अक्सर डॉक्टर हमें बरसात में घर के बाहर ठेले पर बिकते समोसा चाट-पकौड़ों से दूर रहने की हिदायत देते हैं, क्योंकि इससे संक्रमण फैलने का खतरा होता है. इसके बावजूद रिमझिम बरसात में सड़क किनारे गरमा-गरम तलते समोसे, भजिये इत्यादि हमें अपनी ओर आकर्षित कर ही लेते हैं. भले ही बाद में हमें इसका खामियाजा क्यों न भुगतना पड़े, परवाह नहीं करते. यही वजह है कि मानसून के दिनों में चाट-पकौड़ों का व्यवसाय खूब फलता-फूलता है. क्या आपने कभी सोचा है ऐसा क्यों होता है इस संदर्भ में डॉक्टर जितेंद्र ने यहां कुछ रोचक फैक्ट बता रहे हैं, जिसे पढ़कर आप भी चौंक उठेंगे. Monsoon Foods: मुंबई की बारिश में इन जगहों पर आप उठा सकते हैं पसंदीदा पकवानों का लुत्फ
बारीश में कुछ हैप्पी हैप्पी!
बारिश में चाट-पकौड़े खाने की तीव्र ईच्छा के संदर्भ में डॉक्टर जितेंद्र सिंह बताते हैं, दरअसल बारिश में धूप की कमी से हमें विटामिन डी प्रचुर मात्रा में नहीं मिल पाता, जिसकी वजह से सेरोटोनिन के स्तर में गिरावट आती है. सूर्य की रोशनी नहीं अथवा कम मिलने से पीनियल ग्लैंड मेलाटोनिन रिलीज करती है, जिससे व्यक्ति को आलस्य आता है, और बॉडी क्लॉक डिस्टर्ब होती है, सरल शब्दों में कहें तो इससे हमारा हैप्पी हार्मोन प्रभावित होता है, हमारे भीतर आलस्य एवं उदासी बढ़ती है. विटामिन डी की कमियों के संतुलन बिठाने के लिए हमारे शरीर को कार्बोहाइड्रेट की जरूरत होती है, ताकि सेरोटोनिन के स्तर को संतुलित बनाया जा सके. तब हमें कार्बोहाइड्रेट के अलावा डीप फ्राई वाले नाश्ते की जरूरत महसूस होती है, उसमें नमी की कमी होती है, कुछ कुरकुरा खाने की इच्छा करती है, यही समय होता है जब हमें कुछ तली-भुनी चीजें खाने की इच्छा करती है.
स्पाइसी चीजों के प्रति आकर्षण क्यों?
बरसात के दिनों में हमारी इच्छा तले-भुने नाश्ते के अलावा स्पाइसी वस्तुएं भी खाने को करती है. आहार विशेषज्ञों का मानना है कि मिर्च में कैप्साइसिन नामक यौगिक होता है, जो हमारे जुबान की तंत्रिका रिसेप्टर्स को अहसास कराता है कि हमने कुछ गर्म चीज खाया है, परिणामस्वरूप हमारा मस्तिष्क की प्रतिक्रिया स्वरूप हमें पसीना