Mysore Dasara 2020: मां दुर्गा (Maa Durga) की उपासना के पर्व शारदीय नवरात्रि (Sharad Navratri) के समापन के बाद दशमी तिथि को दशहरा (Dussehra) का त्योहार देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है. एक ओर जहां देश के विभिन्न हिस्सों में दशहरा यानी विजयादशमी (Vijayadashami) के दिन रावण के पुतले का दहन कर बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाया जाता है, तो वहीं दूसरी तरफ कर्नाटक के मैसूर का दशहरा (Mysore Dasara) देश-विदेश के लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है. भव्य तरीके से मनाए जाने वाले मैसूर दशहरा उत्सव (Mysuru Dussehra) को यहां के लोग दसरा या नदहाबा (Nadahabba) कहते हैं.मैसूर दशहरा उत्सव 17 अक्टूबर से शुरु हुआ है, जिसका समापन 27 अक्टूबर को हो रहा है.
इस दिन मैसूर की सड़कों पर भव्य जुलूस (Procession) निकाला जाता है. देवी चांमुडेश्वरी (Goddess Chamundeshwari) की तस्वीर एक सजे हुए हाथी की पीठ पर एक सुनहरे हावड़ा में रखी जाती है और नृत्य, संगीत, घोडों और ऊंटों के साथ पांच किलोमीटर तक जुलूस निकाला जाता है. यह जुलूस मैसूर पैलेस से शुरू होता है और बन्निमंतपा में समाप्त होता है, जहां बन्नी पेड़ की पूजा की जाती है. यह भी पढ़ें: Dussehra 2020: दशहरा पर शस्त्र-पूजन की परंपरा! रावण का संहार करने से पूर्व श्रीराम ने भी की थी शक्ति एवं शस्त्रों की पूजा!
वैसे तो हर साल कर्नाटक में मैसूर दशहरा उत्सव को भव्य तरीके से मनाया जाता है. इस उत्सव से जुड़ी परंपराएं और विशेष समारोह मैसूर दशहरा को बेहद खास बनाते हैं. हालांकि इस साल कोरोना वायरस महामारी के कारण कर्नाटक सरकार ने सादगी से समारोह करने का फैसला किया है. मैसूर दशहरा उत्सव को मनाने के लिए विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों और समारोहों का आयोजन किया जाता है, जिसमें तलवार, हथियार, हाथी और घोड़ों का प्रदर्शन भी शामिल है.
मैसूर दशहरा विजय मुहूर्त
26 अक्टूबर 2020- दोपहर 02:05 PM से 02:52 PM तक.
अवधि- 47 मिनट
मैसूर दशहरा अपराह्न मुहूर्त- दोपहर 01:18 PM से 03:39 PM तक
अवधि- 2 घंटे 21 मिनट
दशमी तिथि प्रारंभ- 25 अक्टूबर को सुबह 07:41 AM से,
दशमी तिथि समाप्त- 26 अक्टूबर की सुबह 09:00 AM तक. यह भी पढ़ें: Dussehra 2020: क्या विभीषण राष्ट्रद्रोही थे? अगर वे राम की मदद नहीं करते तो क्या रावण के प्राण बच जाते?
मैसूर दशहरा का महत्व
मान्यता है कि मैसूर में दशहरा का आयोजन सबसे पहले 15वीं शताब्दी में हुआ था. दशहरा के पर्व का आयोजन विजयनगर साम्राज्य के शासकों द्वारा किया गया था. दशहरा के दिन देवी चामुंडेश्वरी की पूजा की जाती है. मैसूर दशहरा का उत्सव मनाने के लिए अंबा महल से 5 किलोमीटर तक का जुलूस निकाला जाता है, जिसमें 15 हाथी लाए जाते हैं और जानवरों की झांकी निकाली जाती है. इस त्योहार के आखिरी दिन सड़कों पर एक जंबो सवारी का जुलूस भी निकाला जाता है, जिसमें बच्चों से लेकर बड़े, बूढ़ों तक हर कोई शामिल होता है. त्योहार के दिन मैसूर पैलेस को भव्य तरीके से सजाया जाता है. इस उत्सव को देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटक यहां आते हैं.