Maha Shivratri 2019: भगवान शिव संहारक ही नहीं पारिवारिक भी हैं, जानिए कैसे?
महेश यानि शिव जी को संहारक बताया गया है, लेकिन शिव यानी शंकर जी का एक पहलू उनका पारिवारिक होना भी है. शिव संहार करके नई सृष्टि के निर्माण की आधार भूमि तैयार करते हैं.
Maha Shivratri 2019: हमारे अधिकांश पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, सृष्टि के निर्माण में ब्रह्मा जी (Brahma) को सृष्टि का रचयिता, विष्णु जी (Vishnu) को पालनहार और महेश (Mahesh) यानि शिव जी (Shiv ji) को संहारक (Destroyer) बताया गया है, लेकिन शिव यानी शंकर जी का एक पहलू उनका पारिवारिक होना भी है. कुंवारी कन्याएं सुंदर और योग्य पति के लिए शिव जी की कामना करती हैं, तो पत्नी पति के दीर्घायु के लिए भी शिव जी को ही याद करती हैं. ऐसे कई किस्से कई कथाएं हमारे ग्रंथों में दर्ज हैं, जो शिव जी के पारिवारिक पहलु को चरितार्थ करती हैं.. आइए जानें शिव जी के इस रूप के बारे में भी...
त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) में एक हैं भगवान शिव (Lord Shiva), इसके साथ ही वह महादेव और आदिदेव भी हैं. ब्रह्मा सृष्टि के निर्माता हैं, विष्णु उसका पालन करते हैं और महेश यानी शिव संहार करके नई सृष्टि के निर्माण की आधार भूमि तैयार करते हैं. इस कार्य के अनुरूप ही वह अपने शरीर पर ताजी चिता की भस्म मलते हैं, गले में सर्पों की माला पहनते हैं, धतूरे का सेवन करते हैं और कैलाश पर्वत पर बिना किसी महल के खुले में विचरण करते हैं, परन्तु शिव जी का यह केवल एक रूप है. शिव का पहला रूप उनके दूसरे रूप से मेल नहीं खाता. यह भी पढ़ें: Maha Shivratri 2019: जब भगवान शिव ने मगरमच्छ बनकर ली थी मां पार्वती की परीक्षा, जानिए इससे जुड़ी यह दिलचस्प पौराणिक कथा
वह गौर वर्ण के हैं. उनके मस्तक पर पतित पावनी निर्मल गंगा विराजमान हैं. भाल पर शीतल चंद्रमा सुशोभित है. माता पार्वती उनकी अर्धांगिनी हैं. वे सर्वशक्तिशाली है. उनकी क्षमता असीमित और अनंत है. समुद्र मंथन में जब विष निकला तो उसकी गर्मी से पूरे ब्रह्माँड के लोग थर-थर कांपने लगे. कोई समझ नहीं पा रहा था कि उस विष से छुटकारा कैसे मिले. अंततः देवताओं और असुरों ने शिव जी को याद किया. सुर एवं असुरों की त्रहिमाम सुनकर शिव दौड़े-दौड़े आए. उन्होंने विष को गले में धारण कर लिया. उसी दिन से उन्हें एक और नाम ‘नीलकंठ’ मिला.
लेकिन शिव बहुत जल्दी क्रोधित हो जाते हैं. कामदेव ने उनके तप में बाधा डालने का प्रयास किया तो उन्हें भस्म कर दिया. उनके सुपुत्र गणेश जी ने उनसे अशिष्टता करने की कोशिश की तो उनका सिर धड़ से अलग कर दिया. इसके बावजूद वह आशुतोष भी हैं, जो अपने भक्तों पर अतिशीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं. पुत्र का सिर कट जाने के बाद जब माता पार्वती विलाप करने लगीं तो शिव जी ने पति धर्म का निर्वहन करते हुए पुत्र के सिर पर हाथी का सिर जोड़कर उसे जीवित कर दिया. कामदेव की पत्नी रति का करुण क्रंदन भी वह सहन नहीं कर सके, तत्काल कामदेव को ‘अनंग’ के रूप में पुनर्जीवित कर दिया. इस तरह श्रृष्टि के संहारक ने कई बार जीवनदाता की भूमिका भी निभाई.
आशुतोष होने के साथ ही शिव भोले भंडारी भी हैं. दिन भर के भूखे प्यासे एक शिकारी को जब जंगल में शिकार नहीं मिला तो उसने वहीं एक वृक्ष पर रात गुजारने की सोची. एक शिवलिंग को साधारण पत्थर समझकर वह उसी पर पैर रखकर वृक्ष पर चढ़ गया. भूखे प्यासे को भला नींद कैसे आती, इसलिए वह रात भर जागकर वृक्ष के पत्ते तोड़-तोड़ कर नीचे गिराता रहा, जो अनजाने में शिवलिंग पर गिरते रहे. संयोगवश उस दिन शिवरात्रि थी. बस भोले भंडारी इसी से प्रसन्न हो गए. शिव लिंग पर पैर रखने को उन्होंने इस रूप में लिया कि उस भक्त ने तो अपना सम्पूर्ण शरीर ही शिवलिंग पर चढ़ा दिया. बस भगवान शिव ने उस शिकारी को दर्शन देकर उसके सारे संकट हर लिए. यह भी पढ़ें: Maha Shivratri 2019: 4 मार्च को मनाया जाएगा महाशिवरात्रि का पर्व, जानें क्यों 'चंदन' और 'चिताभस्म' है भगवान शिव का प्रिय परिधान?
भगवान शिव के परिजनों के वाहनों में भी बड़ा विरोधाभास है. उनका वाहन बैल है, तो पत्नी पार्वती का वाहन सिंह है. बड़े पुत्र कार्तिकेय का वाहन मोर है जबकि भारी भरकम देययष्टि वाले श्री गणेश जी नन्हें चूहे पर सवारी करते हैं. यानी सारे वाहन एक दूसरे के पारंपरिक दुश्मन माने जाते हैं. इसके बावजूद परिवार में बहुत सामंजस्य है. सफल पारिवारिक जीवन में शिव जी का स्थान सर्वोपरि है.
शिव जी आदि कलाकार भी हैं. उन्होंने ही विभिन्न कलाओं को जन्म दिया. संगीत और नृत्य उनकी डमरू की देन है. तांडव नृत्य तो उनका है ही. इसलिए शिव जी की प्रतिमा सभी कलाकारों के लिए प्रेरणादायी मानी जाती है.