Ganeshotsav 2019: अष्टविनायकों में भगवान गणेश का एक स्वरूप है बल्लालेश्वर, पाली स्थित बाप्पा के इस मंदिर में भक्तों की हर मुराद होती है पूरी

महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में मुंबई-पुणे मार्ग पर एक गांव स्थित है, जिसे पाली के नाम से जाना जाता है और अष्टविनायकों में से एक श्री बल्लालेश्वर गणेश जी का निवास इसी स्थान पर माना जाता है. मान्यता है कि जो भी इस मंदिर में आता है वो खाली हाथ वापस नहीं लौटता, क्योंकि बाप्पा उनकी सभी इच्छाएं पूरी करते हैं.

श्री बल्लालेश्वर मंदिर, पाली (Photo Credits: Facebook)

Ganeshotsav 2019: महाराष्ट्र (Maharashtra) समेत पूरे देश में गणेशोत्सव (Ganeshotsav) का त्योहार धूमधाम से मनाया जा रहा है. गणपति बाप्पा (Ganpati Bappa) अपने भक्तों के बीच हैं और भक्त अपने आराध्य की भक्ति-भाव से पूजा-अर्चना कर रहे हैं. गणेशोत्सव के दौरान भक्त कोशिश करते हैं कि वो महाराष्ट्र के अष्टविनायक गणपति (Ashtavinayak) के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त कर सकें, लेकिन अगर आप किसी कारणवश अष्टविनायक के दर्शन नहीं कर पा रहे हैं तो उनकी महिमा के बारे में जरूर जानें. इसी कड़ी में चलिए जानते हैं भगवान गणेश के प्राचीन मंदिरों और अष्टविनायक स्वरूपों में एक स्वरूप श्री बल्लालेश्वर (Shri Ballaleshwar) गणेश जी की महिमा और इस मंदिर में स्थित स्वयंभू गणेश जी से जुड़ी प्रचलित मान्यता.

महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में मुंबई-पुणे मार्ग पर एक गांव स्थित है, जिसे पाली के नाम से जाना जाता है और अष्टविनायकों में से एक श्री बल्लालेश्वर (Ballaleshwar Temple, Pali) गणेश जी का निवास इसी स्थान पर माना जाता है. कहा जाता है कि इस मंदिर में विराजमान बल्लालेश्वर की प्रतिमा इतनी मनमोहक है कि उसके दर्शन करते ही श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो जाते हैं. मान्यता है कि जो भी इस मंदिर में आता है वो खाली हाथ वापस नहीं लौटता, क्योंकि बाप्पा उनकी सभी इच्छाएं पूरी करते हैं. यह भी पढ़ें: Ganeshotsav 2019: अष्टविनायकों में से एक है सिद्धटेक का सिद्धिविनायक मंदिर, सूंड के आधार पर पड़ा था यहां विराजमान बाप्पा का नाम

कैसे पड़ा बाप्पा का बल्लालेश्वर नाम ?

मान्यताओं के अनुसार, कहा जाता है कि ऋषि विश्वामित्र ने भीम को और भृगु ऋषि ने सोमकांस राजा को बल्लालेश्वर गणपति की कथा सुनाई थी. बताया जाता है कि पहले प्राचीन समय में यहां पल्लीपूर नाम का एक नगर हुआ करता था और वहां कल्याण नाम का एक व्यापारी रहता था, उसके घर में बल्लाल नाम के एक पुत्र ने जन्म लिया. बल्लाल बचपन से ही ध्यान और गणेश जी की आराधना में लीन रहने लगा. अध्ययन और व्यापार में उसका मन नहीं लगता था, वह सदैव गणपति बाप्पा की भक्ति करता और दूसरों को भी ऐसा ही करने के लिए कहता. एक दिन कल्याण व्यापारी ने गुस्से में आकर बल्लाल के आराध्य गणेश जी की प्रतिमा को फेंक दिया और बल्लाल को एक पेड़ से बांध दिया.

पेड़ से बंधे बल्लाल ने यह निश्चय कर लिया था कि वो घर नहीं जाएगा और वहीं रहकर गणपति बाप्पा के लिए अपने प्राण त्याग देगा. उसकी इस भक्ति से प्रसन्न होकर गणेश जी ने बल्लाल को दर्शन दिया और उसे वरदान दिया कि वो सदा के लिए इस स्थान पर विराजमान हो जाएंगे. इसके बाद उस स्थान से स्वयंभू गणेश जी की प्रतिमा प्रकट हुई, जिसे बल्लालेश्वर गणपति कहा जाने लगा. यह भी पढ़ें: Ganeshotsav 2019: अष्टविनायक के स्वरूपों में दूसरा है श्री चिंतामणि, जानिए क्यों पड़ा था बाप्पा का ये नाम

स्वयंभू है यहां विराजमान बाप्पा की प्रतिमा

बल्लालेश्वर जी के दर्शन करने के लिए इस मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है, लेकिन बुधवार और चतुर्थी तिथि को यहां हजारों भक्त अपनी मनोकामनाएं लेकर बाप्पा के दर्शन के लिए पहुंचते हैं. यहां विराजमान बल्लालेश्वर भगवान की प्रतिमा स्वयंभू है और माना जाता है कि यह प्राचीन प्रतिमा पाषाण युग से यहां स्थित है. बल्लालेश्वर की प्रतिमा 3 फीट ऊंची है और सूंड बाईं तरफ है.

बहरहाल, बल्लालेश्वर भगवान की मनमोहक प्रतिमा की तरह ही इस मंदिर की रचना भी बेहद खास है. जब सुबह के वक्त सूर्य उदय होता है तब उसकी किरणें सीधे प्रतिमा पर पड़ती हैं. इस मंदिर के दोनों तरफ कुंड बने हुए हैं, जहां भक्त स्नान करने के बाद बाप्पा के दर्शन करते हैं और अपनी मुराद मांगते हैं. यह भक्तों की अटूट आस्था और विश्वास का ही परिणाम है कि यहां आने वाले भक्त कभी निराश होकर खाली हाथ नहीं लौटते, बल्कि अपनी मुरादों की झोली भरकर खुशी-खुशी अपने घर लौटते हैं.

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