Rang Panchami 2020: जब देवताओं को आमंत्रित करते हैं रंग-कण, जानें क्यों मनाते हैं रंगपंचमी एवं क्या है इसका महत्व!

महाराष्ट्र में रंग पंचमी का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. यहां धुलंडी से शुरू होकर पंचमी तिथि तक जमकर होली खेली जाती है. इस दिन लोग एक दूसरे को अबीर-गुलाल लगाकर खुशियां बांटते हैं. घरों में विशेष प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं और मित्रों और रिश्तेदारों को आमंत्रित किया जाता है.

होली के रंग (Photo Credits: Pixabay)

Happy Rang Panchami 2020: हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास में कृष्णपक्ष की पंचमी तिथि को रंगपंचमी का पर्व मनाया जाता है. इसीलिए इस पर्व को रंगपंचमी के नाम से जाना जाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार यह दिन देवताओंको समर्पित होता है. कहा तो यह भी जाता है कि इस दिन रंगों के प्रयोग से सृष्टि में सकारात्मक ऊर्जा का संवहन होता है. इसी सकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव से इस दिन देवताओं के स्पर्श का अहसास होता है. सामाजिक दृष्टिकोण से यह पर्व सौहार्द एवं भाईचारे का प्रतीक माना गया है. ज्योतिषियों के अनुसार इस वर्ष रंग-पंचमी 13 एवं 14 मार्च को मनाया जायेगा.

दरअसल रंगपंचमी होली का ही एक दिव्य अंश है, जो प्रत्येक वर्ष चैत्र मास की कृष्णपंचमी के दिन देश के विभिन्न क्षेत्रों में मनाया जाता है. वास्तव में होली का जश्न फाल्गुन मास की पूर्णिमा से लगभग एक महीने पहले शुरू हो जाता है. पूर्णिमा को होलिका-दहन के पश्चात अगले दिन रंगों का पर्व अपने पूरे उफान पर रहता है. यह उत्सव चैत्र मास की कृष्ण प्रतिपदा से पंचमी तक चलता है.

रंग पंचमी के संदर्भ में मान्यता है कि इस दिन जो भी रंग एक दूसरों पर लगाया जाता है, अथवा हवा में उड़ाया जाता है, उन रंग विशेष से संबद्ध देवता आकर्षित होते हैं. जिससे ब्रह्मांड में सकारात्मक तंरगों का संयोग बनता है एवं उन रंग कणों में संबंधित देवताओं के स्पर्श की अनुभूति होती है.

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रंग पंचमी का धार्मिक महत्व

विष्णु पुराण के अनुसार त्रेतायुग के प्रारंभ में संपूर्ण जगत के पालनकर्ता श्रीहरि (विष्णुजी) ने धूलि वंदन किया था. धूलि वंदन से आशय यह कि 'इस युग में श्रीहरि ने विभिन्न दिव्य रंगों से अवतार कार्य आरंभ किया था. होली ब्रह्मांड का एक तेजोत्सव है. जब ब्रह्मांड में भिन्न-भिन्न रंग आवश्यकतानुसार साकार होते हैं. इसी से जुड़ी एक मान्यता यह भी है कि रंगपंचमी का यह उत्सव पांच तत्वों (वायु, आकाश, पृथ्वी, जल और प्रकाश) को सक्रिय करता है. मनुष्य का शरीर भी इन्हीं पंच-तत्वों से बना है. इन तत्वों का आह्वान मानव के आध्यात्मिक विकास का समर्थन करता है.

कैसे मनाते हैं?

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, रंग पंचमी का त्योहार तामसिक गुणों पर सत्वगुण की जीत और विजय का प्रतीक होता है, जो दर्शाता है कि आध्यात्मिक विकास के मार्ग में आने वाली बाधाएं शीघ्र समाप्त होंगी. रंगपंचमी का यह पर्व संपूर्ण उत्तर भारत, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों में विशेष रूप से आयोजित किए जाते हैं. इस खास दिन पर लोग अपने परिवार, रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ रंग खेलते हैं. कुछ जगहों पर श्रीकृष्ण-राधा के साथ चांदी की पिचकारी और बाल्टी से रंग खेला जाता है. इस दिन बुजुर्गों के पैरों पर रंग छिड़का जाता है.

महाराष्ट्र में रंग पंचमी की विशेष धूम

महाराष्ट्र में रंग पंचमी का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. यहां धुलंडी से शुरू होकर पंचमी तिथि तक जमकर होली खेली जाती है. इस दिन लोग एक दूसरे को अबीर-गुलाल लगाकर खुशियां बांटते हैं. घरों में विशेष प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं और मित्रों और रिश्तेदारों को आमंत्रित किया जाता है. इसके अलावा यह दिन महाराष्ट्र के कोली समाज के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. इन पांचों दिन मछुआरे अपने परिवार के साथ पारंपरिक ढंग से होली मनाते हैं. हर घरों में पूरनपोली जैसे पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं.

मुख्य होता है. कुछ जगहों पर दही-हांडी प्रतियोगिताएं भी होती हैं, जिसमें महिलाएं मटकी फोड़ने वालों पर रंग फेंककर उन्हें उनके लक्ष्य से दूर करती हैं. जो व्यक्ति मटकी फोड़ने में सफल हो जाता है, उसे पुरस्कार देकर सम्मानित किया जाता है और वह पूरे साल के लिए ‘किंग ऑफ द ईयर’ घोषित कर दिया जाता है. महाराष्ट्र के अलावा राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी रंग पंचमी धूमधाम के साथ खेली जाती है.

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