Rani Lakshmi Bai Death Anniversary 2019: अंग्रजों से लोहा लेते हुए वीरगति को प्राप्त हुईं थी रानी लक्ष्मीबाई, जानिए झांसी की इस वीरांगना से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
17 जून 1858 की सुबह लक्ष्मीबाई अपनी आखिरी जंग के लिए तैयार हुई और अंग्रेजों से लोहा लेते हुए वीरगति को प्राप्त हो गईं. हालांकि उनकी मृत्यु को लेकर भी अलग-अलग मत हैं, लेकिन लॉर्ड केनिंग की रिपोर्ट को सर्वाधिक विश्वसनीय माना जाता है.
Rani Lakshmi Bai Death Anniversary 2019: खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी (Queen of Jhansi) थी... जी हां, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई (Rani Lakshmi Bai) भारत के इतिहास की एक महान ऐसी वीरांगना रही हैं, जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपनी जान तक कुर्बान कर दी. झांसी और मातृभूमि के लिए रानी लक्ष्मीबाई ने अपना सर्वस्व कुर्बान कर दिया. वो इतिहास की ऐसी मर्दानी थीं, जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के आगे कभी झुकना स्वीकार नहीं किया और आखिरी दम तक अंग्रजों से लोहा लिया. उनकी इस वीरता और अदम्य साहस ने एक ओर जहां अंग्रजों की नींद उड़ा दी थी, तो वहीं दूसरी तरफ वो उनकी वीरता के प्रशंसक भी थे.
17 जून 1858 को अंग्रेजों से लोहा लेते हुए रानी लक्ष्मीबाई वीरगति को प्राप्त हुई थीं और आज उनकी पुण्यतिथि है. झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि (Rani Lakshmi Bai Death Anniversary) के इस मौके पर चलिए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातें.
झांसी की रानी से जुड़ी 10 रोचक बातें-
1- झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर 1828 को बनारस के एक मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ था. जन्म के बाद उन्हें मणिकर्णिका नाम दिया गया और प्यार से उन्हें मनु कहकर बुलाया जाता था. हालांकि उनके जन्म को लेकर अलग-अलग मत हैं, जिनके अनुसार उनकी जन्मतिथि 1828 से 1835 के बीच बताई जाती है.
2- मणिकर्णिका यानी मनु जब चार साल की थीं, तब उनकी मां भागीरथी बाई का देहांत हो गया था. उनके पिता मोरोपंत तांबे बिठूर जिले के पेशवा के यहां काम करते थे. पेशना ने उन्हें अपनी बेटी की तरह पाला और उन्हें वो प्यार से छबीली कहकर बुलाया करते थे.
3- छोटी सी उम्र में मां को खो देने के बाद मनु का ज्यादातर समय अपने पिता के साथ पेशवा दरबार में गुजरता था. ये पिता मोरोपंत की आजाद परवरिश का ही असर था कि मनु बचपन से ही नाना साहेब और तात्या टोपे के साथ तलवारबाजी जैसे जंग के हुनर सीखने लगीं.
4- साल 1842 में मनु का विवाह झांसी के नरेश गंगाधर राव नवलकर के साथ हुआ और विवाह के बाद उन्हें लक्ष्मीबाई नाम मिला. विवाह के बाद उन्होंने राजकुंवर दामोदर राव को जन्म दिया, लेकिन चार महीने की उम्र में ही उनके बच्चे का निधन हो गया. इसके बाद राजा गंगाधर ने अपने चचेरे भाई के बच्चे को गोद लेकर, उसे दामोदर राव नाम दिया.
5- पुत्र की मृत्यु के बाद रानी लक्ष्मीबाई के सौभाग्य ने भी उनका साथ छोड़ दिया. बताया जाता है कि गंगाधर राव इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पाए और उनकी सेहत दिन-ब-दिन गिरती चली गई. लगातार गिरती सेहत के कारण उनका निधन हो गया. यह भी पढ़ें: रानी लक्ष्मीबाई जन्मदिन विशेष: 'खूब लड़ी मर्दानी वो तो....जानें उस वीरांगना के बारे में जिसनें रखीं थी 1857 के गदर की नींव
6- राजा गंगाधर राव के निधन के बाद अंग्रेजी हुकूमत ने झांसी को अपने कब्जे में लेने के लिए चाल चली. लॉर्ड डलहौजी ने ब्रिटिश साम्राज्य को झांसी में फैलाने के लिए झांसी की बदकिस्मती का फायदा उठाया और रानी लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र दामोदर राव को झांसी के राजा का उत्तराधिकारी स्वीकार करने से इंकार कर दिया.
7- अंग्रेजी हुकूमत ने झांसी की रानी को सालाना 60000 रुपए पेंशन लेने और झांसी का किला उनके हवाल करने के लिए कहा, लेकिन रानी लक्ष्मीबाई किसी भी कीमत पर अपनी झांसी देने को तैयार नहीं थीं. उन्होंने झांसी को बचाने के लिए बागियों की फौज तैयार करने का फैसला किया.
8- अंग्रेजों के खिलाफ बगावत करने के लिए रानी लक्ष्मीबाई को गुलाम गौस खान, दोस्त खान, खुदा बख्श, सुंदर-मुंदर, काशी बाई, लाला भाई बख्शी, मोती बाई, दीवान रघुनाथ सिंह और दीवान जवाहर सिंह का साथ मिला. अंग्रेजों के खिलाफ 1857 के विद्रोह ने अंग्रेजों का फोकस बदला और लक्ष्मीबाई ने 14000 बागियों की एक बड़ी फौज तैयार की.
9- कहा जाता है कि रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से भिड़ना नहीं चाहती थीं, लेकिन सर ह्यूज रोज की अगुवाई में जब अंग्रेज सैनिकों ने उन पर हमला बोला तो उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा.
10- बताया जाता है कि ब्रिटिश अधिकारियों ने आखिरी बार रानी के सामने निहत्थे मुलाकात की पेशकश रखी, लेकिन उन्होंने यह कहते हुए ठुकरा दिया कि अब अगली मुलाकात सेना के साथ ही होगी. जानकारों की मानें तो रानी लक्ष्मीबाई किसी भी हाल में अपनी झांसी को अंग्रेजों के हाथ नहीं जाने देना चाहती थीं.
गौरतलब है कि 17 जून 1858 की सुबह लक्ष्मीबाई अपनी आखिरी जंग के लिए तैयार हुईं और अंग्रेजों से लोहा लेते हुए वीरगति को प्राप्त हो गईं. हालांकि उनकी मृत्यु को लेकर भी अलग-अलग मत हैं, लेकिन लॉर्ड केनिंग की रिपोर्ट को सर्वाधिक विश्वसनीय माना जाता है. इसके अनुसार, रानी को एक सैनिक ने पीछे से गोली मारी थी. अपने घोड़े को मोड़ते हुए रानी लक्ष्मीबाई ने भी उस सैनिक पर वार किया, लेकिन वह बच गया और उसने अपनी तलवार से रानी लक्ष्मीबाई का वध कर दिया.