Jhoolan Yatra 2025: झूलन-यात्रा कब, कहां और क्यों मनाया जाता है? जानें इसका महत्व एवं इसका 5 दिवसीय कार्यक्रम!
कृष्ण जन्मोत्सव से पूर्व ही कृष्ण की नगरी वृंदावन में भिन्न-भिन्न महोत्सव शुरु हो जाते हैं, जिनका हिंदू धर्म में खास महत्व है. ऐसा ही एक पर्व है झूलन यात्रा, जिसे झूला उत्सव भी कहते हैं. यह पर्व श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी से पूर्णिमा तक चलता है, जो भगवान श्रीकृष्ण और राधा की चंचल लीलाओं का प्रतीक है.
कृष्ण जन्मोत्सव से पूर्व ही कृष्ण की नगरी वृंदावन में भिन्न-भिन्न महोत्सव शुरु हो जाते हैं, जिनका हिंदू धर्म में खास महत्व है. ऐसा ही एक पर्व है झूलन यात्रा, जिसे झूला उत्सव भी कहते हैं. यह पर्व श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी से पूर्णिमा तक चलता है, जो भगवान श्रीकृष्ण और राधा की चंचल लीलाओं का प्रतीक है. सावन माह में झूलन उत्सव के दौरान राधा-कृष्ण को फूलों से सजे झूले पर झुलाया जाता है. और भक्तगण भावविभोर होकर नृत्य गीत करते हैं, और व्यक्तिगत रूप से ईश्वर से जुड़ने की कोशिश करते हैं. इस वर्ष झूलन यात्रा 5 अगस्त से 9 अगस्त 2025 तक मनाया जाएगा. आइये जानते हैं झूलन यात्रा की तिथियों, महत्व एवं इससे संबंधित पौराणिक कथा के बारे में
झूलन-यात्रा 2025 उत्सव कार्यक्रम
झूलन यात्रा प्रारंभः 05 अगस्त 2025, मंगलवार
झूलन यात्रा समाप्तः 09 अगस्त 2025, शनिवार
झूला सजाना: भगवान कृष्ण और राधा को एक विस्तृत रूप से सजाए गए झूले पर झुलाया जाता है.
भजन-कीर्तन: मंदिरों में भक्त भजन गाते हैं, और भगवान की महिमा का गुणगान करते हैं.
संगीतमय संध्या: भक्तों के लिए संगीत और नृत्य का आयोजन किया जाता है.
महाप्रसाद: भक्तों को प्रसाद वितरण किया जाता है.
अन्य कार्यक्रम: कुछ मंदिरों में विशेष अभिषेक, झांकी दर्शन और अन्य धार्मिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं.
झूलन यात्रा 2025: अनुष्ठान
झूलन यात्रा का यह भक्तिपूर्ण पर्व मथुरा, वृंदावन एवं मायापुर में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है. इस दरमियान हजारों श्रद्धालु राधा-रानी और भगवान कृष्ण की पूजा-अर्चना के लिए एकत्र होते हैं. राधा-कृष्ण को गर्भगृह से बाहर लाया जाता है, फूलों से सजे स्वर्ण अथवा चांदी से बने झूले पर बिठाया जाता है. इस दौरान बांके बिहारी, राधा रमण और द्वारिकाधीश जैसे मंदिरों में जीवंत ऊर्जा और आध्यात्मिक उत्सव जीवंत से हो उठते हैं.
झूलन-यात्रा का महत्व
झूलन यात्रा भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी के दिव्य प्रेम और चंचल लीलाओं का प्रतिनिधित्व करता है. इस परंपरा की शुरुआत वृंदावन से हुई, जहां गोपियों ने अपने प्रिय श्रीकृष्ण और उनकी शाश्वत संगिनी के सम्मान में प्रेमपूर्वक फूलों से लदा झूला बनाया और शिद्दत से उनका बाट जोहती हैं, यह पर्व इस तथ्य का महिमामंडन करता है कि कैसे एक सामान्य झूला भी भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक बन सकता है.
झूलन यात्रा की पौराणिक कथा?
कहा जाता है कि एक बार बरसाने (वृषभानु पुर) में भगवान कृष्ण एवं राधा की सखियों ने राधा-कृष्ण के स्वागत के लिए कदम्ब के ऊंचे वृक्षों पर सुगंधित फूल, पत्तियों और सुनहरी रस्सियों आदि से दो खूबसूरत झूले बनाये. राधा-कृष्ण जब वृषभानु पर पहुंचे तो राधा-कृष्ण को साथियों द्वारा तैयार किये आठ पंखुड़ियों वाला झूलों पर अष्टसखियां कृष्ण और राधा के बीच बैठी थीं. झूला झूलते कृष्ण कभी राधा को अपने झूले में खींच लेते तो कभी चलते झूले में कूद कर राधा के पास पहुंच जाते. आसपास खड़ी उनकी सखियों के लिए दिव्य दृश्य था, वे राधा-कृष्ण पर पुष्प वर्षा करते, वाद्य यंत्र बजाते, उनकी आरती उतारती. कोई मीठे पान परोसती, तो कोई उन पर गुलाब जल की छिड़काव करतीं.
राधा-कृष्ण की उसी रास-लीला की स्मृति में हर वर्ष मथुरा, वृंदावन आदि के राधा-कृष्ण के मंदिरों में झूलन यात्रा की परंपरा निभाई जाती है. यह परंपरा कृष्ण जन्मोत्सव से पांच दिन पूर्व शुरू होकर जन्माष्टमी के दिन खत्म होती है.