Maha Shivratri 2020: महाशिवरात्रि (Maha Shivratri) देश के आध्यात्मिक पर्वों में सबसे महत्वपूर्ण है. मान्यता है कि साल के सबसे अंधेरी रात को महाशिवरात्रि का पर्व सेलीब्रेट किया जाता है. हमारे पौराणिक ग्रंथों में भगवान शिव (Lord Shiva) को आदि गुरु अथवा प्रथम गुरू भी बताया गया है और कहा जाता है कि उन्हीं से योग परंपरा की शुरुआत हुई थी. महाशिवरात्रि (Maha Shivratri Date) की रात को ग्रहों की स्थिति ऐसी होती है कि ये मानव शरीर से ऊर्जा को शक्तिशाली ढंग से ऊपर की ओर ले जाती है. ज्योतिषाचार्यों का मानना है कि इस महारात्रि को रीढ़ को सीधा रखते हुए जागृत और सतर्क रहना हमारी दैहिक एवं आध्यात्मिक खुशहाली के लिए बहुत लाभकारी होता है. आइये जानें शिवरात्रि का महत्व (Maha Shivratri Significance), पूजा विधि (Puja Vidhi), शिव-मंत्र (Shiv Mantra) एवं शिवरात्रि से संबंधित प्रचलित कथाएं..
क्यों मनाते हैं शिवजी का यह महापर्व
प्रत्येक हिंदी मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी के दिन शिवरात्रि का पर्व पड़ता है, जबकि फाल्गुन मास की कृष्णपक्ष की चतुर्दशी के दिन महाशिवरात्रि का पर्व पड़ता है. महाशिवरात्रि पर्व को लेकर अलग-अलग विद्वानें की अलग-अलग मत हैं. कुछ विद्वान मानते हैं कि इसी दिन भगवान शिव और देवी पार्वती परिणय सूत्र में बंधे थे, जबकि कुछ विद्वानों का मानना है है कि आज के ही दिन भगवान शिव ने ‘कालकूट’ नामक विष का पान किया था, जो सागरमंथन के समय समुद्र से निकला था. इस पर्व के संदर्भ में शास्त्रों में उल्लेखित है कि महाशिवरात्रि त्रयोदशी युक्त चतुर्दशी को ही मनानी चाहिए, क्योंकि यही सबसे शुभ समय होता है.
शिवरात्रि (2020) की तिथि एवं पूजा मुहूर्त
21 फरवरी (शुक्रवार) सायंकाल 05.20 मिनट से प्रारंभ,
22 फरवरी (शनिवार) सायंकाल 07.02 बजे तक.
रात्रि प्रहर की पूजा शाम को 6 बजकर 41 मिनट से रात 12 बजकर 52 मिनट तक होगी.
महाशिवरात्रि की पूजा
प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-ध्यान कर शिवरात्रि का व्रत रखने का संकल्प लें. शिव मंत्र (ऊं नम: शिवाय) का जाप करें. शिवपुराण में इस दिन चारों प्रहर में शिवजी के पूजा का विधान है. सायंकाल के समय पुनः स्नान करके शिव मंदिर जाकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह करके त्रिपुंड एवं रुद्राक्ष धारण करके शिवजी की पूजा का संकल्प लें और इस मंत्र को पढ़ें.
'ममाखिलपापक्षयपूर्वकसलाभीष्टसिद्धये शिवप्रीत्यर्थं च शिवपूजनमहं करिष्ये'
उपवासी व्यक्ति फल, सफेद फूल, चंदन, बिल्व पत्र, धतूरा, धूप एवं दीप से रात्रि के चारों प्रहर में शिवजी की पूजा करें साथ ही भोग भी लगाएं. दूध, दही, घी, शहद और शक्कर को मिलाकर पंचामृत से शिवलिंग को स्नान कराकर जल से अभिषेक करें. चारों प्रहर की पूजा में शिवपंचाक्षर मंत्र यानी ‘ऊं नम: शिवाय’ का जाप अवश्य करें. भव, शर्व, रुद्र, पशुपति, उग्र, महान, भीम और ईशान, इन आठ नामों से फूल अर्पित कर भगवान शिव की आरती और परिक्रमा करें. यह भी पढ़ें: Shivratri Vrat In Year 2020: मासिक शिवरात्रि का व्रत रखने से भगवान शिव होते हैं भक्तों पर प्रसन्न, जानें साल 2020 में कब-कब पड़ रही है यह तिथि
कालकूट कथा
अमृत प्राप्त करने के लिए देवों और राक्षसों के बीच समुद्र मंथन हुआ. मगर समुद्र से अमृत निकलने से पहले कालकूट नामक विष भी सागर से निकला. ये विष इतना खतरनाक था कि इससे पूरा ब्रह्मांड जलकर नष्ट हो सकता था. मगर इस विष को केवल भगवान शिव ही नष्ट कर सकते थे. देवी-देवताओं द्वारा भगवान शिव की पूजा-अर्चना कर उनसे इस संकट से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की. तब भगवान शिव ने कालकूट नामक विष को अपने कंठ में रख लिया. इससे उनका कंठ नीला हो गया. इसके बाद से ही उनका नाम नीलकंठ भी पड़ गया. मान्यता है कि भगवान शिव द्वारा विष पीकर पूरे संसार को इससे बचाने की इस घटना के उपलक्ष में ही महाशिवरात्रि मनाई जाती है.
गरुड़ पुराण में उल्लेखित कथा
एक दिन एक शिकारी शिवरात्रि के दिन अपने कुत्ते के साथ शिकार खेलने निकला, किन्तु उसे कोई शिकार नहीं मिला. वह भूख-प्यास से परेशान हो एक तालाब के किनारे गया, जहां बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था. अपने शरीर को आराम देने के लिए उसने कुछ बिल्व-पत्र तोड़े, जो शिवलिंग पर भी गिर गए. अपने पैरों को साफ करने के लिए उसने पैरों पर तालाब का जल छिड़का, जिसकी कुछ बून्दें शिवलिंग पर भी जा गिरीं. ऐसा करते समय उसका एक तीर नीचे गिर गया, जिसे उठाने के लिए वह शिव लिंग के सामने नीचे झुका. इस तरह शिवरात्रि के दिन शिव-पूजन की पूरी प्रक्रिया उसने अनजाने में ही पूरी कर ली. मृत्यु के बाद जब यमदूत उसे लेने आए, तो शिव के गणों ने उसकी रक्षा की और उन्हें भगा दिया. कथा का सार यह है कि जब अनजाने में महाशिवरात्रि के दिन भगवान शंकर की पूजा का इतना अद्भुत फल है, तो समझ-बूझ कर देवाधिदेव महादेव का पूजन कितना अधिक फलदायी होगा.