रहमतों और बरकतों वाला महिना रमजान 17 मई से शुरू होने वाला है. पुरे विश्व के मुसलमान इस महीने का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं. रमजान के महीने को इस्लाम में नेकियां और सबाब बटोरने वाला महिना कहा जाता है. रमज़ान इस्लामिक कैलेंडर का नौवां महिना होता है. रमजान में हर मुस्लमान का रोजा (उपवास ) रखना फर्ज होता है. रोजा पुरे 30 दिनों तक रखा जाता है.आम तौर पर मुसलमान जो रोजा रखते हैं उसका वक़्त 12 से 15 घंटों तक का होता है, और इस दौरान कोई भी चीज़ के खाने-पीने की मनाई होती है. दिन के अंत में मगरिब के तुरंत बाद मुसलमान खुजूर खाकर रोजा इफ्तार करते है, इस तरह से रोजा मुकम्मल होता है.
यह महिना इबादतों का महिना भी कहलाता है. रमजान को तीन भागों में बांटा गया है. 10 दिन के पहले भाग को रहमतों का अशरा कहा जाता है. दूसरे 10 दिन के भाग को माफी का अशरा कहा जाता है और आखिरी 10 को जहन्नुम के बचाने का अशरा बोला जाता है. दिन के आखिर में ईशा की नमाज़ के बाद एक खास नमाज अदा की जाती है जिसे तरावीह कहते है. तरावीह सिर्फ यह एक विशेष नमाज होती है. जिसमें पवित्र ग्रंथ कुरान शरीफ को पढ़ा जाता है.
इस्लाम में गरीब लोगों की मदद करने को बहुत अच्छा काम माना जाता है, इसीलिए इस माह में समाज के ग़रीब लोगों की अनाज, रुपये, और अन्य चीज़ों से मदद की जाती है.
एक तरफ जहां इबादतें होती हैं वहीं दूसरी ओर रोजदारों के लिए घरों में तरह-तरह के पकवान, शीरखुरमा, और शरबत बनाये जाते हैं. इसी तरह सहरी (रोज़ा को शुरू करने से पहले, रात में खाया जाने वाला खाना) के लिए भी अलग तरह के पकवान होते हैं. इस संदर्भ में इस माह को इस्लाम में तमाम महीनो का सरदार कहा जाता है.
कौन लोग रोजा रख सकते हैं :-
_जो शारीरिक रूप से स्वस्थ हों.
_जो बालिग हो.
_जो पागल ना हो
कौन लोग रोजा नहीं रख सकते :-
– जो लोग यात्रा पर हैं और अस्वस्थ हैं.
– माहवारी में महिलाओं को छूट दी गयी है.
– बुजुर्ग और बीमार लोग भी रोजा नहीं रख सकते.
– गर्भवती महिलाएं और नई-नई मां बनने वाली महिलाएं, जो बच्चे को दूध पिलाती हैं.