गणगौर पूजा 2019: ‘अखंड सौभाग्य’ के लिए सुहागिनें और कुंवारी कन्याएं रखती हैं व्रत, होती है पूरी मनोकामनाएं
इस वर्ष चैत्र तृतीया यानी 8 मार्च को पड़ रहा है. इसीलिए इस दिन कुंवारी लड़कियां तथा विवाहित महिलाएं शिव और पार्वती की पूजा करती हैं. दुर्वा (दूब) से पानी के छींटे देते हुए लोकगीत गाती हैं. कुंवारी लड़कियां जहां मनपसंद वर पाने की कामना के साथ तो विवाहित महिलाएं पति के दीर्घायु की कामना करते हुए शिव-गौरी की पूजा करती हैं.
चैत्र मास की शुक्लपक्ष की तृतीया के दिन गणगौर का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. मान्यता है कि होली के दूसरे दिन माता गौरा (पार्वती) अपने मायके आती हैं. आठ दिन के पश्चात चैत्र तृतीया के दिन गण (शिव जी) उनकी विदाई कराने के लिए आते हैं. गणगौर राजस्थान के प्रमुख पर्वों में से एक होता है, जिसे पूरी श्रद्धा एवं परंपरा के साथ मनाया जाता है. इस वर्ष चैत्र तृतीया यानी 8 मार्च को पड़ रहा है. इसीलिए इस दिन कुंवारी लड़कियां तथा विवाहित महिलाएं शिव और पार्वती की पूजा करती हैं. दुर्वा (दूब) से पानी के छींटे देते हुए लोकगीत गाती हैं. कुंवारी लड़कियां जहां मनपसंद वर पाने की कामना के साथ तो विवाहित महिलाएं पति के दीर्घायु की कामना करते हुए शिव-गौरी की पूजा करती हैं.
पौराणिक कथा
धर्म शास्त्रों के अनुसार माता पार्वती ने शिव जी को पाने के लिए बड़ी कठोर तपस्या की थी. पार्वती की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन देते हुए उनकी मनोकामना पूरी होने का आशीर्वाद दिया था. कहा जाता है कि इसके पश्चात माता पार्वती ने समस्त स्त्री जाति को सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दिया था. किंवदंतियां हैं कि इसके पश्चात से ही इस गणगौर की पूजा की परंपरा शुरु हुई. इस पर्व पर सुहागन महिलाएं जहां अपने सुहाग के लिए तो लड़कियां अच्छे वर की प्राप्ति के लिए पूरी श्रद्धा एवं आस्था के साथ करती हैं.
क्या है पूजा का विधि-विधान
गणगौर की यह पूजा कुंवारी लड़कियां और सुहागन महिलाएं एक साथ करती हैं. प्रातःकाल स्नान-ध्यान के पश्चात महिलाएं लाल रंग के सुंदर वस्त्र पहनती हैं. इसके पश्चात सामूहिक रूप से लड़कियां और महिलाएं पीतल के नये लोटे को अलंकृत करके उसे पास के सरोवर में जाती हैं. लोटे में सरोवर का शुद्ध जल लेकर उसे पुष्प और हरी दूब से सजाकर शिव-पार्वती के लोकगीत गाते हुए अपने-अपने घर लौटती हैं.
घर आकर शुद्ध मिट्टी से ईसर (शिव) और गौरा (पार्वती) की प्रतिमा बनाकर उन्हें सुंदर वस्त्र पहनाती हैं, और उनकी स्थापना करती हैं. इसके पश्चात शिव-पार्वती की धूप, दीप, दूब, पुष्प, चंदन और अक्षत इत्यादि से पूजा करते हुए उन्हें सुहाग की सारी वस्तुएं अर्पित करती हैं. सुहागन महिलाएं यहां माता पार्वती को सिंदूर चढ़ाती हैं, इसके पश्चात उसी सिंदूर को अपनी मांग में लगाती हैं.
‘सुहाग जल’ की है विशेष महत्ता
एक थाली में सर्वप्रथम चांदी की रिंग और सुपारी रखकर उसके ऊपर से शुद्ध जल, कच्चा दूध, दही, कुमकुम और हल्दी डालकर ‘सुहाग जल’ तैयार करते हैं. इसके पश्चात हाथों में चार-छह दूब लेकर उसे ‘सुहाग जल’ में डुबोकर गणगौर पर छींटे लगाती हैं. इसके पश्चात अपने सुहाग की सुरक्षा स्वरूप वही ‘सुहाग जल’ स्वयं पर छिड़कती हैं. इसके पश्चात शिव पार्वती को मीठे चुरमें का भोग लगाकर गणगौर की कथा सुनती हैं.
पुरुषों के लिए प्रसाद वर्जित होता है
बहुत से घरों में शिव-पार्वती की पूजा के बाद गण-गौरी के गीत एवं भजन गाये जाते हैं. शाम के समय गणगौर पर शुद्ध जल का आचमन करके इन्हें किसी नदी अथवा पवित्र सरोवर में विसर्जित किया जाता है. चूंकि यह महिलाओं का पर्व होता है इसलिए इसमें चढ़ाया जाने वाला प्रसाद घर के पुरुषों को नहीं दिया जाता.