Maharana Pratap Jayanti 2021: आज भी रहस्य है कौन हारा कौन जीता हल्दी-घाटी-युद्ध! मगर अकबर ने माना महाराणा प्रताप का लोहा!

इतिहास के पन्नों में दर्ज हल्दी-घाटी के खूनी युद्ध की विभीषिका आज भी रौंगटे खड़े कर देती है. मध्यकालीन इतिहास के सबसे चर्चित हल्दी घाटी मैदान में हुए युद्ध में भयंकर रक्तपात हुआ था. इतिहासकारों की मानें तो हजारों की संख्या में मुगल और मेवाड़ी सैनिकों की मौत से हल्दी घाटी का मैदान रक्त से नहा उठा उठा था.

महाराणा प्रताप जयंती 2021 (Photo Credits: File Image)

Maharana Pratap Jayanti 2021: इतिहास के पन्नों में दर्ज हल्दी-घाटी के खूनी युद्ध की विभीषिका आज भी रौंगटे खड़े कर देती है. मध्यकालीन इतिहास के सबसे चर्चित हल्दी घाटी मैदान में हुए युद्ध में भयंकर रक्तपात हुआ था. इतिहासकारों की मानें तो हजारों की संख्या में मुगल और मेवाड़ी सैनिकों की मौत से हल्दी घाटी का मैदान रक्त से नहा उठा उठा था. इस युद्ध में किसे विजय मिली और किसे हार, यह आज भी प्रमाणिक नहीं है. लेकिन इस सत्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि महज 15 हजार सेना के नायक महाराणा प्रताप पर 85 हजार सैनिकों और अत्याधुनिक हथियारों से सुसज्ज होकर भी अकबर महाराणा प्रताप को गिरफ्तार नहीं कर सका था. बादशाह अकबर ने एक लिखित शोक-संदेश में स्वीकारा था कि उसका सामना बेमिशाल शूरवीर योद्धाओं से हुआ, लेकिन भारत ही नहीं पूरी पृथ्वी पर महाराणा प्रताप से ज्यादा शक्तिशाली योद्धा उसने नहीं देखा. यह भी पढ़े: Maharana Pratap Jayanti 2021: मेवाड़ का शूरवीर योद्धा! कौन था महाराणा प्रताप का परमप्रिय राम प्रसाद? जानें उनके शौर्य के किस्से!

हल्दी घाटी युद्ध का रोमांच! युद्ध में भारी थे राजपूत मगर...

15 जून 1576.... गोगुंडा के निकट अरावली की पहाड़ियों की हल्दीघाटी शाखा में 20 हजार सेना के साथ चेतक पर सवार राणा प्रताप थे, तो सामने 80 हजार मुगल सेना के साथ मानसिंह एवं आसफ खान थे. देखते ही देखते भयंकर युद्ध शुरू हो गया. संख्या और साधन में सीमित महाराणा प्रताप की सेना अकबर की विशाल सेना के सामने कुछ भी नहीं थी, लेकिनी राणा प्रताप की गुरिल्ला युद्ध शैली, जांबाज एवं जुझारू राजपूती सेना के सामने मुगल सेना ज्यादा देर टिक नहीं सके, हताश होकर मुगल सेना 5 किमी पीछे हट गई. यह क्षेत्र ‘तलाई’ कहलाता था. यहां दोनों सेना के बीच पांच घंटे तक घमासान युद्ध हुआ. पलक झपकते 18 हज़ार सैनिक मारे गए. इतना रक्त बहा कि इसे ‘रक्त तलाई’ कहा जाने लगा.

