सनातन धर्म में राधा-कृष्ण के प्रेम को शाश्वत प्रेम का प्रतीक माना जाता है. एक ऐसा बंधन जो समय से परे है. गीतों और चित्रों से लेकर विवाह की रस्मों और रोजमर्रा के मुहावरों तक, राधे-कृष्ण के नाम इस तरह बोले जाते हैं, मानो वे अविभाज्य हों, लेकिन तमाम प्रसंगों के बीच अकसर यह सवाल लोगों के मन में उठता है कि राधा के पति कौन थे? क्या राधा-कृष्ण का प्रेम कभी विवाह में परिवर्तित हुआ था? जब राधा-कृष्ण की बात होती है, तो भक्तों की राय अक्सर भिन्न-भिन्न होती है. कुछ अनुयायी उनके दिव्य मिलन को विवाह में परिवर्तित बताते हैं, तो कुछ का विश्वास है कि उनका पवित्र प्यार कभी भी विवाह जैसे सांसारिक अनुष्ठानों से बंधा नहीं था.
कौन थे राधा के असली पति?
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, राधा लक्ष्मी का अवतार हैं, क्योंकि देवी लक्ष्मी ने क्रमशः चार बार (रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवती राधा) जन्म लिया था. इस अहम प्रश्न में एक नाम है, अयन का, जो भगवान विष्णु का भक्त था, जिसने भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या की. इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें लक्ष्मी के अगले जन्म में उनसे विवाह करने का वरदान दिया. अयन का दूसरा नाम अभिमन्यु था, (महाभारत का अभिमन्यु नहीं). राधा-अयन का विवाह हुआ था, गांव वाले इसे विवाह तो मानते हैं, लेकिन अंतरंग संबंध नहीं, क्योंकि अभिमन्यु अपने व्यवसाय में और राधा घर के कामों में व्यस्त रहती थीं. जाटव में एक मंदिर इस रिश्ते का प्रमाण उपलब्ध है. उनके विवाह को सामाजिक विवाह माना जाता है, जो प्रेम या वैवाहिक संबंध से अलग एक कर्तव्य और सामाजिक व्यवस्था तक था.
राधा-कृष्ण का विवाह शारीरिक नहीं आध्यात्मिक था?
मान्यताओं के अनुसार भगवान कृष्ण की आठ मुख्य पत्नियां (रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवती, कालिंदी, मित्रविंदा, नग्नजित, भद्रा और लक्ष्मणा) थीं, जिन्हें अष्टभार्या के नाम से जाना जाता है. इनके अलावा, कृष्ण ने 16 हजार स्त्रियों से भी विवाह किया था, जिन्हें उन्होंने राक्षस नरकासुर से बचाया था, जो उनके प्रति उनकी सुरक्षा और सम्मान का प्रतीक है.
राधा-कृष्ण की अधिकांश प्रेम कथाओं की पृष्ठभूमि वृंदावन बताई जाती है. निधिवन जैसे स्थान को इन दोनों के शाश्वत प्रेम का केंद्र माना जाता है, जो रासलीला से शुरू होकर होली तक, उनके शुद्ध, आध्यात्मिक संबंधों के सार का जश्न मनाता है. एक लोकप्रिय कथा के अनुसार युवा कृष्ण अपनी बांसुरी से पूरे गांव को मंत्रमुग्ध कर देते थे, जिससे राधा सहित गोपियां अपने सारे कामकाज छोड़कर उनके सानिध्य में आनंदपूर्वक नृत्य करती थीं.
भागवत पुराण और गीत गोविंदा जैसे प्राचीन ग्रंथों में, राधा-कृष्ण के बीच शारीरिक विवाह के बजाय भक्ति और आध्यात्मिक संवाद को दर्शाया गया है. उनका प्रेम कविता, संगीत और कला में अमर है. इस संदर्भ में इस्कॉन की वेबसाइट पर उल्लेखित है, ‘यह साबित करने के लिए कि प्रेम और विवाह दोनों एक-दूसरे से पूरी तरह अलग हैं. कृष्ण राधा ने विवाह न करने का फैसला इसलिए किया था, क्योंकि प्रेम शारीरिक होने की तुलना में शुद्ध और निस्वार्थ भावना है, दोनों ने एक-दूसरे से विवाह न करके प्रेम की सर्वोच्च भक्ति का परिचय दिया.













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