Janmashtami 2020: जानें  कब है जन्माष्टमी और इस साल कब मनाया जाएगा श्रीकृष्ण जी का जन्म उत्सव
भगवान श्रीकृष्ण (Photo Credits: Pixabay)

भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन भगवान विष्णु के आठवें अवतार कृष्ण का जन्म हुआ था. इसलिए कृष्ण जन्माष्टमी अष्टमी (आठवें दिन) यानी कि श्रावण के कृष्ण पक्ष या भाद्रपद में मनाई जाती है. इसलिए देशभर में गोकुलाष्टमी आज यानी 11 अगस्त को मनाया जाएगा. इस दिन को हिन्दू धर्म में शुभ मना जाता है. आज के दिन देश के सभी श्रीकृष्ण मंदिरों में श्रीकृष्ण के भव्य जन्मोत्सव का आयोजन किया जाता है विशेषकर मथुरा एवं वृंदावन श्रीकृष्ण की दिव्य झांकियों और अन्य कार्यक्रमों आयोजित किये जाते हैं, इसका दर्शन लाभ लेने के लिए देश-विदेश से हजारों कृष्ण-भक्त मथुरा और वृंदावन पहुंचते हैं, लेकिन कोरोनावायरस की महामारी को देखते हुए क्या इन मंदिरों में वही चहल-पहल होगी?

आइये देखते हैं कि श्रीकृष्ण की जन्मभूमि 'मथुरा' से लेकर गुजरात स्थित 'प्रभाष' जहां श्रीकृष्ण भगवान ने देह त्यागा था' में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की क्या तैयारियां चल रही हैं.

श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिरः नहीं पहुंच सकेंगे श्रद्धालु

पुराणों के अनुसार मथुरा के इसी स्थल पर भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था. यही वह मंदिर है, जिसे मुगल बादशाहों ने नष्ट करने की कई बार कोशिश की थी. यहां हजारों वर्षों से श्रीकृष्ण जी का भव्य जन्मोत्सव मनाया जाता रहा है. जन्माष्टमी पर यहां होने वाले कार्यक्रम में शामिल होने और श्रीकृष्ण की दिव्य लीला देखने के लिए देश-विदेश से हजारों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित होते हैं. लेकिन इस वर्ष कोरोना संकट की महामारी के कारण किसी भी श्रद्धालु को मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं है. यद्यपि यहां 12 अगस्त को हमेशा की तरह कृ्ष्ण जन्मोत्सव मनाया जायेगा, जिसमें केवल पुजारी और कुछ प्रमुख लोगों की ही उपस्थिति रहेगी. इस वर्ष भक्त यहां होनेवाले कार्यक्रमों को टीवी एवं मोबाइल पर ही देख सकते हैं. यह भी पढ़े: Janmashtami 2020 Date: कब मनाई जायेगी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी? जानें इस संदर्भ में ज्योतिषि एवं भौगोलिक गणना क्या कहती है?

वृंदावन स्थित बांके बिहारी मंदिर

श्रीकृष्ण भगवान के प्राचीन मंदिरों में एक वृंदावन के रमण रेती पर बनें इस बांके बिहारी मंदिर का निर्माण 1860 में हुआ था. यह राजस्थानी वास्तुकला का एक नमूना है. इस मंदिर का निर्माण स्वामी श्री हरिदास के वंशजों ने किया था. इस मंदिर के संदर्भ में मान्यता है कि यहा पर जन्माष्टमी के दिन जो भी श्रद्धालु बांके बिहारी के दर्शन और पूजा करने मात्र से उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं. ऐसा भी कहा जाता है कि रात में बिहारी जी निधिवन रास करने चले जाते हैं, और सुबह मंदिर में वापस आ जाते हैं. इसलिए यहां वर्ष में केवल एक बार जन्‍माष्‍टमी के दिन ही मंगला आरती होती है, लेकिन इस बार यहां होने वाले सारे कार्यक्रमों का श्रद्धालु घर बैठे ही वर्चुअल दर्शन कर सकेंगे.

