Jawaharlal Nehru Death Anniversary 2020: गांधी-नेहरू की वह पहली मुलाकात, जानें क्या था उनकी जबरदस्त बॉन्डिंग का राज
भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की आज 56वीं पुण्यतिथि मनाई जा रही है. उनका निधन 27 मई 1964 को हुआ था. ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ स्वतन्त्रता संग्राम में असंख्य अहिंसावादी एवं क्रांतिकारियों ने भाग लिया, मगर जो सफलता एवं सुर्खियां गांधी और नेहरू की जोड़ी को मिली, वह किसी अन्य को नसीब नहीं हुई. आखिर इनकी बाउंडिंग के पीछे केमिस्ट्री क्या थी?
Jawaharlal Nehru Death Anniversary 2020: ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ स्वतन्त्रता संग्राम में असंख्य अहिंसावादी एवं क्रांतिकारियों ने भाग लिया, मगर जो सफलता एवं सुर्खियां गांधी (Mahatma Gandhi) और नेहरू (Jawaharlal Nehru) की जोड़ी को मिली, वह किसी अन्य को नसीब नहीं हुई. आखिर इनकी बॉन्डिंग के पीछे केमिस्ट्री क्या थी? आइए जानें, दोनों शख्सियतों की पहली मुलाकात और इस मुलाकात पर दोनों की प्रतिक्रिया क्या थी.
वह पहली मुलाकात
26 दिसंबर, 1916 चारबाग रेलवे स्टेशन (लखनऊ) पर 27 साल का एक नवजवान उतरता है. प्रयागराज (इलाहाबाद) से आये इस युवक की औपचारिक मुलाकात अहमदाबाद से आए 47 वर्षीय एक गुजराती व्यक्ति से होती है. लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने आए दोनों के बीच सामान्य अभिवादन से शुरू हुई बातचीत घंटों चलती हैं. और दोनों का गठबंधन दुनिया के इतिहास में दर्ज हो जाता है. ये शख्सद्वय थे, पं. जवाहरलाल लाल नेहरू (Pandit Jawaharlal Nehru) और मोहनदास करमचंद गांधी (Mohandas Karamchand Gandhi). क्रिसमस के दिन दोनो के बीच क्या-क्या बातें हुई, इसका प्रमाणिक उल्लेख नहीं है, लेकिन उनके बीच इतनी घनिष्ठता तो दिखी ही कि पंडितजी ने गांधीजी को प्रयागराज (इलाहाबाद) स्थित मेयो कॉलेज में एक व्याख्यान में बुलवा लिया. इसके बाद नेहरू गांधीजी को अपने आवास आनंद भवन पर आमंत्रित किया. गांधीजी को आनंद भवन इतना रास आया कि बताते हैं कि अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आधे से ज्यादा आंदोलनों की नींव यहीं रखी गई.
नेहरू की ‘आत्मकथा’ में दर्ज वो मुलाकात!
अपनी पहली आत्मकथा में गांधीजी के साथ इस पहली मुलाकात का नेहरूजी ने जिस तरह उल्लेख किया, उसके अनुसार ‘मैं और मेरे साथी दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी की वीरता और साहस भरे कदमों के साथ छेड़े उनके वीरतापूर्ण संघर्ष के जबरदस्त प्रशंसक थे, किंतु जहां तक आजादी की इस लड़ाई में शामिल नवयुवकों की बात है तो उनकी दृष्टि में वे भिन्न और अराजनीतिक लगे थे. हालांकि आगे चलकर हमने साथ में बहुत अच्छे-अच्छे काम किए. यह भी पढ़ें: देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की 130वीं जयंती पर इन राजनेताओं ने दी श्रद्धांजलि
जानें गांधीजी ने क्या लिखा अपनी आत्मकथा में?
गांधीजी ने अपनी आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ में जवाहरलाल नेहरू का जिक्र बहुत संक्षिप्त में किया है. चूंकि चार साल पहले ही नेहरू इंग्लैंड से कालेज की पढ़ाई पूरी कर भारत वापस लौटे थे. वे ज्यादातर यूरोपियन पोशाक पहनते थे. हैरो और कैम्ब्रिज के संस्कार उन पर हावी थे. नेहरूजी के एटीट्यूड को गांधी जी ने उनके घमंडी नेचर से जोड़ा. उन्होंने गांधीजी के शब्दों में, ‘उन दिनों नेहरू थोड़े घमंडी थे.’
आत्मकथाओं में इतना विरोधाभास होने के बावजूद गांधी-नेहरू के बीच कभी बिखराव देखने को नहीं मिला. कहते हैं कि उनके बीच जो केमिस्ट्री बनी, उसी की वजह से उनकी मित्रता इतनी लंबी चली.