Mahashivratri 2021: दुर्लभ योग में करें भगवान शिव की पूजा एवं अभिषेक! होगी अभीष्ठ फलों की प्राप्ति, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और पौराणिक कथा
महाशिवरात्रि 2021 (Photo Credits: File Image)

Mahashivratri 2021: फाल्गुन मास देवाधि-देव भगवान शिव (Lord Shiva) को समर्पित है. हिंदू शास्त्रों के अनुसार फाल्गुन कृष्णपक्ष की चतुर्दशी के दिन महाशिवरात्रि (Mahashivratri) का पर्व मनाया जाता है. शिव पुराण, गरुड़ पुराण, स्कन्द पुराण, पद्मपुराण और अग्निपुराण के अनुसार फाल्गुन शिवरात्रि के दिन भगवान शिव (Bhagwan Shiv) और पार्वती (Mata Parvati) का विवाह संपन्न हुआ था. ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान शिव ने इसी दिन डमरू बजाकर सृष्टि का आरंभ एवं बाद में डमरू बजाकर सृष्टि  के अंत यानी संहार का संकेत दिया था. भगवान शिव का शाब्दिक अर्थ है कल्याण करने वाला, और शिव को ही आशुतोष भी कहते हैं, जिसका आशय है शीघ्र प्रसन्न होने वाले. भगवान शिव ऐसे ही हैं, जो संहारक होते हुए भी अपने भक्तों से शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं.

अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 11 मार्च 2021 को महाशिवरात्रि का योग बन रहा है, यद्यपि इस दिन फाल्गुन कृष्णपक्ष की त्रयोदशी है, किंतु यह त्रयोदशी दोपहर 2 बजकर 40 मिनट तक ही है. निशीथ व्यापिनी चतुर्दशी होने के कारण महा शिवरात्रि का व्रत एवं पूजन 11 फरवरी को ही मनाया जायेगा.

क्या है दुर्लभ योग

11 मार्च 2021 की सुबह 9 बजकर 24 मिनट तक शिव योग रहेगा.  इसके पश्चात सिद्ध योग लग जायेगा, जो 12 मार्च की सुबह 8 बजकर 29 मिनट तक रहेगा. मान्यता है कि शिव योग में किए गए सभी मंत्र शुभ फलदायक होते हैं. ध्यान रहे कि रात 9 बजकर 45 मिनट तक धनिष्ठा नक्षत्र रहेगा. यह भी पढ़ें: Mahashivratri 2021: महाशिवरात्रि कब है? इस पावन तिथि पर बन रहे हैं दुर्लभ योग, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और इसका महत्व

पूजा विधि

इस दिन प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व स्नानादि से निपटकर भगवान शिव का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लेना चाहिए. इसके बाद घर एवं बाहर शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव-पार्वती का दर्शन करना चाहिए. भगवान शिव की पूजा सम्पन्न होने के पश्चात गाय के गोबर से बने कण्डे जलाकर उसी में तिल, चावल और घी की आहुति दी जाती है. आहुति के पश्चात एक सामान्य मौसमी फल अग्नि में अर्पित करना चाहिए. वैसे अधिकांश विद्वान सूखे नारियल की आहुति देते हैं. आहुति के पश्चात पूजा सम्पन्न होती है. इसके पश्चात उपवासियों को चाहिए कि वे ब्राह्मण को अन्न-दान करना चाहिए. ऐसा करने से जातक की सारी मनोकामनाएं पूरी होती है. महाशिवरात्रि के दिन पूरी तरह आस्तिक, संयमित, शुभ आचरण एवं बुजुर्गों का सम्मान करना चाहिए. पशु पक्षियों को नाहक परेशान नहीं करना चाहिए.

शिवलिंग का ऐसे करें जलाभिषेक!

सनातन धर्म के अनुसार शिवरात्रि के दिन शिवलिंग की चारों प्रहर में अभिषेक करना चाहिए. मान्यतानुसार शिवरात्रि के दिन रात्रि के प्रथम प्रहर में दूध, दूसरे प्रहर में दही, तीसरे प्रहर में घृत (घी) और चौथे प्रहर में मधु (शहद) से स्नान करना चाहिए. इन चारों प्रहर में शिवजी के अभिषेक के दरम्यान क्रमशः मंत्रोच्चारण करते रहना चाहिए.