बरसाने का राधा-कृष्ण मंदिर भी रहेगा सूना

भगवान श्रीकृष्ण का दूसरा महत्वपूर्ण मंदिर मथुरा स्थित बरसाना में है. यहां के खूबसूरत पहाड़ियों के बीच स्थित राधा-रानी की मूर्ति के बारे में की किंवदंतियां प्रचलित हैं. राधा-कृष्ण के इस भव्य और बेहद खूबसूरत मंदिर का निर्माण महाराजा वीर सिंह ने साल 1675 में करवाया था. गौरतलब है कि राधा रानी बरसाने की ही रहने वाली थीं. यहां जन्माष्टमी से एक सप्ताह पूर्व ही मंदिर को दुल्हन की तरह सजाया जाता है. प्रत्येक वर्ष यहां भी जन्माष्टमी की दिव्य शोभा देखने देश-विदेश से तमाम कृष्णभक्त यहां आते हैं, लेकिन कहा जा रहा है कि मंदिर में सिर्फ पुजारी, मंदिर समिति व कुछ भक्तों के बीच श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाएगा. लोगों से पहले ही आगाह कर दिया गया है कि कोरोना के कारण लोग अपने घरों में रहकर ही कृष्ण जन्मोत्सव की झलकियां देखें.

द्वारिका का मंदिर

कंस का संहार करने के बाद श्रीकृष्ण मथुरा छोड़ हमेशा के लिए द्वारिका में बस गये थे. मान्यता है कि गुजरात के समुद्र तट पर भगवान विश्वकर्मा ने भव्य द्वारिका नगरी का निर्माण किया. इसीलिए श्रीकृष्ण को द्वारिकाधीश भी कहते हैं. इस मंदिर की सबसे बड़ी महिमा यही है कि ये हिंदू समाज के चार धामों में से एक है. यहां पर श्रीकृष्ण भगवान रणछोड़ जी के नाम से मशहूर हैं. श्रीकृष्ण भगवान का सबसे बड़ा मंदिर यहीं पर है. यहां पर भी कोरोना वायरस की महामारी से जनता को बचाने के लिए राज्य सरकार ने मंदिर कृष्ण भक्तों को जन्माष्टमी पर भीड़ न लगाने की अपील की है. जन्माष्टमी पर यहां होने वाले कार्यक्रम श्रद्धालु घर बैठकर देख सकेंगे, ऐसी व्यवस्था की गई है.

गोकुल का रंगबिहारी मंदिर

उत्तर प्रदेश के मथुरा शहर से लगभग 15 किमी श्री रंगबिहारीजी का एक बहुत ही भव्य मंदिर है. इस मंदिर में श्रीरंग बिहारी अर्थात भगवान श्रीकृष्ण का एक अलग रूप ही देखने को मिलता है. यहां प्रचलित है कि यहां के श्रीकृष्ण भक्त स्वामी ज्ञानदास जो ने श्रीकृष्ण भगवान का साक्षात दर्शन किया था, उन्होंने जिस रूप में भगवान श्रीकृष्ण को देखा था, ठीक उसी स्वरूप को प्रतिमा में गढ़कर प्रतिमा को यहां स्थापित किया गया था. इस मंदिर में भी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की शोभा देखने विश्व के कोने-कोने से लोग यहां आते हैं, मंदिर की सजावट पूर्व की तरह यहां भी की जा रही है, लेकिन कोरोना की महामारी को देखते हुए जन्माष्टमी पर होने वाले किसी भी कार्यक्रम में आम भक्तों को यहां नहीं आने की अपील मंदिर के आयोजकों ने की है.

प्रभास का श्रीकृष्ण मंदिर, जहां भगवान श्रीकृष्ण ने देह त्यागा था  मान्यता है कि भगवान विष्णु ने जिस कार्य को सम्पन्न करने के लिए पृथ्वी पर श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया था, उसे पूरा करने के बाद गुजरात के प्रभास में ही मानव देह त्यागकर बैकुण्ठ चले गये थे. इस वजह से जन्माष्टमी के दिन इस स्थान का विशेष महत्व हो जाता है. यह स्थल प्रभास नगर के पूर्व में हिरण्या, सरस्वती तथा कपिला नदी के संगम पर बताया जाता है. यहां के मुख्य श्रीकृष्ण मंदिर में भी प्रत्येक वर्ष श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का दिव्य आयोजन होता है, लेकिन इस बार कोरोना के कारण यहां श्रद्धालुओं की अनुपस्थिति में ही मंदिर के पुजारी श्रीकृ्ष्ण जन्मोत्सव का आयोजन करेंगे.