Hindi Diwas 2019: 14 सितंबर को ही क्यों मनाया जाता है ‘हिंदी दिवस’!
हमारे देश में प्रत्येक वर्ष ‘हिंदी दिवस’ को एक पर्व की तरह सेलीब्रेट किया जाता है. स्वतंत्रता प्राप्ति के दो वर्ष बाद हिंदी को संवैधानिक भाषा का दर्जा मिला था. अंततः 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में यह निर्णय लिया गया कि हिंदी ही आजाद भारत की संवैधानिक भाषा होगी.
Hindi Diwas 2019: हमारे देश में प्रत्येक वर्ष ‘हिंदी दिवस’ को एक पर्व की तरह सेलीब्रेट किया जाता है. स्वतंत्रता प्राप्ति के दो वर्ष बाद हिंदी को संवैधानिक भाषा का दर्जा मिला था. अंततः 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में यह निर्णय लिया गया कि हिंदी ही आजाद भारत की संवैधानिक भाषा होगी. इसके पश्चात वर्धा में राष्ट्रीय प्रचार समिति ने हिंदी के प्रचार-प्रसार और सार्वजनिक मान्यता के लिए ‘हिंदी दिवस’ मनाने का अनुरोध किया और 4 वर्ष पश्चात 1953 में 14 सितंबर से ही ‘हिंदी दिवस’ मनाने का सिलसिला शुरू हुआ.
‘हिंदी दिवस’ के दिन स्कूल, कॉलेजों और सरकारी कार्यालयों में निबंध, काव्य पाठ, वाद-विवाद जैसे तमाम कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. ऐसा नहीं है कि सरकारी कार्यालयों में केवल और केवल इसी दिन ‘हिंदी दिवस’ मनाया जाता है. सर्वविदित है कि 14 सितंबर को ‘हिंदी दिवस’ के अलावा 10 जनवरी को ‘विश्व हिंदी दिवस’ भी मनाया जाता है. आइए जानते हैं ‘हिंदी दिवस’ का इतिहास क्या है.
हिंदी दिवस का इतिहास
भारत विविधताओं से भरा देश है और विभिन्न भाषा-भाषाई, विभिन्न संस्कृतियों वाले यहां रहते हैं. इस देश में हर राज्य की अपनी सांस्कृतिक, राजनीतिक और ऐतिहासिक पहचान है, इतना ही नहीं सभी जगह अलग-अलग बोलियां बोली जाती हैं. लेकिन इसमें हिंदी बोलने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है. हिंदी के इसी प्रभुत्व को देखते हुए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी हिंदी को आम लोगों की भाषा माना. 1918 में आयोजित हिंदी साहित्य सम्मेलन में उन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का सुझाव दिया. स्वतंत्रता के पश्चात काफी विचार-विमर्श के पश्चात 14 सितंबर 1949 को संविधान संविधान सभा में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने का निर्णय लिया गया.
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हिंदी को भारतीय संविधान अध्याय 17 अनुच्छेद 343 (1) कानूनी जामा पहनाते हुए सर्व सम्मति से माना गया कि संघ की राज भाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी. यद्यपि हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने से कुछ लोग खुश नहीं थे और वे इसका विरोध कर रहे थे. जब विरोध के स्वर मुखर होने लगे तो इसके बाद सर्वसम्मति से हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी को भी आधिकारिक भाषा का दर्जा दे दिया गया.