Makar Sankranti 2019: इस साल 14 नहीं 15 जनवरी को मनाया जाएगा मकर संक्रांति का पर्व, जानिए इसका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

इस बार 14 जनवरी की शाम 7.52 पर सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेंगे, जबकि मकर राशि का पुण्यकाल 14 जनवरी को 1.28 बजे से 15 जनवरी को 12 बजे तक रहेगा. ऐसे में मकर संक्रांति 15 तारीख को मनाई जाएगी और इसी दिन दान व स्नान का महत्व माना जाएगा.

मकर संक्रांति 2019 (File Image)

Makar Sankranti 2019:  हिंदुओं के खास त्योहारों में से एक मकर संक्रांति (Makar Sankranti) का पर्व इस साल देशभर में 15 जनवरी को मनाया जाएगा. प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, इस दिन सूर्य (Surya) का उत्तरायण होता है और इसी दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं. यह पर्व प्रकृति, ऋतु परिवर्तन और खेती से जुड़ा हुआ है और प्रकृति के कारक के तौर पर इस दिन सूर्य की पूजा की जाती है. माना जाता है कि सूर्य की स्थिति के अनुसार ही ऋतुओं में परिवर्तन होता है और धरती पर अनाज की पैदावार होती है. इसी दिन से दिन लंबे होने लगते हैं और रातें छोटी होने लगती है.

बताया जा रहा है कि इस बार 14 जनवरी की शाम 7.52 पर सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेंगे, जबकि मकर राशि का पुण्यकाल 14 जनवरी को 1.28 बजे से 15 जनवरी को 12 बजे तक रहेगा. ऐसे में मकर संक्रांति 15 तारीख को मनाई जाएगी और इसी दिन दान व स्नान का महत्व माना जाएगा. इस दिन खिचड़ी का भोग लगाया जाता है और गुड़-तिल, रेवड़ी, गजक का प्रसाद बांटा जाता है.

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं. दरअसल, शनि मकर और कुंभ राशि के स्वामी है इसलिए यह पर्व पिता-पुत्र के मिलन से भी जुड़ा हुआ है.

एक अन्य पौराणिक मान्यता के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु ने पृथ्वी लोक पर असुरों का संहार कर उनके सिरों को काटकर मंदरा पर्वत पर गाड़ दिया था, इसलिए भगवान विष्णु की इस जीत के तौर पर भी मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने कहा था कि जो मनुष्य मकर संक्रांति पर देह का त्याग करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है और वह हमेशा-हमेशा के लिए जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है. यह भी पढ़ें: Makar Sankranti 2019: जानिए इस बार 15 जनवरी को क्यों मनाई जाएगी मकर संक्रांति

फसलों की कटाई का है त्योहार 

मकर संक्रांति नई फसल और नई ऋतु के आगमन का त्योहार है. पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार और तमिलनाडु में इस दौरान नए फसलों की कटाई होती है, इसलिए देश के किसान मकर संक्रांति को 'आभार दिवस' के तौर पर भी मनाते हैं.

पंजाब और जम्मू-कश्मीर में मकर संक्रांति के पर्व को 'लोहड़ी' के तौर पर धूमधाम से मनाया जाता है. तमिलनाडु में इस पर्व को 'पोंगल' के नाम से जाना जाता है, जबकि बिहार और उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति का पर्व 'खिचड़ी' के नाम से मशहूर है. इस दिन कहीं खिचड़ी बनाई जाती है, तो कहीं दही-चूड़ा और तिल के लड्डू बनाए जाते हैं.

स्नान और दान का है विशेष महत्व

पौराणिक धारणाओं के अनुसार, दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि यानी नकारात्मकता का प्रतीक और उत्तरायण को देवताओं का दिन यानी सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है. मकर संक्रांति के दिन जप, तप, स्नान और दान जैसे धार्मिक कार्यों का विशेष महत्व बताया जाता है. कहा जाता है कि इस दिन दान करने से उसका सौ गुना फल मिलता है और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग खुलता है.

देश के कई शहरों में लगते हैं मेले

मकर संक्रांति के मौके पर देश के कई शहरों में मेलों का आयोजन किया जाता है. खासकर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और दक्षिण भारत में मेले लगते हैं, जहां पवित्र नदियों के तट पर भारी तादात में श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाते हैं और दान-धर्म करते हैं. यह भी पढ़ें: कुंभ मेला 2019: गोरखपुर में एक महीने तक चलेगा खिचड़ी मेला, लाइट और साउंड से बना भव्य आकर्षण का केंद्र

दिन बड़ा और रातें होने लगती हैं छोटी

मकर संक्रांति से मौसम में बदलाव आना शुरु हो जाता है और इसी दिन से दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं. मकर संक्रांति के दिन से सूर्य का राशि परिवर्तन अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है. यही वजह है कि इस पर्व से दिन बड़ा होने लगता है और रात छोटी होने लगती है. यही वजह है कि हिंदू धर्म में इस पर्व को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है.

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