आज 14 मई को स्वराज्य रक्षक, धर्मवीर छत्रपति संभाजी महाराज (Sambhaji Maharaj Jayanti ) का जन्मदिन है. छत्रपति संभाजी महाराज को बहुत कम उम्र से कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. शिवाजी महाराज (Shivaji Maharaj) की मृत्यु के बाद बहुत ही कम उम्र में संभाजी को स्वराज्य की कमान अपने हाथों में लेनी पड़ी. संभाजी ने छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ या उनके बाद कई अभियान सफलतापूर्वक चलाए. वे कभी किसी अभियान में असफल नहीं हुए. उस समय भारत में कोई योद्धा नहीं था जो छत्रपति संभाजी महाराज से लड़ पाता. संभाजी राजे एक असामान्य व्यक्तित्व थे. उनमें अटूट साहस, अद्वितीय कौशल, असाधारण बहादुरी, कई भाषाओं की महारत, संस्कृत पंडित, धर्मभिमानी, समाजशास्त्र, राजनीति, अर्थशास्त्र, आदि में निपुण थे. यह भी पढ़ें: Akshaya Tritiya 2021 Messages: अक्षय तृतीया के इन शानदार हिंदी WhatsApp Stickers, Facebook Greetings, Quotes, GIF Images के जरिए अपनों को दें शुभकामनाएं
संभाजी महाराज का जन्म 14 मई 1657 को पुरंदर के किले में हुआ था. शिवाजी महाराज को संभाजी से बेहद प्यार था. संभाजी जब दो साल के थे, तब उनकी माता साईबाई की मृत्यु हो गई. उनके जाने के बाद राजमाता जीजाऊ द्वारा उनका पालन पोषण किया गया. केशव भट्ट और उमाजी पंडित ने संभाजी राजे को अच्छी शिक्षा दी. शुरुआती दिनों में उन्हें उनकी सौतेली मां सोयराबाई से बहुत दुलार मिला. संभाजी बहुत सुंदर और बहादुर थे. कम उम्र से ही संभाजी महाराज ने राजनीतिक चालों, गुरिल्ला युद्ध में महारत हासिल कर ली. हर वर्ष छत्रपति संभाजी महाराज की जयंती 14 मई को धूमधाम से मनाई जाती है. इस दिन शिवाजी के राज्य के महान शासक संभाजी महाराज की बहादुरी को याद किया जाता है. कोरोना महामारी के कारण इस साल संभाजी महाराज की जयन्ती नहीं सार्वजनिक रूप से नहीं मनाई जाएगी. इसलिए हम आपके लिए ले आए है कुछ ग्रीटिंग्स जिन्हें भेजकर आप अपने प्रियजनों को संभाजी जयंती की शुभकामनाएं दे सकते हैं.
1. हैप्पी छत्रपति संभाजी महाराज जयंती

2. छत्रपति संभाजी महाराज जयंती 2021

2. हैप्पी संभाजी महाराज जयंती

3. हैप्पी संभाजी महाराज जयंती

4. संभाजी महाराज जयंती की बधाई

संभाजी के शासनकाल में मुग़ल मराठों के कट्टर दुश्मन थे. मुगलों के खिलाफ संभाजी द्वारा की गई पहली बड़ी कार्रवाई मध्य प्रदेश के एक अमीर मुगल शहर बुरहानपुर पर हमला था. मुगल सम्राट औरंगजेब की दक्कन में विस्तार करने की योजना से अवगत होने के बाद संभाजी ने हमले की योजना बनाई थी. बुरहानपुर एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था और संभाजी का हमला मुगलों के लिए एक बड़ा झटका था.
मराठा कमांडर-इन-चीफ और संभाजी के सबसे महत्वपूर्ण समर्थकों में से एक हम्बीराव मोहिते, १६८७ में वाई की लड़ाई में मारे गए. जबकि मराठा युद्ध में विजयी हुए थे, मोहिते की मौत उनके लिए बहुत बड़ा झटका था. जिसके बाद बड़ी संख्या में मराठा सैनिकों ने संभाजी को छोड़ना शुरू कर दिया. जिसके बाद जनवरी 1689 में मुगल सेनाओं ने कब्जा कर लिया और संभाजी को बंदी बना लिया था. औरंगजेब ने उन्हें सभी किलों और खजानों को आत्मसमर्पण करने और अंत में इस्लाम अपनाने के लिए कहा. लेकिन संभाजी ने ऐसा करने से इनकार कर दिया और परिणामस्वरूप उनकी दर्दनाक हत्या कर दी गई.













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