Guru Nanak Jayanti 2020: गुरु नानक देव जी ने कब किया था इस पवित्र शब्द का उच्चारण? जानिए गुरुद्वारा बेर साहिब का महत्व

सिखों के प्रथम गुरु गुरु नानक देव की जयंती पूर दुनिया में मनायी जा रही है. गुरु नानक के जन्मदिन को प्रकाश पर्व के रूप में भी मनाया जाता है. उनके अनुयायी उन्हें नानक, नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह नामों से संबोधित करते हैं.

गुरु नानक देव (Photo Credits: File Photo)

351th Prakash Parv: सिखों के प्रथम गुरु गुरु नानक देव की जयंती पूर दुनिया में मनायी जा रही है. गुरु नानक के जन्मदिन को प्रकाश पर्व के रूप में भी मनाया जाता है. उनके अनुयायी उन्हें नानक, नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह नामों से संबोधित करते हैं. कहा जाता है कि गुरु नानक देव का जन्म रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी (जो अब पाकिस्तान में है) नामक गाँव में कार्तिकी पूर्णिमा को हुआ था. कुछ लोग 15 अप्रैल, 1469 को उनकी जन्‍मतिथि मानते हैं, लेकन प्रचलित तिथि कार्तिक पूर्णिमा ही है, जो दीवाली के 15 दिन बाद पड़ती है. गुरु नानक देव की जयंती के पावन अवसर पर आइये एक नज़र डालते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ घटनाओं पर:

गुरु के दर्शन से क्या लाभ होता है?

सिखों के प्रथम गुरु नानक देव जी से एकबार किसी ने पूछा कि गुरु के दर्शन से क्या लाभ होता है? गुरु नानक ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया कि इसी रास्ते पर चले जाओ और रास्ते में तुम्हें सबसे पहले जो भी मिले, उससे अपने इस प्रश्न का जवाब पूछ लेना. गुरु नानक की आज्ञा पाकर वह व्यक्ति उस रास्ते पर आगे बढ़ लिया. थोड़ा आगे जाने पर उसे सबसे पहले एक कौआ नजर आया.

गुरु नानक की आज्ञानुसार उसने कौवे से अपने प्रश्न का उत्तर पूछा लेकिन यह क्या? प्रश्न पूछते ही कौवे ने वहीं दम तोड़ दिया. यह दृश्य देख वह व्यक्ति दौड़ा-दौड़ा वापस गुरु नानक देव के पास पहुंचा और सारा हाल कह सुनाया. उसके बाद गुरु नानक ने कहा कि अमुक घर में एक गाय ने बछड़े को जन्म दिया है, तुम जाकर उससे अपने सवाल का जवाब पूछो. इसबार भी वह व्यक्ति जैसे ही वहां पहुंचा और बछड़े से अपना सवाल किया, वह भी तुरंत मर गया. घबराया हुआ वह व्यक्ति फिर से दौड़ा-दौड़ा गुरु नानक देव के पास पहुंचा और घटना की जानकारी दी.

अबकी बार गुरु नानक जी ने उसे कहा कि तुम फलां घर में जाओ, जहां अभी-अभी एक बच्चे ने जन्म लिया है. तब उस व्यक्ति जी गुरु नानक से ही सवाल किया कि अगर मेरे सवाल पूछते ही वह नवजात शिशु भी मर गया तो?

गुरु नानक ने कहा कि तुम वहां जाकर बच्चे से सवाल करके तो देखो, तुम्हारे सवाल का जवाब तुम्हें वहीं मिलेगा.'' गुरु जी के आदेश पर वह व्यक्ति इसबार उनके बताए स्थान पर पहुंचा. वहां उस वक्त बच्चे के आसपास कोई नहीं था. अवसर पाकर उस व्यक्ति ने उससे अपना वही सवाल दोहराया तो बच्चे ने गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए उत्तर दिया कि मैंने स्वयं तो कभी गुरु के दर्शन नहीं किए लेकिन तुम जब पहली बार गुरु जी के दर्शन करके मेरे पास आए तो मुझे कौवे की योनि से मुक्ति मिली तथा बछड़े का जन्म मिला और जब तुम दूसरी बार गुरु के दर्शन करके मेरे पास आए तो मुझे बछड़े से इंसान का जन्म मिला. इसलिए इतना बड़ा हो सकता है गुरु के दर्शन करने का फल, फिर चाहे गुरु के दर्शन आंतरिक हों या बाहरी.

12 वर्ष की आयु में गरीबों को कराया भोजन

गुरु नानक जब 12 वर्ष के थे तो उनके पिता ने उन्हें 20 रुपये देते हुए अपना व्यापर शुरू करने को कहा ताकि वे व्यापार के विषय में कुछ जान सकें. व्यापार के लिए पिताजी द्वारा दिए गए वही 20 रुपये नानक ने गरीबों और संतों को खाना खिलाने में खर्च कर दिए. जब पिताजी ने उनके घर लौटने पर उनसे पूछा कि तुम्हारे व्यापार का क्या रहा तो नानक ने उत्तर दिया कि मैंने आपके दिए उन 20 रुपयों से सच्चा सौदा कर लिया. नानक ने जिस स्थान पर उन पैसों से गरीबों व संतों को खाना खिलाया था, वहीं पर 'सच्चा सौदा' नाम का गुरुद्वारा स्थित है.

एक ओंकार सतनाम' शब्द का उच्चारण

एकबार गुरु नानक अपने मित्र और परम प्रिय शिष्य मरदाना के साथ कपूरथला के सुल्तानपुर लोधी में वैन नदी के किनारे बैठे थे. अचानक उन्होंने नदी में डुबकी लगा दी और तीन दिनों तक लापता हो गए. लोगों ने सोचा कि गुरु नानक अब नहीं रहे और उन्हें नदी में डूबा हुआ समझकर सभी अपने-अपने घर लौटने की तैयारी कर रहे थे कि तभी तीन लंबे अंतराल के बाद गुरु नानक अचानक नदी से बाहर निकले और उन्होंने 'एक ओंकार सतनाम' शब्द का उच्चारण किया. कहा जाता है कि गुरु नानक ने वहीं पर ईश्वर से साक्षात्कार किया था. नदी से बाहर आने के बाद गुरु नानक ने वहीं पर एक बेर का बीज बोया, उसी बेर का बीज फलकर आज बेर के एक बहुत बड़े वृक्ष का रूप धारण कर चुका है. उसी स्थान पर अब 'गुरुद्वारा बेर साहिब' स्थित है.

कैसे पड़ा रीठा साहिब गुरुद्वारा

उत्तराखण्ड में चम्पावत जिले के पाटी विकास खंड में लधिया और रतिया नदी के संगम पर स्थित है 'रीठा साहिब गुरुद्वारा', जो चम्पावत से करीब 72 किलोमीटर दूर स्थित है. रीठा साहिब गुरुद्वारा को सिखों का प्रमुख तीर्थ स्थल माना जाता है, जहां हर साल मई-जून माह में जोड़ मेला लगता है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं.

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