Jallianwala Bagh Massacre 2023: हजारों निर्दोषों के दुर्दांत अपराधी को अंग्रेजों ने दिया ‘सेवियर ऑफ पंजाब’ लिखा तलवार! जानें हृदयस्पर्शी गाथा!

अगर कहा जाये कि 13 अप्रैल 1919 को ब्रिटिश सरकार ने जलियांवाला बाग (पंजाब) में भारतीयों के साथ नृशंसता की पराकाष्ठा को भी पीछे छोड़ दिया था, तो गलत नहीं होगा. सिखों के महापर्व बैसाखी पर जलियांवाला बाग में भारी संख्या में बच्चे, युवा, वृद्ध और महिलाएं खुशिया मना रहे थे. अचानक ब्रिटिश पुलिस ने उन पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी.

Jallianwala Bagh

अगर कहा जाये कि 13 अप्रैल 1919 को ब्रिटिश सरकार ने जलियांवाला बाग (पंजाब) में भारतीयों के साथ नृशंसता की पराकाष्ठा को भी पीछे छोड़ दिया था, तो गलत नहीं होगा. सिखों के महापर्व बैसाखी पर जलियांवाला बाग में भारी संख्या में बच्चे, युवा, वृद्ध और महिलाएं खुशिया मना रहे थे. अचानक ब्रिटिश पुलिस ने उन पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. बाहर निकलने के एकमात्र गेट को पुलिस ने पहले ही ब्लॉक कर रखा था. देखते-देखते पूरा बाग लाशों से पट गया. घटना के पश्चात पुलिस घायलों और मृतकों को जस का तस छोड़कर चली गई. अंग्रेज पुलिस की इस बर्बरता की दुनिया भर में आलोचना हुई, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने जघन्य अपराध करने वाले जनरल डॉयर को एक तलवार भेंट कर पुरस्कृत किया जिस पर लिखा था Savior of Punjab. आज उस दुर्दांत घटना के 104 साल हो रहे हैं, बाद बात करेंगे इस घटना की पल-पल के बारे में..

ऐसे हुई घटना की शुरुआत

9 अप्रैल 1919, दो नेताओं डॉ सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू को ब्रिटिश पुलिस ने रौलेट एक्ट के विरुद्ध धरना-प्रदर्शन के आरोप में गिरफ्तार कर कालापानी की सजा सुनाई थी. 10 अप्रैल को अमृतसर के उप कमिश्नर के घर पर इन नेताओं की रिहाई की मांग की गई, लेकिन ब्रिटिशर्स ने शांतिपूर्ण विरोध कर रहे लोगों पर गोलियां चलवा दी. इससे जनता आक्रोशित होकर बैंकों, सरकारी भवनों, टाउन हॉल एवं रेलवे स्टेशन पर तोड़-फोड़ और आगजनी हुई. इस घटना में 5 यूरोपीय नागरिकों की हत्या हुई तथा करीब दो दर्जन से ज्यादा भारतीयों की मृत्यु हो गई. विद्रोह को कुचलने के लिए ब्रिटिश सेना ने मार्शल लॉ लागू कर दिया.

मेले में मौत का मातम!

13 अप्रैल 1919 पंजाब को लोकप्रिय पर्व बैसाखी का दिन था. जलियांवाला बाग (अमृतसर) में भारी मेला लगता था. गौरतलब है कि तीन तरफ से ऊंचे-ऊंचे घरों के बीच में बने इस बाग से निकलने का एकमात्र फाटक था. बैसाखी का मेला देखने आये काफी पर्यटक भी सपरिवार बाग में उपस्थित थे. एक रेहड़ी पर चढ़कर कुछ नेता एक दिन पहले हुई गोलीबारी के संदर्भ में भाषण दे रहे थे. सब कुछ शांति से चल रहा था. तभी ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड 90 सशस्त्र शस्त्रों से आकर बाग के मुख्य द्वार को जाम करते हुए लोगों पर गोलियां चलाने का आदेश दे दिया. गोलियों से बचकर निकलने का कोई रास्ता नहीं था. कोई जगह नहीं मिली तो बाग में स्थित कुएं में लोगों ने छलांग लगानी शुरू की. देखते ही देखते कुआं भी पट गया. बताया जाता है कि ब्रिटिश जनरल के आदेश पर 1650 गोलियां निर्दोष बच्चों-बूढ़ों पर बरसाई गई.

मृतकों की सही संख्या छिपाई गई

जलियांवाला बाग में लगी पट्टिका के अनुसार कुएं में 120 शव, डिप्टी कमिश्नर के कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, जबकि तत्कालीन नेता मदन मोहन मालवीय के बयान के अनुसार करीब 1300 लोगों की हत्या हुई थी, वहीं अमृतसर के तत्कालीन सिविल सर्जन डॉक्टर स्मिथ का मानना था कि जलियांवाला बाग में मृतकों की संख्या 1800 से भी ज्यादा थी.

ब्रिटिश अधिकारियों की मिलीभगत

नृशंस हत्या के मुख्य आरोपी ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को टेलीग्राम देकर बताया कि भारतीयों की एक भीड़ ने उन पर सशस्त्र हमला किया, जिससे बचने के लिए उन्हें गोलियां चलानी पड़ी. ब्रिटिश लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर मायकल ओ डायर ने जवाब रेजीनॉल्ड डायर को टेलीग्राम किया कि तुमने सही कदम उठाया. मैं तुम्हारे निर्णय को अनुमोदित करता हूं. यही नहीं मायकल ओ डायर ने अमृतसर और इसके इर्द-गिर्द के क्षेत्रों में मार्शल लॉ लगाने की अपील की, जिसे वायसराय लॉर्ड चेम्सफ़ोर्ड ने स्वीकृति दे दिया.

हत्याकांड के दोषी डायर की दुनिया ने की निंदा तो ब्रिटिशर्स ने भेंट किया तलवार

जलियांवाला बाग की खबर जंगल में आग की तरह दुनिया भर में फैल गयी. भारतीय उपमहाद्वीप में आक्रोश बढ़ गया. हंटर आयोग ने 1920 में जनरल डायर को फटकार लगाते हुए इस्तीफा मांगा तो ब्रिटिश के हाउस ऑफ लॉर्ड्स ने डायर की प्रशंसा करते हुए 'Savior of Punjab' से अलंकृत तलवार भेंट किया. नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने 1915 में प्राप्त नाइटहुड की उपाधि वापस लौटा दिया. महात्मा गांधी पहले तो खामोश थे, मगर हालात देखते हुए उन्होंने असहयोग आंदोलन शुरू किया, लेकिन जलियांवाला बाग की घटना से आक्रोशित क्रांतिकारियों ने जब ब्रिटिशर्स को हिंसा का जवाब हिंसा से देना शुरू किया तो गांधी जी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया. उधर जनरल डायर क्रांतिकारियों से जान बचाने के लिए इंग्लैंड भाग गया.

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