Nag Panchami 2022: इस शुभ मुहूर्त में करें अष्टनाग की पूजा! सर्पदंश का भय होगा खत्म! जानें पूजा का महात्म्य, शुभ मुहूर्त, पूजा-विधि एवं व्रत कथा
नाग पंचमी (Photo Credits Files0

Nag Panchami 2022: हिंदू धर्म में पौराणिक काल से ही सर्पों की देवताओं के रूप में पूजा की जाती रही है. जानें इस वर्ष 2022 में कब और किस शुभ मुहूर्त में नागपंचमी की पूजा किन मंत्रों के साथ की जायेगी. तथा क्या है पूजा की विधि एवं इसकी व्रत कथा. नाग पंचमी का व्रत रखने वालों के लिए व्रत कथा अवश्य सुननी अथवा पढ़नी चाहिए. यह भी पढ़े: Nag Panchami 2022: कब है नाग पंचमी? क्यों होती है इस दिन सर्पों की पूजा? जानें नाग पंचमी का महात्म्य, मुहूर्त एवं पूजा विधि!

नाग पंचमी का महत्व!

विभिन्न हिंदी पंचांगों के अनुसार प्रत्येक वर्ष सावन माह, शुक्लपक्ष की पंचमी के दिन नागपंचमी का पर्व पूरी श्रद्धा एवं आस्था के साथ मनाया जाता है. वरुण पुराण के अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी स्वयं नाग देव हैं. इसलिए इस पर्व पर नागदेवता की पूजा कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए. अष्टनाग देवताओं की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. ऐसी भी मान्यता है कि नाग पंचमी के दिन शुभ मुहूर्त पर अष्टनाग की पूजा अर्चना करने से सर्पदंश का भय समाप्त होता है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष नाग पंचमी का पर्व एवं पूजा 2 अगस्त. 2022, मंगलवार के दिन मनाया जायेगा.

नाग पंचमी 2022 तिथि एवं पूजा का शुभ मुहूर्त

नाग पंचमी प्रारंभः 05.13 A.M. (02 अगस्त 2022, मंगलवार) से

नाग पंचमी समाप्तः 05.41 A.M. (03 अगस्त 2022, बुधवार) तक

नाग पंचमी पूजा का शुभ मुहूर्तः 05.43 A.M. से 08.25 A.M. तक

उदया तिथि 2 अगस्त को होने से नाग पंचमी 2 अगस्त को मनाई जायेगी.

नाग पंचमी की पूजा विधि

पंचमी तिथि के दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व स्नान ध्यान करें. इसके पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण कर नाग देवता का ध्यान करते हुए शुभ मुहूर्त में व्रत एवं पूजा करने का संकल्प लें और अपनी मन्नत पूरी होने की याचना करें. इस दिन शाम के समय ही फलाहार लेना चाहिए. अब पूजा स्थल के सामने एक छोटी चौकी पर श्वेत वस्त्र बिछाकर उस पर अष्ट नाग देवताओं (वासुकि, तक्षक, कालिया, मणिभद्रक, ऐरावत, धृतराष्ट्र, कार्कोटक और धनंजय) का चित्र बनायें. चित्र पर हल्दी, दूर्वा, कुशा, फूल, रोली, चंदन, इत्र, अछत पुष्प अर्पित करें. एक मिट्टी के पात्र में खीर का भोग लगायें. अब अष्टनाग का ध्यान करते हुए भविष्य पुराण में उल्लेखित निम्न मंत्र का जाप करें.

वासुकिः तक्षकश्चैव कालियो मणिभद्रकः।

ऐरावतो धृतराष्ट्रः कार्कोटकधनंजयौ ॥

एतेऽभयं प्रयच्छन्ति प्राणिनां प्राणजीविनाम् ॥

इसके बाद व्रत कथा सुनें. इस विधि से पूजा करने से जातक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

नाग पंचमी व्रत कथा!

हिंदू धर्म कथाओं के अनुसार एक बार पांडु पुत्र अर्जुन के पौत्र जन्मजेय की तक्षक नाग के काटने से मृत्यु हो गई. तब जन्मजेय के पिता परीक्षित (अर्जुन-पुत्र) ने पुत्र की हत्या करनेवाले समस्त नागवंश के विनाश के लिए नाग यज्ञ प्रारंभ किया. लेकिन यज्ञ पूरा होने से पूर्व ही नाग वंश की रक्षा के लिए ऋषि जरत्कारू के पुत्र ऋषि आस्तिक ने परीक्षित को यह यज्ञ रोकने की प्रार्थना की. मान्यता है कि जिस दिन यह यज्ञ रोका गया, उस दिन श्रावण मास की शुक्लपक्ष की पूर्णिमा थी. यज्ञ रुकने के कारण तक्षक के साथ समस्त नागवंश का विनाश होने से बच गया. मान्यता है कि तभी से नागपंचमी की पूजा की परंपरा शुरु हुई.