Global Day of Parents 2020: मनुष्य सामाजिक प्राणी है और यही मनुष्य की पूरी जिन्दगी को रिश्तों की डोर में बांधता है. रिश्तों को सहेजने और आधुनिकता के भागदौड़ में रिश्तों के महत्व को समझाने के लिए हर साल 1 जून को विश्व अभिभावक दिवस मनाया जाता है. 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अभिभावकों के लिए वैश्विक दिवस घोषित किया.दुनियाभर में माता-पिता को सम्मानित करने के लिए 1 जून को विश्व अभिभावक दिवस आयोजित किया जाता है.
पेरेंट्स डे की शुरुआत सबसे पहले अमेरिका में 1994 से हुई थी.जिसके बाद से हर साल दुनिया के अन्य देशों में भी माता-पिता को सम्मान देने वाला अभिभावक दिवस मनाया जाने लगा. मालूम हो कि भारत और अमेरिका में जुलाई के आखिरी रविवार को अभिभावक दिवस मनाया जाता है. यह भी पढ़े: ग्लोबल डेवलपमेंट लक्ष्यों को हासिल करने के लिए पर्याप्त नहीं है वर्ल्ड पॉवर सप्लाई
अभिभावक यानी माता-पिता की अहमियत
इस दुनिया में हम भगवान को नहीं देख सकते, लेकिन हमारे पास माता-पिता हैं, जिनका दर्जा भगवान से ऊपर रखा गया है. आज हर एक व्यक्ति की पहचान में उसके माता-पिता का अहम योगदान है. माता-पिता बनना एक सार्वभौमिक अनुभवों में से एक है, लेकिन यह जितना दिखता है उतना आसान नहीं है. बच्चे के जन्म लेने के बाद ही नहीं, बल्कि उससे पहले से ही माता-पिता न जानें कितनी ही चुनौतियों का सामना करते हैं. प्राचीन काल से माता-पिता और बड़ों का सम्मान करना हमारी संस्कृति रही है.
इसलिए अभिभावक दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य माता-पिता द्वारा बच्चों के जीवन में प्रतिबद्धता, पालन पोषण और पहचान बनाने में विशेष भूमिका को सम्मानित करना होता है, जिससे दोनों के बीच आपसी प्रेम और तालमेल और भी मजबूत हो. बदलते वक्त के साथ संस्कृति, सभ्यता से समृद्ध हमारे देश में भी काफी कुछ बदलता जा रहा है. आधुनिकता के इस दौर में बच्चे को माता-पिता के साथ वक्त बिताने का भरपूर मौका नहीं मिल पाता. अभिभावक हमारे लिए जो भी निश्वार्थ भाव से करते हैं, उसे एक दिन में पूरा नहीं किया जा सकता लेकिन अभिभावक दिवस के नाते हम आभार प्रकट कर सकते हैं.
कोरोना काल में भावनात्मक रूप से जुड़ें
पूरे विश्व में इन दिनों को कोविड-19 का प्रकोप है, ऐसे में बच्चों को माता-पिता की और माता-पिता को अपने बच्चों के साथ की जरूरत है। इन दिनों बच्चों पर खास ध्यान देने की जरूरत है, जिससे बच्चे की पढ़ाई, स्वास्थ्य और संवेदना को लेकर घर भीअनुकूल रहे। कामकाजी मां-बाप हो या बुजुर्ग, लॉकडाउन के वक्त में बच्चों को भी उनका सहारा बनना चाहिए। पूरी जिन्दगी परिवार और बच्चों के लिए जीने वाले माता-पिता को भावनात्मक सहारे की जरूरत है, जिसका ध्यान रखना हम सबकी प्रमुख जिम्मेदारी है.