Swami Dayananda Saraswati Jayanti 2023 Quotes: स्वामी दयानंद सरस्वती जयंती पर अपनों संग शेयर करें उनके ये 10 महान विचार
महर्षि दयानंद सरस्वती ने प्राचीन हिंदू रूढ़िवादिता, जातिगत कठोरता, अस्पृश्यता, मूर्तिपूजा, कर्मकांड जैसी चीजों की कड़ी आलोचना की थी. इसके साथ ही उन्होंने अंतर्जातिय विवाह और विधवा विवाह का समर्थन किया था. वे हिंदी और संस्कृत भाषा के प्रसार का प्रोत्साहन भी करते थे. ऐसे में उनकी 200वीं जयंती पर आप उनके इन 10 महान विचारों को अपनों संग शेयर करके उनकी जयंती मना सकते हैं.
Swami Dayananda Saraswati Jayanti 2023 Quotes: आज यानी 15 फरवरी को महर्षि दयानंद सरस्वती की जयंती (Maharishi Dayananda Saraswati Jayanti) मनाई जा रही है. हिंदू पंचांग के अनुसार, उनका जन्म फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को हुआ था, लेकिन अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक, स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी 1824 को गुजरात के काठियावाड़ जिले के टंकारा गांव में एक ब्राह्मण परिवार के घर हुआ था. स्वामी दयानंद सरस्वती (Swami Dayananda Saraswati) एक महान समाज सुधारक, देशभक्त और एक महान लेखक भी थे, जिन्होंने अपने विचार और चिंतन को प्रसिद्ध पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में व्यक्त किया था. सन 1875 में उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों और रूढ़िवादी परंपराओं के खिलाफ आवाज उठाते हुए आर्य समाज की स्थापना की थी.
महर्षि दयानंद सरस्वती ने प्राचीन हिंदू रूढ़िवादिता, जातिगत कठोरता, अस्पृश्यता, मूर्तिपूजा, कर्मकांड जैसी चीजों की कड़ी आलोचना की थी. इसके साथ ही उन्होंने अंतर्जातिय विवाह और विधवा विवाह का समर्थन किया था. वे हिंदी और संस्कृत भाषा के प्रसार का प्रोत्साहन भी करते थे. ऐसे में उनकी 200वीं जयंती पर आप उनके इन 10 महान विचारों को अपनों संग शेयर करके उनकी जयंती मना सकते हैं.
1- जीभ से वही निकलना चाहिए जो अपने हृदय में है.
2- पूरी तरह से अंधविश्वासी होने के बजाय वर्तमान जीवन में कर्म को महत्व दें.
3- मनुष्य को दिया गया सबसे बड़ा संगीत वाद्य, उसकी आवाज है.
4- ईश्वर का न तो रूप है और न ही रंग, वह दिव्य और अपार है. दुनिया में जो कुछ भी दिखाई दे रहा है वह उसकी महानता का वर्णन करता है.
5- अज्ञानी होना गलत नहीं है, अज्ञानी बने रहना गलत है.
6- नुकसान से निपटने में सबसे जरूरी चीज है, उससे मिलने वाली सीख को कभी ना भूलना. यह चीज आपको सही मायने में विजेता बनाएगी.
7- दुनिया को आप अपना सर्वश्रेष्ठ दीजिए, आपके पास भी सर्वश्रेष्ठ ही लौट कर आएगा.
8- सेवा का उच्चतम रूप एक ऐसे व्यक्ति की मदद करना है, जो बदले में धन्यवाद देने में असमर्थ है.
9- आत्मा एक है, लेकिन उसके अस्तित्व अनेक हैं.
10- उपकार बुराइयों को दूर करता है, सदाचार की आदत को प्रारंभ करता है, समाज कल्याण और सभ्यता को संपादित करता है.
बताया जाता है कि बचपन में दयानंद सरस्वती को मूलशकंर कहकर पुकारा जाता था. बचपन से ही वे अत्यंत प्रतिभावान थे और एक घटना के बाद शिव की तलाश में वो घर छोड़कर चले गए. करीब 15 साल तक भटकने के बाद उन्होंने स्वामी पूर्णानंद सरस्वती से दीक्षा ग्रहण की और मूलशंकर से स्वामी दयानंद सरस्वती बन गए. उनका मानना था कि संसार का संपूर्ण ज्ञान वेदों में समाहित है. उन्होंने वेदों को सच्चा और सभी धर्मों से हटकर बताया था. इसके साथ ही उन्होंने उन धार्मिक विचारों को ठुकरा दिया, जो वेदों के अनुकूल नहीं थे.