Shrawan Maas 2023: क्या है ‘शिव वास’? शिवार्चन, रुद्राभिषेक या महामृत्युंजय के पूर्ण प्रतिफल के लिए शिव-वास के अनुसार करें पूजा-अनुष्ठान!
Sawan 2023 (Photo Credit: Team Latestly)

सनातन धर्म में विशेष शिव-अनुष्ठान, मसलन शिवार्चन, रुद्राभिषेक एवं महामृत्युंजय जाप सहित कई अचूक फल देने वाले अनुष्ठान होते हैं. जिसे करने से भक्त की ऊर्जाएं और प्रार्थना भगवान शिव तक पहुंचती हैं, लेकिन ऐसे अनुष्ठान शुरू करने से पूर्व यह जान लें, कि उस समय भगवान शिव क्या कर रहे होंगे. क्योंकि तभी आपके अनुष्ठान का लाभ आपको प्राप्त हो सकेगा. शिवजी अपने भक्तों की भक्ति पर ध्यान दें. इस बात को ध्यान में रखकर ही ‘शिव वास’ के नियम बनाए गए. श्रावण मास के अवसर पर आइये जानते हैं इस संदर्भ में विस्तार से. यह भी पढ़ें: Kamika Ekadashi 2023: मोक्ष-प्राप्ति एवं पितृ-दोष से मुक्ति हेतु करें कामिका एकादशी व्रत! जानें इसका महात्म्य, व्रत-पूजा के नियम एवं व्रत-कथा!

भक्तों पर शिव-कृपा से क्यों चिंतित हुए देव?

मान्यता है कि भगवान शिव इतने भोले हैं कि वह भक्तों की भक्ति से प्रसन्न हो हर समय उनकी प्रार्थनाएं पूरी करने के लिए व्यग्र रहते हैं. भक्तों के प्रति उनके गहरे अनुराग से ना केवल शिव-परिवार बल्कि देवताओं की सभा में भी शिवजी की उपस्थिति नगण्य रहने लगी. इससे ब्रह्माण्ड के सारे कार्य प्रभावित होने लगे. अंततः देवताओं ने अपनी चिंता भगवान विष्णु को बताई. विष्णु जी ने शिवजी के लिए नियमों की एक संरचना तैयार की, जिसे उन्होंने शिव वास का नाम दिया. इस नियम से कोई भी भक्त अनुष्ठान से पूर्व पता कर सकता है कि ‘शिव-अनुष्ठान’, ‘शिवार्चन’, ‘रुद्राभिषेक’ एवं ‘महामृत्युंजय’ जैसे अनुष्ठान करते समय भगवान शिव कहां हैं और क्या कर रहे हैं. क्या शिवजी अमुक

अनुष्ठान में उपस्थित होंगे, और भक्तों को उनका आशीर्वाद प्राप्त होगा?

तिथिं च द्विगुणी कृत्वा पुनः पञ्च समन्वितम ।

सप्तभिस्तुहरेद्भागम शेषं शिव वास उच्यते ।।

निम्न श्लोक के अनुसार देखें ‘शिव वास’ का स्थान और उसमें मिलने वाला फल

कैलाशे लभते सौख्यं गौर्या च सुख सम्पदः ।

वृषभेऽभीष्ट सिद्धिः स्यात् सभायां संतापकारिणी।

भोजने च भवेत् पीड़ा क्रीडायां कष्टमेव च ।

श्मशाने मरणं ज्ञेयं फलमेवं विचारयेत्।।

भावार्थ

* कैलाश में: (सुखदायी)

* गौरी पार्श्व में: (सुख और सम्पदा)

* वृषारूढ़: (अभीष्ट सिद्धि)

* सभा: ( दुःख और वेदना)

* भोजन: (पीड़ादायी)

* क्रीड़ारत: (कष्ट)

* श्मशान: (मृत्यु)

स्वयं करें 'शिव वास' की गणना

भगवान विष्णु के निर्देश पर नारद द्वारा रचित 'शिव वास' देखने का फार्मूला कुछ इस तरह है. इससे ‘शिव वास’ की सही-सही स्थिति पता चलती है. जिस दिन रुद्राभिषेक या शिवजी का कोई बड़ा या विशेष अनुष्ठान करना है तो उस दिन की तिथि को 2 गुना कर, उसमें 5 जोड़ दें. उसके टोटल को 7 से डिवाइड करें. इससे शिव वास का पता चल जाएगा. अगर शेष में नंबर 1,2,3 बचे तो समझ लें कि 'शिव वास' अनुकूल है. उसमें रुद्राभिषेक या शिव का कोई भी विशेष अनुष्ठान करवाया जा सकता है. शेष में 0, 4, 5, 6 बचे तो शिव वास प्रतिकूल है. उसमें रुद्राभिषेक या महामृत्युंजय जैसे अनुष्ठान करने से बचना चाहिए.

'शिव वास' की शुभ तिथियां!

उपरोक्त श्लोक के भावार्थ के अनुसार शुक्ल पक्ष की द्वितीया, पंचमी, षष्ठी, नवमी, द्वादशी और त्रयोदशी तिथियां तथा कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा, चतुर्थी, पंचमी, अष्टमी, एकादशी एवं द्वादशी तिथियां शुभ फलदायी होती हैं. इन तिथियों पर किये कार्य सफलता एवं सिद्धि दिलाने वाले होते हैं. वहीं निष्काम पूजा, महाशिवरत्रि, श्रावण माह, तीर्थस्थान या ज्योतिर्लिङ्ग के दर्शन एवं पूजा के लिए ‘शिव वास’ देखने की कोई आवश्यक