Yogini Ekadashi 2020: योगिनी एकादशी के व्रत से मिट जाते हैं सारे पाप, जानें श्रीहरि की उपासना का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व

आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की योगिनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के सारे पाप मिट जाते हैं, इसलिए यह यह एकादशी तीनों लोकों में प्रसिद्ध है. इस एकादशी का व्रत का पुण्यफल 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने जितना प्राप्त होता है. योगिनी एकादशी का व्रत इस साल 17 जून 2020 को है. इस दिन व्रत रखने से न सिर्फ व्यक्ति के सारे पाप दूर होते हैं, बल्कि उन्हें मृत्यु के बाद मोक्ष की भी प्राप्ति होती है

भगवान विष्णु (Photo Credits: Youtube)

Yogini Ekadashi 2020: एकादशी (Ekadashi) के व्रत को सभी व्रतों में श्रेष्ठ और पुण्य फलदायी माना जाता है. निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) के बाद और देवशयनी एकादशी (Dev Shayani Ekadashi) से पहले पड़ने वाली एकादशी को योगिनी एकादशी (Yogini Ekadashi) कहा जाता है. मान्यता है कि आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की योगिनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के सारे पाप मिट जाते हैं, इसलिए यह एकादशी तीनों लोकों में प्रसिद्ध है. इस एकादशी के व्रत का पुण्यफल 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने जितना प्राप्त होता है. योगिनी एकादशी का व्रत इस साल 17 जून 2020 (बुधवार) को है. माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से न सिर्फ व्यक्ति के सारे पाप दूर होते हैं, बल्कि उन्हें मृत्यु के बाद मोक्ष की भी प्राप्ति होती है और श्रीहरि की कृपा उन पर सदैव बनी रहती है. चलिए जानते हैं योगिनी एकादशी का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व.

शुभ मुहूर्त-

एकादशी तिथि प्रारंभ- 16 जून 2020 को सुबह 05.40 बजे से,

एकादशी तिथि समाप्त- 17 जून 2020 की सुबह 07.50 बजे तक.

पारण का समय- 18 जून 2020 को सुबह 05.28 बजे से 08.14 बजे तक.

पूजा विधि

व्रत का महत्व

योगिनी एकादशी के दिन श्री हरि की पूजा होती है और इस दिन पीपल के वृक्ष की भी पूजा का विधान है. इस व्रत के प्रभाव से सारे पाप नष्ट होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि व आनंद की प्राप्ति होती है. इसके साथ ही मृत्यु के बाद व्रती को स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, हेम नाम के एक माली को श्राप के कारण कुष्ठ रोग हो गया था. इस कष्ट से मुक्ति का मार्ग बताते हुए एक ऋषि ने माली को योगिनी एकादशी का व्रत करने की सलाह दी. इस व्रत के प्रभाव से माली कुष्ठ रोग से ठीक हो गया, तभी से यह व्रत प्रचलित हुआ.

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