Vaishakh Amavasya 2020: इसी दिन शुरू हुआ था त्रेता युग! पितृ-तर्पण के लिए विशेष तिथि! लॉक डाउन में घर पर रहकर करें आवश्यक कर्मकाण्ड!

प्राचीनकाल में धर्मवर्ण नामक एक ब्राह्मण थे. वे बहुत ही धार्मिक और ऋषि-मुनियों का सम्मान करने वाले व्यक्ति थे. एक बार किसी महात्मा ने उन्हें बताया कि कलियुग के दौर में भगवान विष्णु का स्मरण करने से ज्यादा बड़ा पुण्य और कुछ भी नहीं होगा.

प्रतीकात्मक तस्वीर

वैशाख मास हिन्दू पंचांग के अनुसार साल का दूसरा मास होता है. धार्मिक मान्यतानुसार इसी माह से त्रेता युग का आरंभ हुआ था. इसलिए वैशाख अमावस्या का धार्मिक महत्व बढ़ जाता है. दक्षिण भारत में वैशाख अमावस्या पर शनि जयंती मनाई जाती है. यह दिन धर्म-कर्म, स्नान-दान और पितृ-तर्पण के लिए प्रभावशाली माना जाता है. काल-सर्प दोष से मुक्ति के लिये इस अमावस्या पर आवश्यक कर्मकाण्ड किये जाते हैं. इस बार वैशाख मास की अमावस्या 22 अप्रैल दिन बुधवार को है. कुछ स्थानों पर इसे ‘सतुआई अमावस्या’ भी कहा जाता है.

ज्योतिषियों का कहना है कि पंचांग भेद के कारण देश के कुछ हिस्सों में 23 अप्रैल यानी गुरुवार को अमावस्या सेलीब्रेट किया जायेगा. आइये जानें वैशाख अमावस्या की खास बातें...

जब चंद्रमा सोलह कलाओं से युक्त दिखता है:

वैशाख मास के अमावस्या के शुक्लपक्ष में चंद्रमा की कलाएं बढ़ती हैं यानी चंद्र वृहद रूप में उदय होता है. इसके विपरीत कृष्णपक्ष में चंद्र का आकार घटते-घटते अमावस्या तक पूरी तरह से लोप हो जाता है. गौरतलब है कि चंद्रमा की सोलह कलाओं में सोलहवीं कला अमावस्या कहलाता है.

वैशाख अमावस्या का महात्म्य:

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब किसी एक राशि में सूर्य और चंद्र साथ होते हैं, तब अमावस्या तिथि का योग बनता है. 22 अप्रैल को सूर्य और चंद्र मेष राशि में रहेंगे. अमावस्या तिथि के स्वामी पितृदेव माने गए हैं. इसलिए अमावस्या पर पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण, श्राद्ध कर्म और दान-पुण्य करने का विशेष महत्व है. इस दिन प्रातःकाल किसी पवित्र नदी में स्नान-ध्यान कर मंत्र जाप, तप और व्रत करने की परंपरा निभाई जाती है. इस साल कोरोनावायरस के कारण लॉक डाउन की स्थिति को देखते हुए समझदारी इसी में है कि अपने घर पर ही स्नान के जल में गंगाजल मिलाकर गंगा माँ का ध्यान कर स्नान कर लेना चाहिए. इसके पश्चात जरूरतमंद को धन एवं अन्न का दान कर पुण्य अर्जित करना चाहिए.

व्रत एवं धार्मिक कृत्य:

वैशाख अमावस्या के दिन निम्न कृत्य किये जाने का विधान है

* प्रत्येक अमावस्या की तरह इस अमावस्या पर भी पितरों की मोक्ष प्राप्ति के लिए व्रत अवश्य रखना चाहिए. वैशाख अमावस्या पर किसी पवित्र नदी, जलाशय अथवा कुंड में स्नान-ध्यान कर सूर्यदेव को अर्घ्य देने के बाद प्रवाह होते जल को तिल दान करें. पितरों की आत्म-शांति के लिए उपवास रखते हुए तर्पण एवं पिण्ड-दान करें. इसके पश्चात अपनी सामर्थ्यानुसार गरीबों को दान-दक्षिणा दें.

* वैशाख अमावस्या के दिन दक्षिण भारत में शनि जयंती भी मनाई जाती है, इसलिए इस दिन शनि देव की पूजा-अर्चना कर उन्हें तिल, तेल और पुष्प आदि अर्पित करें.

* वैशाख अमावस्या के दिन प्रातःकाल स्नान-ध्यान के पश्चात पीपल के पेड़ की जड़ में जल अर्पित करें और संध्याकाल में उसी पीपल की जड़ के सामने दीप प्रज्जवलित करें. ऐसा करने से तमाम संकटों से मुक्ति मिलती है.

* इस दिन दान-धर्म का भी बड़ा महत्व है. प्रातःकाल स्नान करने के पश्चात गरीबों अथवा ब्राह्मणों को भोजन कराने के पश्चात वस्त्र एवं अन्न का दान करने से घर में सुख-शांति एवं समृद्धि आती है.

वैशाख अमावस्या मुहूर्त

22 अप्रैल, 2020 को 05.39 से अमावस्या आरम्भ

23 अप्रैल, 2020 को 07.57 पर अमावस्या समाप्त

वैशाख अमावस्या की पौराणिक कथा:

प्राचीनकाल में धर्मवर्ण नामक एक ब्राह्मण थे. वे बहुत ही धार्मिक और ऋषि-मुनियों का सम्मान करने वाले व्यक्ति थे. एक बार किसी महात्मा ने उन्हें बताया कि कलियुग के दौर में भगवान विष्णु का स्मरण करने से ज्यादा बड़ा पुण्य और कुछ भी नहीं होगा. धर्मवर्ण ने इस बात को आत्मसात कर गृहस्थ जीवन त्याग कर वे भ्रमण करने लगे. एक दिन घूमते-घूमते वे पितृलोक पहुंचे. धर्मवर्ण ने वहां पहुंचकर देखा कि उसके पितर बहुत कष्ट में थे. पितरों ने उन्हें बताया कि उनकी ऐसी हालत तुम्हारे संन्यास लेने के कारण हुई है. क्योंकि अब परिवार में उनके लिये पिंडदान करने वाला कोई नहीं बचा. यदि तुम वापस जाकर गृहस्थ जीवन शुरु करोगे, संतान उत्पन्न करोगे तभी हमें राहत मिलेगी.

उन्होंने यह भी बताया कि इसके लिए वैशाख अमावस्या का दिन बेहतर है. इस दिन विधि-विधान से पिंडदान करो. धर्मवर्ण ने उन्हें वचन दिया कि वह उनकी अपेक्षाओं को अवश्य पूरी करेगा. इसके बाद धर्मवर्ण संन्यासी जीवन त्यागकर पुनः गृहस्थ जीवन अपना लिया और वैशाख अमावस्या के दिन धर्मवर्ण ने पूरे विधि-विधान के साथ पिंडदान कर अपने पितरों को मुक्ति दिलाई.

नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.

 

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