Kalashtami 2022: किस देव की पूजा होती है कालाष्टमी पर? जानें इसका महत्व, पूजा-विधि, मंत्र एवं पौराणिक कथा!
कालाष्टमी (Photo: File Image)

Kalashtami 2022: हिंदी पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष पौष मास कृष्णपक्ष की अष्टमी के दिन कालाष्टमी का पर्व मनाया जाता है. इस तिथि के दिन काल भैरव की उपासना के साथ-साथ भगवान शिव एवं माता पार्वती की विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है. गौरतलब है कि कालभैरव भगवान शिव के रौद्र रूप कहलाते हैं. देश के कुछ भागों में इस दिन माँ दुर्गा की पूजा भी की जाती है. अमूमन कालाष्टमी की पूजा मध्य रात्रि में ही की जाती है. मान्यता है कि कालाष्टमी के दिन जो भी श्रद्धालु काल भैरव की पूजा-अनुष्ठान करता है, उसे बाबा भैरव का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष कालाष्टमी 16 दिंसबर, 2022, शुक्रवार के दिन मनाई जायेगी. यह भी पढ़ें: 2023 Yearly Horoscope: नये वर्ष में किसकी चमकेगी किस्मत और किसके लिए बनेगा चुनौती? जानें अपना वार्षिक भविष्यफल

कालाष्टमी का महत्व

मान्यता है कि कालाष्टमी के दिन बाबा काल भैरव की पूजा करने से असाध्य रोग से मुक्ति मिलती है. इसके साथ ही यह भी कहा जाता है कि काल भैरव की कृपा से अकाल मृत्यु का भय मिटता है, ग्रह दोष दूर होते हैं. और नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं. काल भैरव को तंत्र-मंत्र का देव भी कहते हैं, जो अपने शत्रुओं एवं विरोधियों से भयभीत रहते हैं, उन्हें काल भैरव की पूजा अवश्य करनी चाहिए.

कालाष्टमी तिथि

कालाष्टमी प्रारंभः 01.39 AM (16 दिसंबर 2022, शुक्रवार) से

कालाष्टमी समाप्तः 03.02 AM (17 दिसंबर 2022, शनिवार) तक

उदयातिथि के अनुसार, कालाष्टमी 16 दिसंबर को मनाई जाएगी.

पूजन एवं व्रत के नियम

कालाष्टमी के दिन ब्रह्ममुहूर्त में स्नान-दान करने के पश्चात स्वच्छ वस्त्र पहनें. पूरे दिन व्रत रहते हुए काल भैरवजी की विधि-विधान के साथ पूजा करें. बहुत जगहों पर कालाष्टमी के दिन काल भैरवजी के साथ काले कुत्ते की भी पूजा की जाती है. पूजा करते हुए निम्न मंत्र का जाप भी करना चाहिए.

ॐ भयहरणं च भैरव:, ॐ कालभैरवाय नम:।

ॐ ह्रीं बं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं,

ॐ भ्रं कालभैरवाय फट्।

पूजा के पश्चात काल भैरवजी की पौराणिक कथा भी सुनना चाहिए. कथा के पश्चात गरीबों को अन्न एवं वस्त्र का दान करने से काल भैरव जी का विशेष आशीर्वाद एवं अक्षुण्य पुण्य प्राप्त होता है. इस दिन स्नान के पश्चात करीब स्थित काल भैरव मंदिर में जाकर कालभैरव जी के सामने सरसों के तेल का दीपक जरूर जलाना चाहिए.

कालाष्टमी की पौराणिक कथा

एक बार ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) में बहस छिड़ी कि तीनों में कौन श्रेष्ठ है. देवताओं की मध्यस्था से जो हल निकला, उसका समर्थन भगवान शिव एवं विष्णुजी ने तो किया, लेकिन ब्रह्माजी ने रुष्ठ होकर शिवजी को कुछ अपशब्द कह दिया. इससे भगवान शिव रुष्ठ हो गये. उनके क्रोधित होने से हाथों में छड़ी लिये, भैरवजी प्रकट हुए. भैरवजी ने ब्रह्माजी के पांच मुख में से एक मुख को काट लिया, तभी से ब्रह्मा केवल चारमुखी बनकर रह गये. ब्रह्माजी का सर काटने से भैरवजी पर ब्रह्म-हत्या का पाप लगा. अंततः ब्रह्माजी को अपनी गलती का अहसास हुआ, उन्होंने काल भैरव से माफी मांगी. इसके बाद भगवान शिव अपने स्वरूप में आये. ब्रह्म-हत्या के कारण भैरव बाबा को काफी दिनों तक भिखारी बनकर रहना पड़ा. सैकड़ों सालों बाद काशी में उनका दण्ड खत्म हुआ. इसलिए इन्हें दण्डपाणि का नाम भी पड़ा.