
Type 1.5 Diabetes: डायबिटीज को आमतौर पर टाइप 1 और टाइप 2 में बांटा जाता है, लेकिन डायबिटीज का एक और प्रकार भी है, जिसे टाइप 1.5 डायबिटीज कहा जाता है. यह एक ऑटोइम्यून डिजीज है, जिसमें शरीर का इम्यून सिस्टम इंसुलिन बनाने वाली बीटा सेल्स पर हमला करता है. यह बीमारी धीरे-धीरे बढ़ती है और इसके लक्षण टाइप 2 डायबिटीज से मिलते-जुलते होते हैं.
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टाइप 1.5 डायबिटीज को समझना और सही समय पर इसका इलाज करना बेहद जरूरी है. यह टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज का मिश्रण है, जो धीरे-धीरे शरीर पर असर डालता है. आइए जानते हैं कि यह बीमारी क्या है, इसके लक्षण क्या हैं और इसे कैसे कंट्रोल किया जा सकता है.
क्या है टाइप 1.5 डायबिटीज?
टाइप 1.5 डायबिटीज को लेटेंट ऑटोइम्यून डायबिटीज इन एडल्ट्स (LADA) भी कहा जाता है. यह टाइप 1 और टाइप 2 दोनों डायबिटीज का मिश्रण है. इसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से इंसुलिन बनाने वाली पैनक्रियाटिक सेल्स को नष्ट कर देती है. इस वजह से धीरे-धीरे इंसुलिन का उत्पादन कम होता जाता है और व्यक्ति को ब्लड शुगर कंट्रोल करने में परेशानी होती है.
विशेषज्ञों के अनुसार, यह बीमारी टाइप 1 की तरह ऑटोइम्यून होती है लेकिन इसके लक्षण टाइप 2 डायबिटीज की तरह धीरे-धीरे विकसित होते हैं. इसलिए, टाइप 1.5 डायबिटीज को पहचानना मुश्किल हो सकता है.
टाइप 1.5 डायबिटीज के कारण
अभी तक टाइप 1.5 डायबिटीज के सटीक कारण स्पष्ट नहीं हैं, लेकिन इसके पीछे जेनेटिक और पर्यावरणीय कारणों का योगदान हो सकता है.
- ऑटोइम्यून प्रतिक्रिया: इम्यून सिस्टम गलती से पैनक्रियास की बीटा सेल्स को नष्ट करने लगता है.
- जेनेटिक फैक्टर: अगर परिवार में किसी को टाइप 1 या टाइप 2 डायबिटीज रही हो, तो टाइप 1.5 डायबिटीज का खतरा बढ़ सकता है.
- वायरल संक्रमण: कुछ वायरस संक्रमण इम्यून सिस्टम को ट्रिगर कर सकते हैं, जिससे यह इंसुलिन बनाने वाली सेल्स पर हमला कर सकता है.
- तनाव और जीवनशैली: कुछ शोधों में पाया गया है कि अधिक तनाव और अस्वस्थ जीवनशैली भी इस बीमारी के खतरे को बढ़ा सकती है.
टाइप 1.5 डायबिटीज के लक्षण
टाइप 1.5 डायबिटीज के शुरुआती लक्षण टाइप 2 डायबिटीज से मिलते-जुलते हो सकते हैं, लेकिन यह धीरे-धीरे गंभीर हो जाती है.
- अत्यधिक प्यास लगना
- बार-बार पेशाब आना
- थकान और कमजोरी महसूस होना
- धुंधली दृष्टि (Blurry Vision)
- वजन में अचानक कमी
- भूख बढ़ जाना
- संक्रमण का अधिक खतरा (खासकर यीस्ट इंफेक्शन)
अगर सही समय पर इसका इलाज न किया जाए, तो यह डायबिटिक केटोएसिडोसिस (DKA) जैसी खतरनाक स्थिति पैदा कर सकता है, जिसमें ब्लड में एसिड का स्तर खतरनाक रूप से बढ़ जाता है.
कैसे होती है टाइप 1.5 डायबिटीज की पहचान?
टाइप 1.5 डायबिटीज का पता लगाने के लिए कई मेडिकल टेस्ट किए जाते हैं:
- ब्लड शुगर टेस्ट: हाई ब्लड शुगर लेवल से डायबिटीज की पहचान होती है.
- GAD एंटीबॉडी टेस्ट: यह टेस्ट शरीर में मौजूद ग्लूटामिक एसिड डिकार्बोक्सिलेज (GAD) एंटीबॉडीज का पता लगाता है, जो टाइप 1.5 डायबिटीज में आमतौर पर पाए जाते हैं.
- C-पेप्टाइड टेस्ट: यह टेस्ट शरीर में इंसुलिन उत्पादन की मात्रा को मापता है.
टाइप 1.5 डायबिटीज का इलाज
टाइप 1.5 डायबिटीज का इलाज टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज के बीच का मिश्रण होता है. इसके मरीजों को शुरुआत में टाइप 2 की तरह दवाएं दी जा सकती हैं, लेकिन धीरे-धीरे इंसुलिन थेरेपी की जरूरत पड़ने लगती है. शुरुआत में इंसुलिन की जरूरत नहीं होती, लेकिन समय के साथ इसकी आवश्यकता बढ़ जाती है. ओरल मेडिकेशन से शुरुआत की जा सकती है, लेकिन जैसे-जैसे बीटा सेल्स नष्ट होती हैं, इंसुलिन लेना जरूरी हो जाता है.
डाइट और लाइफस्टाइल में बदलाव से मिलेगा फायदा
- कार्बोहाइड्रेट-कंट्रोल डाइट: कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाले फूड्स का सेवन करें.
- नियमित व्यायाम: योग, वॉकिंग और एक्सरसाइज ब्लड शुगर को कंट्रोल करने में मदद कर सकते हैं.
- तनाव कम करें: मानसिक तनाव डायबिटीज को और खराब कर सकता है, इसलिए मेडिटेशन और रिलैक्सेशन तकनीकों को अपनाएं.
- ब्लड शुगर मॉनिटरिंग: नियमित रूप से ब्लड शुगर की जांच करें ताकि ग्लूकोज लेवल को कंट्रोल में रखा जा सके.
सही खानपान, नियमित व्यायाम और समय पर दवा लेने से इस बीमारी को कंट्रोल किया जा सकता है. यदि आपको डायबिटीज के लक्षण महसूस हो रहे हैं, तो तुरंत डॉक्टर से सलाह लें और समय पर टेस्ट कराएं.