चेतक पर सवार राणा प्रताप बिजली की गति से पूरे मैदान में चक्कर लगाते हुए मुगलों को काटते जा रहे थे. तभी सामने हाथी पर सवार मानसिंह दिखा. उसकी हाथी के सूंड़ में तलवार बंधी थी. राणा प्रताप ने चेतक को एड़ लगाई, चेतक सीधा हाथी के मस्तक पर चढ़ गया. मानसिंह हौदे में छिप गया. राणा के वार से महावत मारा गया, लेकिन उतरते समय चेतक का एक पैर सूंड़ में बंधी तलवार से कट गया. चेतक के घायल होते ही मुगल सैनिकों ने राणा को घेर लिया. यह देख सादड़ी सरदार झाला माना सिंह ने राणा की पगड़ी और छत्र जबरन धारणकर चेतक को वहां से निकलने का अवसर दिया. चेतक ने चोट की परवाह किये बिना 28 फिट गहरे नाले को छलांग लगाकर अपने मालिक को तो बचा लिया लेकिन कटे पैरों के कारण वह वहीं गिरा और उसकी मृत्यु हो गयी.

'क्या महाराणा प्रताप ने जीता था युद्ध?'

उदयपुर के राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के एक शोध के अनुसार 18 जून 1576 को हुए हल्दीघाटी के युद्ध में राणा प्रताप ने अकबर को युद्ध में हराया था. शोधकर्ता की खोज के अनुसार हल्दी घाटी की युद्ध के पश्चात महाराणा प्रताप ने हल्दी-घाटी के आसपास की जमीन के पट्टे ताम्र-पत्र के रूप में बांटे थे. इन पट्टों पर एकलिंगनाथ के दीवान प्रताप के हस्ताक्षर थे. उन दिनों जमीनों के पट्टे जारी करने का अधिकार सिर्फ राजा को होता था. राजा द्वारा चुने दीवान ही पट्टे पर हस्ताक्षर करते थे, जो आधिकारिक रूप से मान्य होता था.

युद्ध के बाद अपने प्रिय सेनापतियों से अकबर क्यों नाराज था?

उपयुक्त शोध में यह बात भी उजागर हुई कि हल्दी-घाटी युद्ध समाप्त होने के बाद अपने सबसे प्रिय सेनापति मान सिंह और आसिफ खां के युद्ध हारने से अकबर उनसे बेहद नाराज थे. उपयुक्त शोध के अनुसार दोनों ही सेनापति को छह माह तक राज दरबार में कदम नहीं रखने की हिदायत दी गई थी, क्योंकि कोई भी युद्ध जीतने पर अकबर सेनापति और सेना को पुरस्कृत करता था. अगर मानसिंह और आसिफ खां युद्ध जीतते तो अकबर उन्हें राज दरबार में कदम नहीं रखने की सजा क्यों देता?. इससे लगता है कि हल्दीघाटी युद्ध महाराणा प्रताप ने ही जीती थी.

युद्ध में भारी थे राजपूत मगर!

हल्दी-घाटी के युद्ध और उसके निष्कर्ष को लेकर अकसर शोधार्थियों एवं इतिहासकारों में तर्क-कुतर्क होता रहता है. मिला-जुला निष्कर्ष यही है कि चार दिन तक चले इस युद्ध में सेना और तोपों की संख्या कम होते हुए भी महाराणा प्रताप की बहादुर सेना अकबर की भारी भरकम सेना और जंगी तोपों पर भारी पड़ी थी. क्योंकि महाराणा प्रताप रोज नई-नई तकनीक औऱ कूटनीति के साथ मुगल सेना पर आक्रमण करते थे, लेकिन इस युद्ध परिवार के भीतरघात के कारण मुगलों ने मेवाड़, चित्तौड़, कुंभलगढ़ और उदयपुर पर कब्जा कर लिया था. राजपूत राजाओं ने राणा प्रताप को अकेला छोड़कर अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली थी, और राणा प्रताप एक बार पुनः अपनी सेना तैयार करने में जुट गये थे. यह इस बात का भी संकेत हो सकता है कि हल्दीघाटी युद्ध में मुगल विजयी तो हुए, मगर महाराणा प्रताप को वे गिरफ्तार नहीं कर सके थे.

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