Karva Chauth 2018: सबसे पहले किसने किया था करवा चौथ का व्रत, जानें इससे जुड़ी दिलचस्प कथा
करवा चौथ अखंड सौभाग्य का एक ऐसा पर्व है, जिसका इंतजार सुहागन औरतें हर साल बेसब्री से करती हैं. इस दिन निराहार रहकर, सज-संवरकर, सोलह श्रृंगार करके महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए कामना करती हैं. देश के अधिकांश हिस्सों में महिलाएं इस व्रत को विश्वास और श्रद्धा भाव से करती हैं.
Karva Chauth 2018: करवा चौथ अखंड सौभाग्य का एक ऐसा पर्व है, जिसका इंतजार सुहागन औरतें हर साल बेसब्री से करती हैं. इस दिन निराहार रहकर, सज-संवरकर, सोलह श्रृंगार करके महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए कामना करती हैं. वैसे तो देश के अधिकांश हिस्सों में महिलाएं इस व्रत को विश्वास और श्रद्धा भाव से करती हैं. हालांकि अधिकतर लोगों का मानना है कि करवा चौथ के व्रत का चलन पंजाबी परंपरा का मुख्य हिस्सा रहा है, लेकिन इस व्रत से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं कुछ और ही कहानी बयां करती हैं.
अधिकांश भारतीय महिलाएं इस व्रत को करती हैं, लेकिन क्या आप जानती हैं कि इस पूरे ब्रह्मांड में सबसे पहले करवा चौथ का व्रत किस महिला ने किया था? अगर आप नहीं जानती तो करवा चौथ के इस खास मौके पर चलिए जानते हैं कि उस महिला के बारे में, जिसने सबसे पहले करवा चौथ का व्रत किया था और इस परंपरा को शुरू किया था.
इन्होंने सबसे पहले किया था करवा चौथ का व्रत
मान्यताओं के अनुसार, प्राचीन काल में करवा नाम की एक पतिव्रता स्त्री ने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को अपने पति की लंबी आयु के लिए सबसे पहले व्रत किया था. इस कथा के मुताबिक करवा नाम की स्त्री अपने पति के साथ नदी के किनारे एक गांव में रहती थी, एक दिन जब उसका पति स्नान करने के लिए नदी में गया तो नहाते समय एक मगरमच्छ ने उसका पैर पकड़ लिया और उसे निगलने का प्रयास करने लगा. यह भी पढ़ें: Karva Chauth 2018: करवा चौथ पर बन रहा है ये तीन महासंयोग, अखंड सौभाग्य के लिए इस मुहूर्त में करें पूजन
जैसे ही मगरमच्छ उस व्यक्ति को अपनी तरफ खींचने लगा, वो मदद के लिए अपनी पत्नी करवा को पुकारने लगा. करवा एक पतिव्रता स्त्री थी और उसके सतीत्व में काफी बल था. जैसे ही उसने अपने पति की पुकार सुनी, फौरन दौड़कर उसके पास पहुंची. जिसके बाद अपने पति के पैर को मगरमच्छ के मुंह में फंसा देखकर उसने अपनी सूती की साड़ी से एक धागा निकालकर मगरमच्छ को कच्चे धागे से बांध दिया.
मगरमच्छ को बांधने के बाद करवा अपने पति के प्राणों की रक्षा के लिए सीधे यमराज के पास पहुंची. यमराज उस समय चित्रगुप्त के बही-खाते देखने में व्यस्त थे. जब उनका ध्यान करवा पर गया तो उन्होंने पूछा कि देवी तुम क्या चाहती हो और यहां आने का तात्पर्य क्या है? जिसके बाद करवा ने कहा कि यमराज एक मगरमच्छ ने मेरे पति के पैर को अपने मुंह में फंसा लिया है, इसलिए मैं चाहती हूं कि आप अपनी शक्ति से उस मगर को मृत्युदंड देकर नरक में भेज दें. करवा की बात सुनकर यमराज ने कहा कि अभी मगरमच्छ की आयु शेष है और समय से पहले मैं उसे मृत्युदंड नहीं दे सकता. इस पर करवा ने कहा कि अगर आप मगरमच्छ को मृत्युदंड देकर मेरे पति को लंबी उम्र का वरदान नहीं देंगे तो मैं अपने तपोबल से आपको नष्ट होने का श्राप दे दूंगी.
करवा की यह बात सुनकर चित्रगुप्त सोच में पड गए, क्योंकि करवा एक पतिव्रता स्त्री थी और उसके पास सतीत्व की शक्ति थी, इसलिए उसके वचन को अनदेखा नहीं किया जा सकता था. जिसके बाद उन्होंने मगरमच्छ को असमय मृत्युदंड देकर यमलोक भेज दिया और करवा के पति को लंबी आयु का वरदान दिया. इसके साथ ही चित्रगुप्त ने करवा को सुख-समृद्धि से भरपूर जीवन का वरदान दिया. यह भी पढ़ें: Karva Chauth 2018: अखंड सौभाग्य का पर्व है करवा चौथ, जानें कैसे करें व्रत और क्या है इसकी पूजन विधि?
उन्होंने करवा को वरदान देते हुए कहा कि करवा आज तुमने जो अपने पति की रक्षा अपने तपोबल से की है, इसलिए मैं तुम्हें वरदान देता हूं कि इस तिथि पर जो भी महिला पूर्ण विश्वास और आस्था के साथ व्रत और पूजन करेगी मैं उसके सौभाग्य की रक्षा करूंगा.
दरअसल, करवा ने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को यह व्रत किया था इसलिए इसका नाम करवा चौथ पड़ा. इस तरह मां करवा ही वो पहली महिला हैं, जिन्होंने अपने सुहाग की रक्षा के लिए इस व्रत को पहली बार किया था और उन्हीं से इस परंपरा की शुरुआत हुई थी. इसलिए आज भी करवा चौथ के दिन व्रत करने वाली महिलाएं माता करवा की पूजा करती हैं और उनकी कथा को पढ़ती या सुनती हैं.