VIDEO: PM मोदी ने जलियांवाला बाग नरसंहार के शहीदों को किया नमन, 105 साल बाद भी ताजा हैं वो ज़ख्म

जलियांवाला बाग हत्याकांड: आज से ठीक 105 साल पहले, 13 अप्रैल 1919 को, जलियांवाला बाग में एक भयावह घटना घटी जिसने पूरे भारत को झकझोर कर रख दिया. निहत्थे, शांतिपूर्ण ढंग से इकट्ठा हुए लोगों पर जनरल डायर के नेतृत्व में गोलियां बरसाई गई, जिसमें सैकड़ों निर्दोष लोग मारे गए और हजारों घायल हुए.

आज, 105 साल बाद भी, जलियांवाला बाग हत्याकांड के ज़ख्म हमारे दिलों में ताज़ा हैं. यह घटना ब्रिटिश राज की क्रूरता और अत्याचार का प्रतीक बन गई, और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जलियांवाला बाग हत्याकांड के सभी शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की है. उन्होंने एक वीडियो साझा करते हुए लिखा - "देशवासियों की ओर से, मैं जलियांवाला बाग हत्याकांड के सभी वीर शहीदों को नमन करता हूं."

 

यह दिन हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता की कीमत कितनी बड़ी होती है, और हमें अपने स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान को कभी नहीं भूलना चाहिए. हमें यह भी याद रखना चाहिए कि शांति और अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए, हमें अपने देश की एकता और अखंडता की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहना है.

जलियांवाला बाग हत्याकांड: एक काला अध्याय

जलियांवाला बाग हत्याकांड भारतीय इतिहास का एक दर्दनाक और काला अध्याय है. यह घटना 13 अप्रैल, 1919 को बैसाखी के दिन अमृतसर, पंजाब में घटी थी. उस दिन, हजारों लोग जलियांवाला बाग नामक एक बगीचे में इकट्ठा हुए थे. कुछ लोग बैसाखी का त्योहार मनाने आए थे, तो कुछ लोग रोलेट एक्ट के विरोध में शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन कर रहे थे.

रोलेट एक्ट एक ऐसा कानून था जिसके तहत ब्रिटिश सरकार बिना किसी मुकदमे के लोगों को गिरफ्तार कर सकती थी. इस कानून का पूरे देश में विरोध हो रहा था.

जलियांवाला बाग एक चारों तरफ से बंद बगीचा था, जिसके बाहर निकलने के लिए सिर्फ एक छोटा सा रास्ता था. ब्रिटिश सेना के जनरल डायर ने अपने सैनिकों के साथ बगीचे को घेर लिया और बिना किसी चेतावनी के भीड़ पर गोलियां चलानी शुरू कर दीं. लोग जान बचाने के लिए इधर-उधर भागे, लेकिन बंद बगीचे में उनके पास बचने का कोई रास्ता नहीं था.

इस गोलीबारी में सैकड़ों निर्दोष लोग मारे गए और हजारों घायल हुए. मरने वालों में बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग भी शामिल थे. यह घटना ब्रिटिश राज की क्रूरता और अत्याचार का प्रतीक बन गई और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई.