World Breastfeeding Week 2019: नवजात शिशु के लिए मां का दूध है अमृत समान, स्तनपान से ताउम्र अच्छी रहती है बच्चे की सेहत
मां का दूध बढ़ते बच्चों के लिए केवल पोषण ही नहीं बल्कि जीवन की अमृतधारा के समान है. इससे मां और शिशु दोनों के सेहत पर सकारात्मक असर पड़ता है. करीबन हर गायनकोलॉजिस्ट नवजात शिशु की मां को सलाह देते हैं कि जन्म से अगले छह माह तक शिशु को स्तनपान कराना आवश्यक होता है.
World Breastfeeding Week 2019: शिशु के जन्म (New Born Baby) के बाद से ही मां (Mother) द्वारा उसे स्तनपान (Breastfeeding) कराना स्वाभाविक और आवश्यक प्रक्रिया होती है. स्तनपान की सही जानकारी नहीं होने के कारण शिशुओं में कुपोषण एवं संक्रामक रोग की संभावनाएं रहती हैं, जो बाद में शिशु के लिए घातक साबित होते हैं. मां का दूध बढ़ते बच्चों के लिए केवल पोषण ही नहीं बल्कि जीवन की अमृतधारा के समान है. इससे मां और शिशु दोनों के सेहत पर सकारात्मक असर पड़ता है. तकरीबन हर गायनकोलॉजिस्ट नवजात शिशु की मां को सलाह देते हैं कि जन्म से अगले छह माह तक शिशु को स्तनपान कराना आवश्यक होता है. स्तनपान की महत्ता एवं आवश्यकता को देखते हुए प्रत्येक वर्ष अगस्त माह का पहला सप्ताह विश्व भर में ‘स्तनपान सप्ताह’ के रूप में मनाया जाता है.
मां के दूध में विभिन्न रोगों से लड़ने की क्षमता होती हैं. पहले तीन दिन तक मां के आंचल से आने वाला दूध पिलाने में विलंब करने अथवा लापरवाही बरतने से शिशु कमजोर हो जाता है. इस वजह से उसमें बीमारियों से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है. कभी-कभी मां की यह लापरवाही शिशु की मौत का कारण भी बन जाती है. यही नहीं स्तनपान में लापरवाही का अंजाम बच्चे को पूरी उम्र भुगतना पड़ता है.
मां के दूध का महत्व
स्तनपान के संदर्भ में कहा जाता है कि शिशु को पहले छह माह तक सिर्फ मां का दूध पिलाना चाहिए. प्रसव के तुरंत बाद पहले 2 दिन तक जो गाढ़ा दूध जिसे कोलस्ट्रम भी कहते हैं, किसी अमृत से कम नहीं होता. उस दूध को बिना बर्बाद किये बच्चे को पिलाना चाहिए. जो बच्चे को पूरी उम्र दुनिया भर के रोगों से लड़ने की शक्ति देता है. शिशु को दूध की भरपूर खुराक मिले, इसके लिए शिशु की मां को प्रतिदिन न्यूनतम दो लीटर पानी अवश्य पीना चाहिए. ऐसा करने से शिशु को दस्त अथवा निमोनिया जैसे रोग होने की संभावना कई गुना कम हो जाती है. इसके साथ-साथ ऐसा करने वाली मां को स्तन कैंसर होने की संभावना काफी कम हो जाती है. कुछ गायनकोलॉजिस्ट का यह भी कहना है कि शिशु को स्तनपान कराने में लापरवाही बरतने के कारण ‘आस्टियोपोरोसिस’ नामक बीमारी की भी संभावना रहती है. ‘आस्टियोपोरोसिस’ हड्डियों की बीमारी होती है.
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स्तनपानः बनता है मां-शिशु का अंर्तसंबंध
नियमित स्तनपान कराने से न केवल शिशु में संक्रमणों से जूझने में मदद करता है बल्कि इससे मां और बच्चे के आपसी संबंध प्रगाढ़ बनते हैं. स्तनपान कराने के दौरान जो ऑक्सीटनिन स्रावित होता है, इसे कडल हार्मोन कहते हैं. यह हार्मोन मां और बच्चे के बीच लगाव को बढ़ाता है. वह स्तनपान ही है जो गर्भ में नौ माह तक पले-बढ़े शिशु को एक नई दुनिया से जोड़ता है. वह स्तनपान करते हुए प्रकृति की तमाम गतिविधियों को देखता, समझता और ग्रहण करता है. स्वभाववश और शरीर विज्ञान के अनुरूप भी स्तनपान मां के साथ-साथ शिशु को भी शांतचित्त रखता है.
स्तनपानः शहरी मां से ज्यादा अनुभवी होती हैं ग्रामीण मांएं
अक्सर देखा गया है कि शहरों में गर्भवती महिलाओं के लिए अलग-अलग अस्पतालों में स्तनपान संबंधी जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए सेमिनार आयोजित किये जाते हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शहरी परिवेश में स्तनपान कराना काफी निजी गतिविधियों के रूप में देखा जाता है. मां लड़की के सामने भी आंचल से ढककर बच्चे को दूध पिलाती है, वहीं ग्रामीण स्त्रियों को स्तनपान के बारे में कुछ भी बताने की जरूरत नहीं रहती. क्योंकि भाभी या बड़ी बहन स्तनपान कराते समय छोटी बहन अथवा अविवाहित ननदों से किसी तरह का परदा नहीं करतीं. बच्चे को कैसे गोद में लेते हैं, कैसे स्तनपान कराते हैं, स्तनपान के पश्चात कैसे डकार दिलाया जाता है, इससे वह अनभिज्ञ नहीं रहती. यही वजह है कि गांवों में गर्भवती मांओं के लिए किसी तरह के सेमिनार नहीं आयोजित किये जाते. यह भी पढ़ें: जरा की दालचीनी में छुपा है कई बीमारियों का रामबाण इलाज, जानिए इसके जबरदस्त फायदे
स्तनपान के फायदे
दिल्ली में प्राइवेट क्लिनिक चलाने वाली महिला रोग विशेषज्ञ (Gynecologist) डॉ. पूजा भाटिया के अनुसार मां के गर्भ में बच्चे की आंखें आंतों में भरे पानी की वजह से फूली होती हैं. गर्भ से बाहर आने के बाद आंतों से पानी निकल जाता है. इस समय आंतें कागज की तरह कमजोर होती हैं. मां के स्तनों से निकला गाढ़ा दूध जहां आंतों पर लेमीनेशन का कार्य करता है और पाचन क्रिया को मजबूत बनाता है, वहीं शिशु को ताउम्र के लिए रोगों से लड़ने की शक्ति देता है.
यही वजह है कि जन्म से एक घंटे के भीतर शिशु को स्तनपान कराना जरूरी होता है. शिशु को मांएं ठीक से स्तनपान करायें इसके लिए कहीं स्पीच तो कहीं वीडियो के माध्यम से स्तनपान के सही तरीके बताये जाते हैं. यहां इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि शिशु को पहले छह माह तक ही स्तनपान कराना चाहिए. इस दौरान बेहतर होगा कि शिशु को पानी नहीं पिलाया जाये क्योंकि इससे संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है. छह माह के बाद अर्धठोस आहार देना शुरू कर देना चाहिए और साथ ही दो वर्ष की आयु तक बच्चे को स्तनपान भी कराते रहना चाहिए. दो वर्ष के पश्चात बच्चे को स्तनपान कराना मां के साथ-साथ बच्चे के लिए भी अच्छा नहीं होता.