National Mathematics Day 2020: दुनिया भर में तमाम लोग ऐसे हैं, जिन्हें गणित से डर लगता है, लेकिन सच पूछिए तो यह विज्ञान की वो विधा है, जो समझ में आने के बाद खेल सी बन जाती है. गणित की शुरुआत 'शून्य' से होती है, जो भारत ने दिया और साथ में दिये ब्रह्मगुप्त, आर्यभट्ट तथा श्रीनिवास रामानुजन (Srinivasa Ramanujan) जैसे विश्वविख्यात गणितज्ञ, जिन्होंने भारत में गणित के विभिन्न सूत्रों, प्रमेयों और सिद्धांतों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इन्हीं में से एक रामानुजन के जन्म दिवस यानी 22 दिसम्बर को हम राष्ट्रीय गणित दिवस (National Mathematics Day) मनाते हैं. इस दिवस को मनाने की शुरुआत 2011 में पूर्व प्रधानमत्री डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में हुई. और तब से हम प्रतिवर्ष 22 दिसम्बर को ‘राष्ट्रीय गणित दिवस’ मनाते आ रहे हैं.
26 दिसम्बर 2011 को तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने चेन्नई में आयोजित श्रीनिवास रामानुजन की 125वीं जयंती समारोह में उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर देश में योग्य गणितज्ञों की संख्या कम होने पर चिंता जताते हुए कहा था कि श्रीनिवास रामानुजन की असाधारण प्रतिभा ने पिछली सदी के दूसरे दशक में गणित की दुनिया को एक नया आयाम दिया. गणित में रामानुजन के अविस्मरणीय योगदान को याद रखने और सम्मान देने के लिए रामानुजन के जन्मदिन पर प्रतिवर्ष 22 दिसम्बर को ‘राष्ट्रीय गणित दिवस’ मनाए जाने का निर्णय लिया गया, साथ ही वर्ष 2012 को राष्ट्रीय गणित वर्ष भी घोषित किया गया था.
रामानुजन के जीवन से जुड़ी खास बातें रामानुजन ने गणितीय विश्लेषण, अनंत श्रृंखला, संख्या सिद्धांत तथा निरंतर भिन्न अंशों के लिए आश्चर्यजनक योगदान दिया और अनेक समीकरण व सूत्र भी पेश किए. वे ऐसे विश्वविख्यात गणितज्ञ थे, जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों और विषय गणित की शाखाओं में अविस्मरणीय योगदान दिया और जिनके प्रयासों तथा योगदान ने गणित को एक नया अर्थ दिया. उनके द्वारा की गई खोज ‘रामानुजन थीटा’ तथा ‘रामानुजन प्राइम’ ने इस विषय पर आगे के शोध और विकास के लिए दुनियाभर के शोधकर्ताओं को प्रेरित किया.
22 दिसम्बर 1887 को मद्रास से करीब चार सौ किमी दूर तमिलनाडु के ईरोड शहर में जन्मे श्रीनिवास अयंगर रामानुजन का बचपन कठिनाइयों और निर्धनता के दौर में बीता था. तीन वर्ष की आयु तक वह बोलना भी नहीं सीख पाए थे और तब परिवार के लोगों को चिंता होने लगी थी कि कहीं वह गूंगे न हों लेकिन कौन जानता था कि यही बालक गणित के क्षेत्र में इतना महान कार्य करेगा कि सदियों तक दुनिया उन्हें आदर-सम्मान के साथ याद रखेगी. उनका बचपन इतने अभावों में बीता कि वे स्कूल में किताबें अक्सर अपने मित्रों से मांगकर पढ़ा करते थे. उन्हें गणित में इतनी दिलचस्पी थी कि गणित में उन्हें प्रायः सौ फीसदी अंक मिलते थे लेकिन बाकी विषयों में बामुश्किल ही परीक्षा उत्तीर्ण कर पाते थे क्योंकि गणित के अलावा उनका मन दूसरे विषयों में नहीं लगता था.
10 वर्ष की आयु में प्राइमरी की परीक्षा में उन्होंने पूरे जिले में गणित में सर्वोच्च अंक प्राप्त किए थे. 12 वर्ष की आयु में त्रिकोणमिति सीख ली थी रामानुजन को गणित का इतना शौक था कि 12 वर्ष की आयु में ही उन्होंने त्रिकोणमिति में महारत हासिल कर ली थी और बगैर किसी की मदद के अपने दिमाग से कई प्रमेय विकसित किए. उन्होंने कभी गणित में किसी तरह का प्रशिक्षण नहीं लिया था. स्कूली दिनों में उन्हें उनकी प्रतिभा के लिए अनेक योग्यता प्रमाणपत्र तथा अकादमिक पुरस्कार प्राप्त हुए.
गणित में उनके अतुलनीय योगदान के लिए उन्हें वर्ष 1904 में के. रंगनाथ राव पुरस्कार भी दिया गया था. कुंभकोणम के गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज में अध्ययन करने के लिए उन्हें छात्रवृत्ति से सम्मानित किया गया था किन्तु उनका गणित प्रेम इतना बढ़ गया था कि उन्होंने दूसरे विषयों पर ध्यान देना ही छोड़ दिया था. दूसरे विषयों की कक्षाओं में भी वे गणित के ही प्रश्नों को हल किया करते थे. नतीजा यह हुआ कि 11वीं कक्षा की परीक्षा में वे गणित के अलावा दूसरे सभी विषयों में अनुत्तीर्ण हो गए और इस कारण उन्हें मिलने वाली छात्रवृत्ति बंद हो गई. परिवार की आर्थिक हालत पहले ही ठीक नहीं थी.