Ram Prasad Bismil Jayanti 2020: वीर स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद बिस्मिल की 123वीं जयंती, जानें उनके जीवन से जुड़े रोचक तथ्य

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले वीर स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद बिस्मिल की आज 123वीं जयंती मनाई जा रही है. राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में हुआ था. राम प्रसाद बिस्मिल सिर्फ एक स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं थे, बल्कि वे बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी थे. वे एक शायर, लेखक, इतिहासकार और साहित्यकार भी थे

राम प्रसाद बिस्मिल जयंती (Photo Credits: File Image)

Ram Prasad Bismil 123rd Birth Anniversary: भारत के स्वतंत्रता संग्राम (Freedom Fight of India) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले वीर स्वतंत्रता सेनानी (Indian Freedom Fighter) राम प्रसाद बिस्मिल  की आज 123वीं जयंती (Ram Prasad Bismil 123rd Birth Anniversary) मनाई जा रही है. राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में हुआ था. छोटी सी उम्र में क्रांतिकारी आंदोलन में भाग लेने वाले राम प्रसाद बिस्मिल (Ram Prasad Bismil) सिर्फ एक स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं थे, बल्कि वे बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी थे. वे एक शायर, लेखक, इतिहासकार और साहित्यकार भी थे. उन्होंने फांसी से पहले 'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है' इस कविता को अपनी जुंबा से कहा था, भले ही ये कविता पटना के अजीमाबाद के मशहूर शायर बिस्मिल अजीमाबादी के थे, लेकिन जब राम प्रसाद बिस्मिल ने अपनी जुंबे से यह कविता कही, तब से इसकी पहचान उनसे बन गई.

महान क्रांतिकारी, शायर, लेखक, इतिहासकार और साहित्यकार के तौर पर अपनी पहचान बनाने वाले राम प्रसाद बिस्मिल हिंदू-मुस्लिम एकता (Hindu-Muslim Unity) में काफी विश्वास रखते थे और अशफाक उल्ला खां से उनकी गहरी दोस्ती इस बात का प्रमाण है. बचपन से ही आर्य समाज से प्रेरित होने के बावजूद उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता पर काफी काम किया. चलिए राम प्रसाद बिस्मिल की 123वीं जयंती पर जानते हैं उनके जीवन से जुड़े कुछ रोचक तथ्य.

राम प्रसाद बिस्मिल से जुड़े रोचक तथ्य-

मैनपुरी षडयंत्र और काकोरी कांड को अंजाम देने में अहम भूमिका निभाने वाले राम प्रसाद बिस्मिल को 19 दिसंबर 1927 में फांसी दे दी गई थी. फांसी के समय उनकी उम्र महज 30 साल थी. देश के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले बिस्मिल ने फांसी का फंदा गले में डालने से पहले भी 'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है' कविता पढ़ी थी. मातृभूमि के लिए अपनी जान कुर्बान करने वाले इस महान स्वतंत्रता सेनानी को आज भी देश याद करता है.

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