Narsingh Jayanti 2020: नृसिंह भगवान का व्रत-पूजन-कथा से कट जाता है ब्रह्म-हत्या का पाप, जानें क्या है महत्व
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo: Wikimedia Commons)

  वैशाख मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को भगवान नृसिंह की जयंती मनाई जाती है. विष्णु पुराण के अनुसार श्रीहरि ने अपने अनन्य भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए इसी दिन नृसिंह रूप में अवतार लिया थाऔर प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप का संहार कर प्रह्लाद की रक्षा की थी. इसीलिए इस दिन नृसिंह जयंती मनायी जाती है. मान्यता है कि भगवान विष्णु का यह चौथा अवतार है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस बार 6 मई 2020 को नृसिंह जयंती मनाई जाएगी.

कैसे करें व्रत एवं पूजा

वैशाख मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी यानी नृसिंह जयंती के प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व स्नान-ध्यान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. इसके पश्चात घर के मंदिर में नृसिंह भगवान के साथ माता लक्ष्मी की प्रतिमा रखकर उनकी विधि-विधान से पूजा-अर्चना करें. उन्हें फलफूलअक्षतधूपदीपपंचमेवाकुमकुमकेसरनारियल इत्यादि अर्पित करेंएवं निम्न मंत्रों का कम से कम 51 बार जाप अवश्य करें. 

ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्।

नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्यु मृत्युं नमाम्यहम्॥

नृसिंह जयंती महत्व

  शास्त्रानुसार नृसिंह जयंती व्रत का महात्म्य और कथा सुनने से ब्रह्म-हत्या का पाप कट जाता है. जातक को सांसारिक सुखभोग और मोक्ष तीनों की प्राप्ति होती है. ऐसा करने से सात जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है. ऐसी भी मान्यता है कि नृसिंह चतुर्दशी के दिन मध्याह्न काल में नृसिंह भगवान का व्रत एवं अनुष्ठान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है.

क्यों और कैसे हुए प्रकट नृसिंह भगवान 

  हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार प्राचीनकाल में कश्यप नामक एक महर्षि थे. उनकी पत्नी दिति से उन्हें दो पुत्र हरिण्याक्ष और हिरण्यकशिपु’ थे. महर्षि-पुत्र होने के बावजूद वे राक्षसी प्रवृति के थे. उसकी इस प्रवृत्ति से पृथ्वी की रक्षा हेतु विष्णुजी ने हरिण्याक्ष’ का वध कर दिया. भाई के वध की खबर सुनकर हिरण्यकश्यप ने भाई की मृत्यु का बदला लेने के लिए ब्रह्माजी का कठिन तप शुरू किया. उसकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने हिरण्यकशिपु को अजेय होने का वरदान दिया. अजेयता का वरदान पाते ही हिरण्यकशिपु शक्ति के मद में चूर स्वर्ग पर हमला कर दिया और इंद्र समेत सारे देवताओं को वहां से निकालकर खुद सिंहासन पर बैठ गया. उसके इस कृत्य से आकाशपाताल और पृथ्वीलोक में हाहाकार मच गया. तीनों लोकों को भयभीत करने के बाद हिरण्यकशिपु आम जनता पर भी अत्याचार करने लगा. उसने घोषणा करवा दिया कि उसके नगर की प्रजा अब उसी की पूजा करेगी. इसी दरम्यान हिरण्यकश्यप की पत्नी कयाधु ने एक पुत्र प्रह्लाद को जन्म दिया. प्रह्लाद जन्म से ही विष्णुजी का भक्त था और पिता के आसुरी कृत्यों का हमेशा विरोध करता था. प्रह्लाद के विष्णु-भक्त होने के कारण हिरण्यकश्यप उससे हमेशा नाराज रहता था.

उसने प्रह्लाद का वध करने हर कोशिश कीमगर विष्णुजी की कृपा से वह हर बार बच जाता था. अंततः हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को एक खंबे में बांधकर प्रह्लाद से क्रोधित होकर बोलाकहां है तेरा भगवानप्रह्लाद ने कहाप्रभु सर्वशक्तिमान हैंवो तो कण-कण में व्याप्त हैं. इस खंबे में भी हैंक्रोधित हिरण्यकशिपु ने कहाअच्छा इस खम्बे में तेरा भगवान छिपा हैकहते हुए हिरण्यकशिपु ने खम्बे पर गदे से प्रहार किया. तभी खम्बे को चीरकर नृसिंह प्रकट हुए और हिरण्यकशिपु को अपनी जांघ पर रख उसकी छाती को फाड़कर उसका वध कर दिया. भगवान नृसिंह ने भक्त प्रहलाद को वरदान दिया कि जो भी आज के दिन भगवान नृसिंह का व्रत-पूजा आदि करेगाउसकी सारी मनोकामनाएं अवश्य पूरी होगी.