Navratri 2018: कैसे हुई थी देवी दुर्गा की उत्पत्ति, जानें इससे जुड़ी दिलचस्प पौराणिक कथा
सिंह पर सवार रहने वाली देवी दुर्गा का रूप स्नेह और ममता से परिपूर्ण है. वो अपने भक्तों की रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहती हैं, लेकिन वो असुरों के लिए काल हैं. देवी दुर्गा की उत्पत्ति महिषासुर का वध करने के लिए हुई थी. उन्होंने उसका अंत किया था, इसलिए मां दुर्गा को महिषासुर मर्दिनी भी कहा जाता है.
शारदीय नवरात्रि का पावन पर्व देशभर में मनाया जा रहा है. नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा के भक्तों के लिए बेहद खास होते हैं, क्योंकि इन नौ दिनों में मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है. मां दुर्गा को आदिशक्ति, महाकाली, पार्वती, गौरी, भगवती और जगदंबा जैसे कई विभिन्न नामों से पुकारा जाता है. सदियों से नवरात्रि के दौरान देवी के नौ स्वरूपों और दस महाविद्याओं की पूजा की परंपरा चली आ रही है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि मां दुर्गा की उत्पत्ति कैसे हुई थी और किस मकसद के लिए वे अवतरित हुईं?
मान्यताओं के अनुसार, मां दुर्गा की उत्पत्ति राक्षसों के वध के लिए हुई थी. मां दुर्गा की उत्पत्ति से जुड़ी पौराणिक कथा के मुताबिक, अपनी मर्जी से भैंस व इंसान का रूप धारण करने वाले महिषासुर नाम के एक शक्तिशाली दानव ने अमर होने के लिए भगवान ब्रह्मा की तपस्या की. उसकी कठिन तपस्या से ब्रह्माजी बेहद प्रसन्न हुए और उन्होंने उससे वरदान मांगने को कहा. जिसके बाद महिषासुर ने उनसे अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्मा जी ने कहा कि जिसने जन्म लिया है, उसकी मृत्यु निश्चित है.
महिषासुर बेहद चालाक था, उसने सोच विचार करके ब्रह्मा जी से कहा कि आप मुझे ये वरदान दें कि देवता, असुर और मानव कोई भी मेरा वध न कर पाए, मेरी मृत्यु किसी स्त्री के हाथों हो. महिषासुर की बात मानकर ब्रह्मा जी ने उसे ये वरदान दे दिया. ब्रह्मा जी से वरदान पाकर महिषासुर को लगा कि वो अमर हो गया है और इसी अहंकार में आकर उसने तीनों लोकों में अपना आतंक मचा दिया. यह भी पढ़ें: Navratri 2018: भारत के इस मंदिर में सदियों से रहस्यमय तरीके से जल रही है ज्वाला
महिषासुर के आतंक से भयभीत सभी देवता ब्रह्मा जी के पास गए, तब सभी देवताओं ने मिलकर देवी दुर्गा की रचना की और उन्हें हर देवता ने कुछ न कुछ दिया. भगवान शिव ने त्रिशुल और भगवान विष्णु ने चक्र दिया. इस तरह से सभी देवताओं की कोई न कोई शक्ति देवी दुर्गा को प्राप्त हुई. कहा जाता है कि महिषासुर के आंतक को खत्म करने के लिए देवी दुर्गा ने उससे नौ दिनों तक युद्ध किया. आखिरकार नौवें दिन मां ने महिषासुर का अंत कर दिया, इसलिए असुरों पर विजय के प्रतीक के तौर पर नवरात्रि के पर्व को नौ दिनों तक मनाया जाता है.
सिंह पर सवार रहने वाली देवी दुर्गा का रूप स्नेह और ममता से परिपूर्ण है. वो अपने भक्तों की रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहती हैं, लेकिन असुरों के लिए वे साक्षात काल हैं. देवी दुर्गा की उत्पत्ति महिषासुर का वध करने के लिए हुई थी. उन्होंने उसका अंत किया, इसलिए मां दुर्गा को महिषासुर मर्दिनी भी कहा जाता है. यह भी पढ़ें: Navratri 2018: बंगाल के अलावा देश के इन जगहों पर भी धूमधाम से होती है दुर्गा पूजा