Adhik Maas 2020: हर तीन साल में क्यों आता है अधिक मास? मलिन होने के बावजूद क्यों श्रीहरि को प्रिय है पुरुषोत्तम मास, जानें महत्व
आज (18 सितंबर) से अधिकमास की शुरुआत हो गई है, जो हिंदी पंचांग के अनुसार हर तीन साल में एक बार आता है. अधिकमास को मलमास या पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है. अधिकमास भगवान विष्णु और भगवान शिव को समर्पित है. हर तीन साल में एक बार आने वाला पुरुषोत्तम मास श्रीहरि को प्रिय है, इसलिए इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है.
Adhik Maas 2020: आज (18 सितंबर) से अधिकमास (Adhik Maas) की शुरुआत हो गई है, जो हिंदी पंचांग के अनुसार हर तीन साल में एक बार आता है. अधिकमास को मलमास (Malmaas) या पुरुषोत्तम मास (Purushottam Maas) भी कहा जाता है. आमतौर पर हर साल आश्विन मास में सर्वपितृ अमावस्या (Sarv Pitru Amavasya) के अगले दिन से मां दुर्गा (Maa Durga) की उपासना के पर्व नवरात्रि की शुरुआत हो जाती है, लेकिन इस साल अधिकमास के कारण नवरात्रि का पर्व एक महीने बाद 17 अक्टूबर से शुरु होगा. अधिक मास में शादी-ब्याह, गृह निर्माण, गृह प्रवेश, मुंडन, जनेऊ संस्कार जैसे मांगलिक कार्यों को करना वर्जित माना जाता है. हालांकि इस महीने पूजा-पाठ, दान-पुण्य करने का फल कई गुना अधिक प्राप्त होता है. अधिकमास भगवान विष्णु और भगवान शिव को समर्पित माना जाता है. चलिए जानते हैं अधिक मास आखिर हर तीन साल में एक बार क्यों आता है? मलिन होने के बावजूद आखिर भगवान विष्णु (Lord Vishnu) को पुरुषोत्तम मास प्रिय क्यों है और क्या है इसका महत्व?
क्यों कहते हैं इसे मलमास?
अधिक मास में सूर्य का राशि परिवर्तन नहीं होता है यानी इस महीने सूर्य की संक्रांति नहीं होती है, इसलिए यह माह मलिन हो जाता है. इस महीने नामकरण, जनेऊ संस्कार, शादी-ब्याह जैसे मांगलिक कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त नहीं होते हैं, इसलिए इन कार्यों को इस माह वर्जित माना जाता है. हालांकि इस माह जरूरत की चीजें खरीदी जा सकती हैं, विवाह की तारीख तय की जा सकती है और नए घर के लिए बुकिंग भी की जा सकती है.
इसलिए तीन साल में आता है अधिकमास
हिंदू कैलेंडर सूर्य मास और चंद्र मास की गणना के अनुसार चलता है. अधिकमास चंद्र वर्ष का अतिरिक्त भाग है जो हर 32 माह, 16 दिन और 8 घंटे के अंतर पर आता है. ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार, अधिक मास का आगमन सूर्य वर्ष और चंद्र वर्ष के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए होता है. दरअसल, सूर्य वर्ष 365 दिन और 6 घंटे का होता है, जबकि चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है. दोनों वर्षों के बीच करीब 11 दिन का अंतर होता है जो हर तीन साल में 1 महीने के बराबर हो जाता है. इसी अंतर को संतुलित करने के लिए हर तीन साल में एक अधिक चंद्र मास आता है, अतिरिक्त होने की वजह से इसे अधिकमास नाम दिया गया है. यह भी पढ़ें: Shubho Mahalaya 2020 Wishes & HD Images: पितृपक्ष के समापन का पर्व है महालया, अपने दोस्तों-रिश्तेदारों को इन खूबसूरत हिंदी GIF Greetings, WhatsApp Stickers, Facebook Messages, Wallpapers के जरिए दें शुभकामनाएं
भगवान विष्णु को प्रिय है यह माह
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, हर चंद्र मास के कोई न कोई देवता हैं, लेकिन अधिकमास का कोई स्वामी नहीं है. कहा जाता है कि जब सूर्य और चंद्र मास के बीच संतुलन बनाने के लिए अधिकमास प्रकट हुआ तो कोई भी देवता अधिकमास का अधिपति बनने के लिए तैयार नहीं हुआ. ऐसे में स्वामीविहीन होने के कारण अधिकमास को मलमास कहा जाने लगा. इस बात से दुखी होकर मलमास श्रीहरि के पास गया और उनसे अपनी व्यथा सुनाई. तब श्रीहरि ने मलमास को वरदान दिया कि अब से मैं तुम्हारा स्वामी हूं और तुम पुरुषोत्तम के नाम से जाने जाओगे.
अधिकमास का महत्व
भगवान विष्णु ने मलमास को पुरुषोत्तम मास का नाम देते हुए कहा कि हर तीन साल में तुम्हारे आगमप पर जो व्यक्ति श्रद्धा-भक्ति के साथ कुछ अच्छे कार्य करेगा, उसे कई गुना अधिक फल मिलेगा. भगवान विष्णु पुरुषोत्तम मास के स्वामी माने जाते हैं, इसलिए यह माह उन्हें प्रिय है और इस महीने उनकी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. मान्यता है कि इस महीने भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करना शुभ फलदायी होता है. इसके साथ ही इस माह में स्नान, पूजन, अनुष्ठान एवं दान करने से कई गुना अधिक पुण्य फल मिलते हैं.
नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.