Gudi Padwa 2023: कब है गुड़ी पड़वा? जानें इसका महत्व, पूजा-विधि एवं सेलिब्रेशन! क्यों मनाते हैं साल में  दो बार  नववर्ष?
पूजा- पाठ ( Photo Credit: Pixabay)

गुड़ी पड़वा अथवा संवत्सर पड़वो को महाराष्ट्र और कोंकण में नववर्ष के रूप में मनाया जाता है. इस दिन से 60 वर्ष का नया संवत्सर प्रारंभ होता है. जिन्हें अद्वितीय नाम से पहचाना जाता है. इसी पर्व को इसी दिन कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में उगादी के रूप में मनाया जाता है. उत्तर भारत के प्रदेशों में गुड़ी पड़वा का पर्व नहीं मनाया जाता, लेकिन इस दिन से यहां नौ दिवसीय चैत्र नवरात्रि की पूजा की शुरुआत होती है, जिसमें दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है, कुछ लोग पूरे नौ दिन तो कुछ लोग पहले और नौवें दिन व्रत रखते हैं. इस वर्ष गुड़ी पड़वा 22 मार्च 2023, बुधवार को मनाया जायेगा.

हिंदू नववर्ष साल में दो बार क्यों मनाया जाता है?

गुड़ी पड़वा का पर्व लूनी-सौर कैलेंडर के अनुसार मराठी नववर्ष माना जाता है. लूनी सौर कैलेंडर वर्ष को महीनों एवं दिनों में विभाजित करने के लिए चंद्रमा और सूर्य की स्थिति की गणना करते हैं. लूनी सौर कैलेंडर का प्रतिपक्ष सौर कैलेंडर है, जो वर्ष को माहों एवं दिनों में विभाजित करने के लिए सूर्य की स्थिति पर निर्भर होता है. इसलिए हिंदू नववर्ष साल में दो बार अलग-अलग नामों एवं साल के दो अलग-अलग समय में मनाया जाता है. सौर कैलेंडर पर आधारित हिंदू नववर्ष को तमिलनाडु में पुथंडु, असम में बिहू, पंजाब में वैशाखी, उड़ीसा में पाना संक्रांति और पश्चिम बंगाल में नाबा बरशा के नाम से लोकप्रिय है. यह भी पढ़ें : Sheetala Ashtami 2023: कब है शीतला अष्टमी और क्यों लगाते हैं उन्हें बासी भोग? जानें इनका महात्म्य, पूजा-विधि एवं मुहूर्त!

गुड़ी पड़वा की तिथि!

चैत्र शुक्लपक्ष प्रतिपदा प्रारंभः 10.52 PM (21 मार्च, 2023 मंगलवार)

चैत्र शुक्लपक्ष प्रतिपदा समाप्तः 08.20 PM (22 मार्च, 2023, बुधवार)

उदया तिथि के अनुसार 22 मार्च 2023 को गुड़ी पड़वा मनाई जायेगी.

गुड़ी पड़वा की पूजा-विधि और परंपरा!

गुड़ी पड़वा के दिन पूरे शरीर में सुगंधित तेल लगाकर स्नान करते हैं, और ईश्वर के प्रति आभार प्रकट करते हैं. सर्वप्रथम घर के मुख्य द्वार को आम या अशोक के पत्ते और फूलों से सजाते हैं. मुख्य द्वार एवं आंगन में आकर्षक रंगोली बनाई जाती है. इसके बाद घर के सारे लोग भगवान बह्मा की पूजा करते हैं. घर के बाहर या बॉलकोनी जैसे खुले हिस्से में एक लकड़ी के डंडे में पीतल के लोटे को उल्टा रखकर, इसमें रेशम के लाल, पीले, केसरिया कपड़ा बाधते हैं. इसके बाद इसे रंगीन पुष्पों और अशोक के पत्तों से अलंकृत करते हैं. पताका लगाया जाता है.

गुड़ी पड़वा सेलिब्रेशन!

गुड़िया पड़वा के दिन नीम की नई कोंपलें और मिशरी खाई जाती है. मराठी घरों में मंगल के प्रतीक के रूप में गुड़ी लगाया जाता है. बदलते दौर के साथ पारंपरिक गुड़ी के स्वरूपों में भी बदलाव नजर आता है. नई-नई गुड़ियाएं बाजार में उपलब्ध हैं. लेकिन सबसे ज्यादा मांग इको-फ्रेंडली गुडी की हो रही है, जो मुंबई, नागपुर, पुणे एवं नासिक जैसे शहरों में देखे जा सकते हैं.

पौराणिक कथा!

त्रेता युग में दक्षिण भारत में राजा बालि का शासन था. भगवान राम जब माता सीता की खोज में जंगल-जंगल भटकते हैं, तो किष्किंधा पर्वत पर उनकी मुलाकात बालि के भाई सुग्रीव से हुई. सुग्रीव ने श्रीराम को बालि के कुशासन और आतंक के बारे में बताते हैं. श्रीराम ने बालि का वध कर उसके आतंक से सुग्रीव को मुक्त कराया. मान्यता है कि जिस दिन श्रीराम ने बालि का वध किया था, वह दिन चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा का दिन था. इसलिए हर साल इस दिन को गुड़ी पड़वा के रूप में मनाया जाता है. आज भी गुड़ी पड़वा पर पताका लगाने की परंपरा जारी है. इसके अलावा और भी कई मान्यताएं गुड़ी पड़वा से जुड़ी है.