International women’s day 2019: कठिन परिस्थितियों से लड़कर महिलाएं बनी दुनिया के लिए मिसाल, पढ़ें ऐसी ही वीरांगनाओ की शान में ये कविता
हर साल 8 मार्च को इंटर नैशनल वुमेंस डे मनाया जाता है. ये दिन महिलाओं के सम्मान और उनके सक्सेस के लिए घोषित किया गया. वुमंस डे के दिन पुरुषों को एहसास दिलाया जाता है कि महिलाओं के बिना वो कुछ नही हैं. महिला सृजनकर्ता है...
हर साल 8 मार्च को इंटर नैशनल वुमंस डे (International women’s day 2019) मनाया जाता है. ये दिन महिलाओं के सम्मान और उनके सक्सेस के लिए घोषित किया गया है. वुमंस डे के दिन पुरुषों को एहसास दिलाया जाता है कि महिलाओं के बिना वो कुछ नही हैं. महिला सृजनकर्ता है. उनसे ही समाज का कल्याण और विकास है. वुमंस डे की शुरुआत महिलाओं को वोट देने के अधिकार के लिए हुई थी क्योंकि बहुत सारे देश ऐसे थे जहां महिलाओं को वोट देने का अधिकार नहीं था. भारत में आधी से ज्यादा आबादी वुमंस डे को बहुत ही धूम-धाम से सेलिब्रेट करती है. ये दिन महिलाओं को उनकी क्षमता, सामाजिक, राजनैतिक व आर्थिक तरक्की याद करने का दिन है जिन्होंने अपने काम से लोगों के दिलों पर राज किया.
भारत देश दुर्गा और काली का देश है. यहां महिलाओं को देवी कहा जाता है और उनकी रिस्पेक्ट की जाती है. पुराने समय की महिलाओं और अब की महिलाओं के मुकाबले उनमें बहुत सुधार आया है. आज की महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं. ऐसा कोई फिल्ड नहीं है जहां महिलाएं अग्रसर नहीं है. गांव की माहिला हो, या शहर की, हाउस वाइफ हो या फिर वर्किंग सभी महिलाएं अपने आप में परिपूर्ण हैं. किसी ने बाहर काम कर ख्याति हासिल की है. किसी ने खेतों और अपने परिवार को पालने और उन्हें जोड़कर रखने में दक्षता हासिल की है. महिलाओं के बलिदान और उनके सम्मान के लिए पेश है एक कविता.
एक बेटी हूं.
एक बहन हूं.
एक प्रेमिका हूं मैं.
स्त्री हूं मैं.
कल किसी की पत्नी बनूंगी.
किसी की बहू बनूंगी.
पराए घर को अपना बनाऊंगी.
उनका वंश चलाउंगी मैं.
क्योंकि स्त्री हूं मैं.
मुझे पता है लाखों खामियां है मुझमें.
लेकिन इन खामियों के साथ भी परिपूर्ण हूं मैं.
10 से 7 ऑफीस में काम करती हूं.
चिलचिलाती धूप में खेतों में काम करती हूं.
दूसरों के घर के जूठे बरतन धोती हूं.
लेकिन स्वाभिमानी हूं मैं.
स्त्री हूं मैं.
थक कर चूर होकर घर आती हूं.
लेकिन माथे पर शिकन तक नहीं होती.
क्योंकि स्त्री हूं मैं.
हर तकलीफ को पी जाती हूं.
मुश्किलों से लड़ जाती हूं.
लेकिन हार नहीं मानती हूं मैं.
क्योंकि स्त्री हूं मैं
मैं जन्मदात्री हूं.
अन्नपूर्णा हूं और मैं ही चंडी हूं.
पूरे घर को बांधकर रखनेवाली नाजुक डोर हूं मैं.
घर का स्तंभ हूं मैं
स्त्री हूं मैं.
महिला चंडी, काली, सरस्वती तीनों है. उन पर या उनके परिवार पर जब भी कोई मुश्किल आती है तो वो उस मुश्किल से लड़ने के लिए चंडी का रूप ले लेती है. गुस्सा आने पर काली की तरह दुश्मन का सर्वनाश कर देती है और सरस्वती की तरह ग्यानी और कला से परिपूर्ण अपने परिवार और बच्चों को अच्छे संस्कार देती है.