इस साल 7 अप्रैल को पूरा सिंधी समाज चेटीचंड (Cheti Chand) का त्योहार मनाएगा. दरअसल, भगवान झूलेलाल (Jhulelal) की जयंती चेटीचंड के पर्व के रूप में मनाई जाती है. साथ ही सिंधी समाज इस दिन को नववर्ष की शुरुआत के रूप में भी मनाता है. हर साल चैत्र मास की द्वितीया तिथि को यह पर्व मनाया जाता है. यह पर्व सिंधी लोगों के लिए बेहद खास है. इस दिन भगवान झूलेलाल की पूजा की जाती है. साथ ही इस दिन प्रसाद के रूप में मीठे चावल और उबले चने बाटें जाते हैं.
चेटीचंड की मान्यता:
सिंधु प्रांत में लोग राजा मिरखशाह के अत्याचार से परेशान थे. इसके बाद 40 दिनों तक सिंधी समाज के लोगों ने प्रार्थना की. फिर वहां के लोगों को भगवान झूलेलाल के दर्शन हुए. भगवान झूलेलाल ने उनसे कहा कि वह 40 दिन बाद जन्म लेंगे और फिर उन्हें मिरखशाह के अत्याचारों का सामना नहीं करना पड़ेगा. चैत्र माह की द्वितीया तिथि को उडेरोलाल नामक बालक का जन्म हुआ और उसने प्रजा को मिरखशाह के अत्याचारों से मुक्त करवाया.
पूजा विधि: दिन की शुरुआत में लोग भगवान झूलेलाल के दर्शन करने के लिए मंदिर जाते हैं. भगवान झूलेलाल वरुणदेव के अवतार है और इसलिए इस दिन वरुणदेव की भी पूजा की जाती है. इस दिन सिंधी समाज के लोग नदी के किनारे बहिराणा साहिब की परंपरा को निभाते है. इस परंपरा के अनुसार आटे की लोई में दीपक, मिश्री, इलायची, फल, सिन्दूर, लौंग जैसी चीजें रखकर पूजा की जाती है और फिर इसे नदी में बहा दिया जाता है.
मुहूर्त: इस साल चैत्र माह की द्वितीया तिथि की शुरुआत 6 अप्रैल को दोपहर 3 बजकर 23 मिनट पर होगी. 7 अप्रैल को 4 बजकर 1 मिनट पर मुहूर्त खत्म होगा. इस वजह से कई जगहों पर 6 अप्रैल को भी चेटीचंड का त्योहार मनाया जाएगा.