Ashwin Maas Shivaratri 2023: आज विशिष्ठ योगों में मनायी जायेगी आश्विन मास की शिवरात्रि! जानें शुभ मुहूर्त एवं पूजा विधि?
हिंदू धर्म शास्त्रों में आश्विन मास की शिवरात्रि का विशेष का विशेष महत्व बताया गया है. हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि का व्रत रखा जाएगा. मान्यता है कि शिवरात्रि पर कोई कुंवारी कन्या शिवजी का विधिवत व्रत रखती हैं, उसे
हिंदू धर्म शास्त्रों में आश्विन मास की शिवरात्रि का विशेष का विशेष महत्व बताया गया है. हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि का व्रत रखा जाएगा. मान्यता है कि शिवरात्रि पर कोई कुंवारी कन्या शिवजी का विधिवत व्रत रखती हैं, उसे मनोवांछित वर की प्राप्ति होती है. उसकी सारी समस्याओं का समाधान हो जाता है, और मृत्युपरांत उसे मोक्ष प्राप्त होता है. इस वर्ष आश्विन मास शिवरात्रि पर कुछ विशेष योगों का भी निर्माण हो रहा है, मान्यता है कि इन योगों में की गई पूजा-अर्चना खूब फलदायी होती है.
आश्विन मास शिवरात्रि पर शुभ योग एवं पूजा का मुहूर्त
शिवरात्रि पर पूजा का शुभ मुहूर्तः 11.43 PM से 12.33 AM तक
हिंदू पंचांगों के अनुसार आश्विन कृष्ण पक्ष की शिवरात्रि पर बन रहे योग
शुक्ल योगः 09.30 AM तक रहेगा
ब्रह्म योगः 09.30 AM से 10.05 AM तक रहेगा.
ज्योतिषियों के अनुसार इन योगों में व्रत एवं पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है.
आश्विन मास शिव रात्रि की पूजा विधि
आश्विन मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन ब्रह्मयोग में उठकर स्नान-ध्यान करें. स्वच्छ वस्त्र पहनकर भगवान शिव का ध्यान करते हुए व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. घर के मंदिर में भगवान शिव एवं माता पार्वती के समक्ष धूप दीप प्रज्वलित कर, पुष्प, चंदन, विल्व पत्र, धतूरा, मिष्ठान एवं फल अर्पित करें. निम्न मंत्र का जाप करे.
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
अंत में भगवान शिव की आरती उतारें.
इसके बाद निकटतम शिव मंदिर में जाकर दक्षिण दिशा में मुख करके शिवलिंग पर गंगाजल एवं पंचामृत से अभिषेक करें. अभिषेक धीमी गति एवं बिना धार टूटे हुए करना चाहिए. इसके बाद शिवलिंग का विल्व पत्र, भस्म, पुष्प आदि से श्रृंगार करें. इसके पश्चात मिष्ठान एवं फल चढ़ाएं. ऐसा करते समय ‘ॐ ओम नमः’ शिवाय का जाप निरंतर करते रहें. इसके पश्चात शुद्ध घी का दीप जलाकर भगवान शिव की आरती उतारें. इसके बाद अगले दिन मुहूर्त के अनुरूप व्रत का पारण करें.