प्रथम प्रहर में- 'ह्रीं ईशानाय नमः'

दूसरे प्रहर में- 'ह्रीं अघोराय नमः'

तीसरे प्रहर में- 'ह्रीं वामदेवाय नमः'

चौथे प्रहर में- 'ह्रीं सद्योजाताय नमः' मंत्र का जाप करना चाहिए.

महाशिवरात्रि (11 मार्च 2021) का शुभ मुहूर्त

महानिशीथ कालः रात्रि 11.44 बजे से रात 12.33 बजे तक

निशीथ काल पूजा मुहूर्त : 12 मार्च रात 12. 06 बजे से 12. 55 बजे तक (अवधि 48 मिनट)

महाशिवरात्रि पारण: 12 मार्च सुबह 06.36 बजे से दोपहर 03.04 बजे तक. यह भी पढ़ें: Mahashivratri 2021: महाशिवरात्रि के व्रत में रखें इन बातों का खास ख्याल, जानें भगवान शिव की कृपा पाने के लिए इस दिन क्या करें और क्या नहीं

पौराणिक व्रत कथा

प्राचीनकाल में चित्रभानु नामक एक शिकारी था, जो जानवरों को मारकर अपने परिवार की परवरिश करता था. एक साहूकार का कर्ज न चुकाने के कारण साहूकार ने उसे पूरे दिन कैद करने के बाद शाम को इस चेतावनी के साथ छोड़ा, कि अगले दिन वह पूरा कर्ज वापस कर देगा. शिकारी जंगल के लिए निकला. पूरे दिन भूख-प्यास से व्याकुल शिकार की तलाश में वह बहुत दूर निकल गया. काफी अंधेरा होने पर वह घर नहीं गया. शिकार की टोह में वह तालाब  किनारे स्थित बिल्व-वृक्ष पर चढ़ गया. उसने वृक्ष की टहनियां तोड़कर बैठने योग्य जगह बनायी. वृक्ष के नीचे एक शिवलिंग था, जो सूखी पत्तियों में दबा हुआ था. शिकारी ने अनजाने में तोड़ी हुई टहनियां उसी शिवलिंग पर फेंका था. देर रात एक हिरण तालाब में पानी पीने आई.

खुश होकर शिकारी ने अपने धनुष की प्रत्यंचा खींची, तब हिरण बोली, मैं गर्भवती हूं, तुम एक साथ दो जीव की हत्या का पाप मत लो, बच्चे को जन्म देकर मैं आऊंगी, तब मुझे मार देना. शिकारी ने उसकी बात मान ली. लेकिन प्रत्यंचा चढाने के प्रयास में वृक्ष के कुछ पत्ते शिवलिंग पर पुनः गिरे, इस तरह पहले प्रहर का व्रत एवं शिव पूजन सम्पन्न हो गया. इसके बाद दूसरे और तीसरे प्रहर में हिरणियां आयीं, सभी पुनः वापस लौटने की बात कहकर घर चली गईं. शिकारी ने सभी को जीवन दान दे दिया.

व्याकुल शिकारी हर बार वृक्ष की पत्तियां तोड़-तोड़ कर नीचे फेंकता रहा. जैसे ही सूर्योदय हुुआ एक और मृग वहां आया, लेकिन शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग बोला -हे शिकारी! यदि तुमने मुझसे पहले यहां आनेवाली तीनों हिरणों को मार दिया है, तो मुझे भी मार दो, ताकि मुझे उनका वियोग न सहना पड़े, मैं उनका पति हूं. यदि तुमने उन्हें छोड़ दिया है तो कुछ क्षण मुझे भी दे दो, उनसे मिलकर मैं वापस आ जाऊंगा. शिकारी ने रातभर की कहानी मृग को सुनाई, मृग ने कहा, "मेरी तीनों पत्नियां मेरी मृत्यु से अपना धर्म नहीं निभा पाएंगी, अतः मैं उनसे मिलकर तुरंत वापस आ जाऊंगा. शिकारी ने उसे भी जाने दिया. इस तरह सुबह हो गई. उपवास, रात्रि-जागरण एवं शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से शिकारी की शिवरात्रि की पूजा सम्पन्न हो गई.

इसी समय मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष आ गया, किंतु जंगली पशुओं की सच्चाई, सात्विकता एवं प्रेमभावना देखकर शिकारी ने मृग परिवार को छोड़ दिया. अनजाने में शिवरात्रि का व्रत-पूजा करने से शिकारी को मोक्ष की प्राप्ति हुई. आयु पूरी होने पर जब यमदूत उसके पास आए तो शिवगणों ने उन्हें वापस भेजकर शिकारी को शिवलोक ले गए.