Earth Day 2019: धरती की संरक्षा के लिए जरूरी है हर हाथ का साथ, जानें कैसे...
आप सहज कल्पना कर सकते हैं कि जल और वायुविहीन दुनिया में हम कितनी घड़ी सांस ले सकेंगे. अगर इस भयावह घड़ी से हम बचना चाहते हैं तो अपने इस खूबसूरत और संजीवनीयुक्त पृथ्वी की सुरक्षा की जिम्मेदारी हमें ही उठानी होगी. इस ‘पृथ्वी दिवस’ पर हमें अपनी पृथ्वी की सुरक्षा का संकल्प लेना होगा.
कुछ दिन पूर्व 21 मार्च को दुनिया भर में ‘इंटरनेशनल अर्थ डे’ (Earth Day) मनाया गया, और अब 22 अप्रैल को ‘हम विश्व पृथ्वी दिवस’ मना रहे हैं. साल में दो बार पृथ्वी की सुरक्षा को लेकर संवेदना दर्शाने के पीछे क्या औचित्य हो सकता है. इस संदर्भ में पर्यावरणविदों का मानना है कि हम पृथ्वीवासी आज भी पृथ्वी की सुरक्षा और संरक्षा के प्रति उतने सचेत अथवा गंभीर नहीं हैं, जितना होना चाहिए. पर्यावरण असुंतलन, शहरीकरण, नित बढ़ते प्रदूषण, वृक्षारोपण के प्रति उदासीनता और भूमिगत जल दोहन की लगातार वृद्धि से पृथ्वी का क्षरण तेजी से हो रहा है, जिसका कुपरिणाम आनेवाली पीढियों को झेलना होगा.
आप सहज कल्पना कर सकते हैं कि जल और वायुविहीन दुनिया में हम कितनी घड़ी सांस ले सकेंगे. अगर इस भयावह घड़ी से हम बचना चाहते हैं तो अपने इस खूबसूरत और संजीवनीयुक्त पृथ्वी की सुरक्षा की जिम्मेदारी हमें ही उठानी होगी. इस ‘पृथ्वी दिवस’ पर हमें अपनी पृथ्वी की सुरक्षा का संकल्प लेना होगा.
इस कड़वी सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता कि ‘पृथ्वी दिवस’ हो या ‘इंटरनेशनल अर्थ डे’ इस दिशा में देश और दुनिया में सजगता की भारी कमी है. सामाजिक या राजनीतिक दोनों ही स्तर पर इस दिशा में विशेष कार्य नहीं किये जा रहे हैं. यहां तक कि हम पर्यावरण की सुरक्षा के लिए बने नियमों तक का पालन नहीं करते. महज गिनती के पर्यावरण प्रेमी अपने स्तर पर कोशिश करते हैं, किंतु इतने गंभीर मसले का हल एक व्यक्ति, एक संस्था अथवा मुट्ठी भर समाजिक संस्थाओं से नहीं निकाला जा सकता.
इस महायज्ञ में एक-एक व्यक्ति को कुछ न कुछ आहुति देनी होगी, तभी हम पृथ्वी की सुरक्षा कर सकेंगे. पृथ्वी की सुरक्षा का संकल्प लेने से पूर्व हमें पृथ्वी के गर्भ के रहस्य को समझना आवश्यक है. आइये जानें क्या है पृथ्वी और उसके गर्भ में समाया रहस्य...
पृथ्वी के गर्भ का रहस्य
पुराने शोधों के अनुसार पृथ्वी के गर्भ में 85 प्रतिशत लोहा और 10 प्रतिशत निकेल है. लेकिन शेष 5 प्रतिशत क्या है? इस सवाल को लेकर दुनिया भर के वैज्ञानिकों में उहापोह की स्थिति थी. पृथ्वी के इस रहस्य से पर्दा उठाने के लिए जापान के टोहोकु विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने पृथ्वी की खुदाई करने के बजाय अपने प्रयोगशाला में एक हूबहू मॉडल पृथ्वी का निर्माण किया. इसे बनाने के लिए वैज्ञानिकों ने इसमें बाहरी सतह, भीतरी मिट्टी, क्रस्ट, मैटल कोर और अन्य कोर को भी बनाया. कोर या गर्भ के लिए उन्होंने लोहा, निकेल और सिलिकन के मिश्रण को 6 हजार डिग्री के तापमान पर काफी दबाव में रखा.
इसका जो परिणाम आया, वह काफी कुछ धरती जैसा निकला. इन वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के गर्भ में होनेवाली गतिविधियों के आंकड़ों को प्रायोगिक डाटा से मिलान किया, और इसके पश्चात पृथ्वी के गर्भ में सिलिकन होने का प्रमाण मिला. कुछ अन्य वैज्ञानिक शोधों में इसमें ऑक्सीजन होने की भी संभावना भी बताई गयी. वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया, पृथ्वी की ज्यादा से ज्यादा गहराई का शोध करने के पश्चात पृथ्वी के जीवनकाल, उसके सेहत और बह्माण्ड के रहस्य पर से काफी हद तक परदा उठाया जा सकेगा. लेकिन तब तक प्रत्येक मनुष्य को अपनी बुद्धिकौशल से पृथ्वी की सुरक्षा करनी होगी.
पहरेदार ही बन रहा संहारक
ब्रह्राण्ड में एकमात्र पृथ्वी ही है, जहां जीवन संभव है. अगर धरती को बचाना है तो इसके भीतर की प्राकृतिक संपदा की रक्षा करना बहुत जरूरी है. दरअसल प्रकृति के निर्माण के समय ईश्वर ने पृथ्वी की रक्षा के लिए ही इंसान की रचना की थी, ताकि उसकी बुद्धि कौशल से वह पृथ्वी की रक्षा करे, लेकिन आज वही इंसान पृथ्वी का संहारक साबित हो रहा है. पशु-पक्षियों के बजाय वह इंसान ही है जो विकास के नाम पर जाने-अनजाने पृथ्वी के संसाधनों का बड़ी निर्ममता से क्षरण कर उसे कमजोर बना रहा है. उसे इस बात का कत्तई अहसास नहीं है कि वह जिस डाल पर बैठा है, उसे ही काटने की गलती कर रहा है.
पृथ्वी की सुरक्षा के लिए जरूरी है हर हाथ का साथ
पृथ्वी के गर्भ की प्राकृतिक संपदा के प्रति लोगों के लापरवाही रवैये, औद्योगिकरण एवं शहरीकरण के चक्कर में वनों के अस्तित्व को निरंतर मिटाने से लोगों को जागरुक करने एवं पृथ्वी ग्रह की सुरक्षा हेतु यूएसए सीनिटेर गेलार्ड नेल्सन ने 22 अप्रैल (1977) से पृथ्वी दिवस मनाने की शुरुआत की. उनके द्वारा उठाए इस कदम के तहद पृथ्वी की प्राकृतिक संपत्ति की सुरक्षा एवं संतुलन के लिए ‘हर हाथ के साथ’ की जरूरत थी. इस दिन जहां पूरी दुनिया ‘पृथ्वी दिवस’ मनाती है, वहीं अमेरिका के लोग इसे ‘वृक्ष दिवस’ के रूप में मनाते हैं. उनका मानना है कि अगर हर व्यक्ति वृक्षारोपण को गंभीरता से ले तो पृथ्वी के क्षरण पर काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है.
नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियां लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.