सूर्य देव की आराधना और संतान के सुखी जीवन के लिए महिलाएं हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की षष्ठी को निर्जल व्रत रखती हैं. इस वर्ष छठ पूजा 20 नवंबर यानी शुक्रवार को है. छठ पूजा का प्रारंभ दो दिन पूर्व चतुर्थी तिथि को नहाय खाय से होता है, फिर पंचमी के दिन लोहंडा और खरना होता है. उसके बाद षष्ठी तिथि को छठ पूजा होती है, जिसमें सूर्य देव को सूर्यास्त के समय अर्घ्य दिया जाता है. अगले दिन यानी सप्तमी को सूर्योदय के समय उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद पारण किया जाता है. यह भी पढ़ें: Chhath Puja Wishes 2020: छठ पूजा के पावन त्योहार पर ये GIFs, Greetings, Images, HD Photos, Wallpapers भेजकर दें शुभकामनाएं
सूर्य अर्घ्य का महत्व
कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की षष्ठी और सप्तमी तिथि पर सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है, षष्ठी यानी छठ मईया की पूजा पर. छठी तिथि की संध्याकाल को अस्त होते सूर्य को और सप्तमी के दिन उदय होते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. हमारे धार्मिक ग्रंथों में कार्तिक मास में सूर्य को अर्घ्य देने का विशेष महत्व बताया गया है. सूर्य को अर्घ्य देने के पीछे धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक प्रमाण भी बताये गये हैं. यह भी पढ़ें: Chhath Puja 2020 Lohnda & Kharna Wishes: छठ पूजा के दूसरे दिन इन हिंदी GIFs, Greetings, Images, HD Photos, Wallpapers के जरिए अपनों को दें लोहंडा खरना की हार्दिक बधाई
सूर्य से वनस्पतियों का संबंध!
कई शोधों के बाद पाया गया है कि सूर्य की किरणें वनस्पतियों में औषधीय अर्क का निर्माण करती हैं. शास्त्रों में सूर्य के 12 रूप बताए गए हैं. इन रूपों से हिंदी माहों का विशेष संबंध है. हर मास में सूर्य का रूप अलग-अलग होता है. साल के 6 मास सूर्य उत्तरायण होते हैं और अगले 6 मास दक्षिणायण होते हैं. दक्षिणायण होते हुए सूर्य सृजन करते हैं और उत्तरायण के समय पालन करते हैं. सूर्य की किरणों में सिर्फ प्रकाश ही नहीं बल्कि भोजन और शक्ति भी निहित होता है. भोजन से प्राप्त होनेवाली ऊर्जा भी सूर्य से ही मिलती है. इसलिए वेदों में सूर्य को जगत सृष्टा यानी जगत में सृजन करनेवाला माना गया है और सूर्य को ही पालनकर्ता भी बताया गया है. यह भी पढ़ें: Chhath Puja 2020 Date & Full Schedule: नहाय-खाय, लोहंडा-खरना, संध्या और ऊषा अर्घ्य कब है? जानें 4 दिवसीय छठ पूजा पर्व की तिथि और पूरा शेड्यूल
कार्तिक मास में सूर्य-अर्घ्य का महत्व
वैज्ञानिकों के अनुसार कार्तिक मास में सूर्यदेव धाता रूप में होते हैं. इस दरम्यान सूर्य अपनी सप्त-किरणों से मन, बुद्धि, शरीर और ऊर्जा को नियंत्रित करके सृजन करने के लिए प्रेरित करते हैं. इस मास में सूर्य को अर्घ्य देने से पवित्र बुद्धि और मन का सृजन होता है, जिसके कारण अच्छे कर्म होते हैं और उनसे मोक्ष की प्राप्ति होती है.
बढ़ती है प्रजनन शक्ति!
गाइनकॉलजिस्ट के अनुसार कार्तिक मास में स्त्रियों और पुरुषों में प्रजनन शक्ति में वृद्धि होती है. गर्भवती माताओं को विटामिन-डी नितांत आवश्यक है. विज्ञान के अनुसार सबसे ज्यादा विटामिन डी सूर्योदय और सूर्यास्त के समय ही पर्याप्त होता है.
सूर्य-अर्घ्य के पीछे रंगों के विज्ञान की अहम भूमिका होती है. चिकित्सकों के मुताबिक मानव शरीर में रंगों का संतुलन बिगड़ता है तभी वह विभिन्न रोगों का शिकार बनता है. प्रिज्म के सिद्धांत के अनुसार सूर्य को अर्घ्य देते समय शरीर पर पड़ने वाले प्रकाश से ये रंग संतुलित हो जाते हैं, जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ जाती है. सूर्य की किरणों से मिलनेवाला विटामिन डी शरीर में प्रचुर मात्रा में होता है. इस वजह से त्वचा रोग की संभावना कम होती है.