए विधान है कि व्रती महिलाओं द्वारा चंद्रमा को अर्घ्य देते समय उसका पति उसके साथ उपस्थित रहता है.

व्रत के नियम

यूं तो अधिकांश सुहागन महिलाएं अपने सुहाग की रक्षा के लिए पूरे दिन निर्जल व्रत रखती हैं और सायंकाल चंद्र दर्शन के पश्चात पति के हाथों से ही पानी पीती हैं और इसके बाद भोजन करती हैं. लेकिन कभी-कभी अस्वस्थता अथवा गर्भवती होने के कारण पत्नी निर्जल व्रत नहीं रख पाती है तो उसे दोपहर के पश्चात पानी अथवा चाय पी लेनी चाहिए. या फिर कहीं-कहीं पत्नी की जगह पति को करवा चौथ का व्रत रखना पड़ता है.

पारंपरिक पूजा विधि

करवा चौथ के दिन सायंकाल चंद्रोदय से ठीक पूर्व शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की पूजा की जाती है. करवा चौथ के दिन प्रातःकाल स्नान-ध्यान करके बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी बनाएं. अब सभी देवों का ध्यान करें. अब एक चौकी पर जल का लोटा रखें. इसके ऊपर मिट्टी का करवा रखें. करवा के ढक्कन में चीनी व रूपया रखें. करवे पर रोली से स्वास्तिक बनाएं. अब मन ही मन सुख सौभाग्य की कामना करते हुए इन देवों का स्मरण करें. करवे पर रोली से टीका करें. रोली चावल एवं पुष्प अर्पित करें. अंत में करवे को प्रणाम करके सास या किसी बुजुर्ग महिला का चरण स्पर्श कर आर्शीवाद प्राप्त करें ग्रहण करें. अगर आपका पहला करवा चौथ का व्रत है तो मायके से आई पूजा सामग्री का प्रयोग सर्वोत्तम होता है.

प्रचलित कथा

प्राचीनकाल में एक साहूकार के सात बेटे और एक बेटी करवा थी. बेटी का विवाह एक वर्ष पूर्व हुआ था. इसलिए पहला करवाचौथ का व्रत रखने वह मायके आयी थी. करवा चौथ आया तो साहूकार की पत्नी और उसकी सभी बहुएं व्रत थीं. शाम को जब सभी भाई खाने पर बैठे तो उन्होंने करवा को भी बुलाया. करवा ने कहा कि वह करवा चौथ का व्रत है. चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही कुछ खाएगी. इकलौती बहन होने के कारण सभी भाई उससे बहुत प्यार करते थे. उन्होंने सोचा बहन भूखी होगी. लिहाजा उन्होंने गांव के बाहर जाकर लकड़ियां जला दी और बहन से कहा कि चंद्रमा निकल आया. अर्घ्य देकर खाना खा लो. करवा की भाभियों ने उसे समझाना चाहा कि अभी चंद्रोदय नहीं हुआ है, तुम्हारे भाई छलनी से आग दिखाकर से चांद बता रहे हैं. लेकिन करवा ने भाभियों की बात नहीं मानी. और नकली चांद को अर्घ्य देकर खाना खा लिया. इससे गणेश जी रुष्ठ हो गए. लिहाजा करवा का पति असाध्य रोग से पीड़ित होकर बिस्तर पकड़ लिया. करवा का एक वर्ष बहुत मुश्किल से बीता. अगले वर्ष पुनः करवा चौथ आया तो उसने विधिवत करवा चौथ का पूरा व्रत रखा. व्रत के प्रभाव से गणेश जी प्रसन्न हो गए. परिणाम स्वरूप उसका पति तो ठीक हुआ ही उनका कारोबार भी चल निकला.